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लोकसभा के कैलेंडर 2020 से क्यों ग़ायब है संविधान की प्रस्तावना?

लोकसभा के कैलेंडर 2020 से क्यों ग़ायब है संविधान की प्रस्तावना?

लोकसभा सचिवालय के 2020 के कैलेंडरमें इस बार संविधान की प्रस्तावना को जगह नहीं दी गई है। इसे लेकर कई सवाल खड़े हो रहे हैं। 

बीते गणतंतत्र दिवस को ‘भारत का संविधान’ लागू हुए 70 साल पूरे हो गए हैं। इस ख़ास मौक़े पर लोकसभा सचिवालय ने इस साल अपने कैलेंडर का विषय संविधान रखा है। कैलेंडर के हर पेज पर संविधान की ख़ूबियों का ज़िक्र है। लेकिन हैरानी की बात यह है कि संविधान पर आधारित इस कैलेंडर पर संविधान की आत्मा समझी जाने वाली इसकी प्रस्तावना पूरी तरह ग़ायब है। ऐसा ग़लती से हुआ या फिर जानबूझ कर प्रस्तावना को कैलेंडर पर नहीं छापा गया है यह सवाल बेहद महत्वपूर्ण है।

‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द तो कारण नहीं!

दरअसल, मोदी सरकार पर आरोप लग रहे हैं कि वह देश के धर्मनिरपेक्ष चरित्र को बदल कर उसे ‘हिंदू राष्ट्र’ बनाने की दिशा में आगे बढ़ रही है। संविधान की प्रस्तावना देश के धर्मनिरपेक्ष चरित्र को हर हाल में बहाल रखने की गारंटी देती है। मौजूदा सरकार में ऊंचे पदों पर बैठे लोगों को ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द पर ही आपत्ति रही है। वे इसकी जगह ‘पंथनिरपेक्ष’ शब्द इस्तेमाल करते हैं। संविधान के मुताबिक़, इसकी प्रस्तावना को अब न बदला जा सकता है और न ही इसमें कुछ जोड़ा या घटाया जा सकता है। क्या इसी की वजह से संविधान केंद्रित कैलेंडर को इसकी आत्मा के बग़ैर ही छाप दिया गया है

अधिकारियों ने साधी चुप्पी

‘सत्य हिन्दी’ ने इस बारे में लोकसभा सचिवालय के अधिकारियों से बात करके इसकी वजह जानने की कोशिश की तो बेहद चौंकाने वाली ख़बर सामने आई। कई अधिकारियों ने तो इस बारे में कुछ भी कहने से इनकार करके इस मामले से पूरी तरह पल्ला झाड़ लिया। लेकिन एक अधिकारी ने सिर्फ़ इतना कहा कि इस बारे में लोकसभा स्पीकर के कार्यालय से बात की जाए क्योंकि कैलेंडर का विषय और उसका डिज़ाइन वहीं से फ़ाइनल होता है। लोकसभा सचिवालय कैलेंडर की विषय वस्तु से संबधित ड्राफ़्ट तैयार करके स्पीकर को भेजता है। उस पर मंज़ूरी की अंतिम मुहर लोकसभा स्पीकर लगाते हैं।

स्पीकर के इशारे पर हटाई गई प्रस्तावना

थोड़ा और कुरेदने पर इस अधिकारी ने बताया कि सचिवालय के योजनाकारों की तरफ़ से तैयार किए गए कैलेंडर के मूल ड्राफ़्ट में संविधान की प्रस्तावना शामिल थी। लेकिन फ़ाइनल ड्राफ़्ट में इसे हटा दिया गया। यह फ़ैसला किस स्तर पर हुआ किसने किया इस बारे में उन्हें कुछ नहीं पता। इससे यह सवाल पैदा होता है कि क्या संसद में लोकतांत्रिक परंपरा के पैरोकार लोकसभा स्पीकर के कहने पर कैलेंडर से संविधान की प्रस्तावना वाला पेज हटाया गया या फिर उनके मातहत अधिकारियों ने अपने स्तर पर ही यह फ़ैसला किया दोनों ही स्थितियों में यह संविधान की आत्मा की अनदेखी का गंभीर मामला बनता है।  

सूत्रों के मुताबिक़, ‘सचिवालय के योजनाकारों ने संविधान की प्रस्तावना को कैलेंडर के पहले पेज पर ही जगह दी थी। बाद में इसे हटा दिया गया। बाद में अधिकारियों ने संविधान की प्रस्तावना से आंखें मूंद लीं। सूत्रों के मुताबिक़, कैलेंडर 2020 फ़ाइनल होने से पहले लोकसभा स्पीकर की तरफ़ से मंजूरी दी गई थी। बताया जाता है कि इस कैलेंडर को लेकर लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला काफ़ी उत्साहित थे। लेकिन यह पक्के तौर पर नहीं कहा जा सकता कि उनके पास मंजूरी के लिए कैलेंडर का जो ड्राफ़्ट भेजा गया था उसमें संविधान की प्रस्तावना वाला पेज था या नहीं।

संविधान प्रेमियों को अख़रा 

मौजूदा समय में देशभर में नागरिकता संशोधन क़ानून को लेकर सरकार के ख़िलाफ़ प्रदर्शन हो रहे हैं। इस क़ानून को संविधान की मूल भावना और उसकी प्रस्तावना के ख़िलाफ़ माना जा रहा है। सरकार पर संविधान की धज्जियां उड़ाने के आरोप लग रहे हैं। राजनीतिक गलियारों में यह भी चर्चा है कि इसी वजह से कैलेंडर में संविधान की प्रस्तावना को जगह नहीं दी गई है। वजह जो भी हो, कैलेंडर में संविधान की आत्मा यानी संविधान की प्रस्तावना का न होना लोकतंत्र और संविधान प्रेमियों को काफ़ी अखर रहा है।  

लोकसभा सचिवालय के 2020 के इस कैलेंडर के हर पेज पर संविधान के स्वर्णाक्षर वाले पन्नों की प्रतियां छापी गईं हैं। इन्हें संविधान की कैलीग्राफ़ की गई मूल प्रति से लिया गया है। जनवरी महीने की शुरुआत संविधान के भाग-22 से हो रही है। इसमें संक्षिप्त नाम, प्रारंभ और निरसन का उल्लेख है। फरवरी का महीना संविधान में यूनियन और इसकी टेरिटरी की व्याख्या कर रहा है। मार्च का महीना भाग-3, मूल अधिकारों के बारे में जानकारी दे रहा है तो अप्रैल महीने वाले पेज पर संविधान के भाग-6 की जानकारी है। मई के महीने वाले पेज पर भाग-6 ने वर्णित कार्यपालिका के बारे में जानकारी दी गई है। जून के महीने वाले पेज पर राज्य के नीति निर्देशक तत्वों के बारे में जानकारी अंकित है। इसी तरह हर पेज पर संविधान के किसी न किसी भाग की जानकारी दी गई है। बस नहीं है तो प्रस्तावना कहीं नहीं है।

प्रस्तावना को भारतीय संविधान की आत्मा माना जाता है। इसमें भारतीय संविधान का सार, उद्देश्य, लक्ष्य, दर्शन और अपेक्षाएं प्रकट की गई हैं। प्रस्तावना में ही यह घोषणा की गई है कि संविधान अपनी शक्ति सीधे देश की जनता से हासिल करता है।

संविधान की प्रस्तावना

प्रस्तावना ‘हम भारत के लोग’...के उद्बोधन के साथ शुरू होती है। संविधान की प्रस्तावना कुछ इस प्रकार है - ‘हम भारत के लोग, भारत को एक संपूर्ण प्रभुत्व, संपन्न, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को : सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त करने के लिए तथा उन सबमें व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखंडता सुनिश्चित करने वाली बंधुता बढ़ाने के लिए दृढ़ संकल्प होकर अपने इस संविधान सभा में आज तारीख 26 नवंबर, 1949 ई को एतद्दवारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं।’

संविधान की इस प्रस्तावना को राजनीतिक कुंडली का नाम दिया गया है लेकिन लोकसभा सचिवालय ने इस कुंडली के बग़ैर ही कैलेंडर जारी कर दिया है। इसे बेहद अफसोसनाक माना जा रहा है। नागरिकता संशोधन क़ानून के विरोध में जगह-जगह संविधान की प्रस्तावना पढ़कर यह बताया जा रहा है कि हमारा संविधान देश को धर्मनिरपेक्ष बनाता है। यहां धर्म के आधार पर भेदभाव करने को क़तई उचित नहीं ठहराया जा सकता। 

प्रस्तावना के बिना कैलेंडर बेमतलब

लोकसभा सचिवालय के अधिकारी भी कैलेंडर से प्रस्तावना के ग़ायब होने को गंभीर मसला मान रहे हैं। लेकिन ज़्यादातर के मुंह सिले हुए हैं। एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि नागरिकता संशोधन क़ानून समेत तमाम मुद्दों पर देश में विरोध हो रहा है। धर्म निरपेक्षता भी बड़ा मुद्दा बना हुआ है। हो सकता है कि ऐसे में संविधान की प्रस्तावना प्रकाशित करने में परहेज किया गया हो। अधिकारी ने कहा कि यह उनकी निजी राय है कि बिना संविधान की प्रस्तावना के इस तरह के कैलेंडर का कोई औचित्य नहीं है।

तथ्य यह भी है कि संविधान केंद्रित कैलेंडर छापने का फ़ैसला पिछले साल सितंबर में हुआ था। 6 सितंबर को लोकसभा सचिवालय ने संविधान केंद्रित 11 हज़ार कैलेंडर छापने के लिए टेंडर निकाला था। इसके मुताबिक़ कैलेंडर के डिज़ाइन और संविधान की मूल प्रति से फोटो छापने की ज़िम्मेदारी प्रिंटर की थी। नागरिकता संशोधन विधेयक संसद में 9 और 11 दिसंबर को पास किया गया। तभी से इसका विरोध हो रहा है। बार-बार संविधान की प्रस्तावना का हवाला दिया जा रहा है। काफी हद तक मुमकिन है कि इस बवाल के चलते ही कैलेंडर से इसे ग़ायब कर दिया गया हो। लोकसभा सचिवालय हर साल पहली जनवरी से ही से कैलेंडर बांटने शुरू कर देता है। इस बार भी पहली जनवरी से कैलेंडर बंटने शुरू हो गए थे। लेकिन इससे संविधान की प्रस्तावना का ग़ायब होना अब मुद्दा बन रहा है।

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