तेलंगाना में राजा सिंह क्यों बने बीजेपी के गले की फाँस?
तेलंगाना में अपने इकलौते विधायक राजा सिंह के कट्टरपंथी रुख से भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) परेशान है। दूसरी बार विधायक बनने के बाद से राजा सिंह जिस तरह के बयान दे रहे हैं उससे बीजेपी की उदारवादी बनने की कोशिशों को झटका लगा है। राजा सिंह ने एलान किया है कि वह मजलिस इत्तेहादुल मुसलमीन (एमआईएम) के विधायक और नयी विधानसभा में प्रोटेम स्पीकर बनाये गए मुमताज़ अहमद ख़ान के सामने शपथ नहीं लेंगे। इतना ही नहीं, अगर विधानसभा में उन्हें एमआईएम के विधायकों के बगल में सीट दी गई तो वह इसका भी पूरी ताक़त के साथ विरोध करेंगे।
बता दें कि पिछले साल के आख़िरी महीने में हुए तेलंगाना विधानसभा के चुनाव में तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) की शानदार जीत हुई थी। चुनाव में कांग्रेस, तेलुगु देशम पार्टी, सीपीआई और तेलंगाना जन पार्टी के महागठबंधन की करारी हार हुई थी। चुनाव में एमआईएम ने टीआरएस का साथ दिया था। इसी चुनाव में बीजेपी को भी भारी नुक़सान हुआ था। बीजेपी सिर्फ़ एक ही सीट पर जीत हासिल कर पाई, जबकि पिछली विधानसभा में उसके पास पाँच सीटें थीं। हैदराबाद की गोशामहल सीट से चुनाव जीतकर राजा सिंह ने बीजेपी का सूपड़ा साफ़ होने से बचा लिया था। चुनाव में बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष डॉ. के. लक्ष्मण, पूर्व अध्यक्ष जी. किशन रेड्डी, बद्दम बाल रेड्डी, चिंताला रामचंद्रा रेड्डी, रामचंद्र राव जैसे नेता भी चुनाव हार गए। तेलंगाना की 119 सीटों में से 100 से ज़्यादा में बीजेपी के उम्मीदवार अपनी ज़मानत भी नहीं बचा पाए थे। केसीआर की ज़बरदस्त लहर के बावजूद राजा सिंह जीत गए।
ऐसे में राजा सिंह अपनी सीट बचाकर हीरो बन गए। वैसे भी शुरू से ही वह अपने बयानों की वजह से विवादों में रहे हैं। उनके बयानों से उनकी कट्टरपंथी सोच साफ़ दिखाई देती है। चूँकि नयी विधानसभा में वह बीजेपी के अकेले प्रतिनिधि हैं उन्हें बयानों का महत्त्व बढ़ जाता है।
बीजेपी की परेशानी दो वजहों से
- अगर बीजेपी राजा सिंह के बयानों पर कुछ नहीं बोलती है तो इसका मतलब यह हुआ कि वह इन बयानों का समर्थन कर रही है। यानी वह कट्टरपंथी विचारों की समर्थक है।
- अगर बीजेपी राजा सिंह के बयानों का विरोध करती है तो उसे पार्टी लाइन से हटकर बोलने और काम करने के लिए अपने ही विधायक के ख़िलाफ़ कार्रवाई करनी होगी।
- एक ख़तरा और भी है, अगर बीजेपी राजा सिंह का साथ नहीं देती है तो वह बाग़ी भी हो सकते हैं।
अब क्या है विवाद
प्रोटेम स्पीकर बनाये गए मजलिस के विधायक मुमताज़ अहमद ख़ान के सामने शपथ न लेने के राजा सिंह के बयान पर बीजेपी की अभी तक कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है। लेकिन राजा सिंह इस एलान की वजह बार-बार दोहरा रहे हैं। राजा सिंह का कहना है कि मजलिस पार्टी के नेताओं ने हिन्दू देवी-देवताओं के ख़िलाफ़ बयान देकर हिन्दुओं की भावनाओं को ठेस पहुँचाई है। वह कहते हैं, मजलिस के नेता लगातार हिन्दुओं के देवी-देवताओं के ख़िलाफ़ बोलते हैं। वह ‘वन्दे मातरम’ का विरोध करते हैं और ‘भारत माता की जय’ भी नहीं बोलते।
राजा सिंह ने कहा है कि वह विधानसभा का स्थाई अध्यक्ष चुने जाने के बाद उनके सम्मुख विधायक पद की शपथ लेंगे। ग़ौर करने वाली बात यह है कि नयी विधानसभा का पहला सत्र 17 जनवरी से शुरू होने जा रहा है। अनुभवी विधायक होने की वजह से मजलिस के मुमताज़ अहमद ख़ान को अस्थाई अध्यक्ष (प्रोटेम स्पीकर) बनाया गया है। मुमताज़ अहमद ख़ान छठी बार विधायक बने हैं। राज्यपाल उन्हें प्रोटेम स्पीकर की शपथ दिलाएँगे, जिसके बाद वह नवनिर्वाचित सदस्यों को विधायकी की शपथ दिलाएँगे। सभी विधायकों के शपथ लेने के बाद स्थाई विधायक का चुनाव होगा। राजा सिंह जानते हैं कि स्थाई स्पीकर टीआरएस पार्टी से ही बनेगा इस वजह से उन्होंने एलान कर दिया है कि वे स्थाई स्पीकर के समक्ष ही शपथ लेंगे।
- राजा सिंह के इस रवैये की काफ़ी आलोचना भी हुई है। कई लोगों ने इसे कट्टरपंथी सोच का नतीजा करार दिया है। दूसरी तरह कुछ लोग राजा सिंह के साथ खड़े नज़र आते हैं, जिनमें ज़्यादातर हिन्दू सवर्ण हैं विशेषकर ब्राह्मण, क्षत्रिय और लोधी समाज के लोग। राजा सिंह मूलतः हिंदी भाषी हैं और लोध समाज से भी।
राजा सिंह के विवादित बयान
यह पहली बार नहीं है जब राजा सिंह ने इस तरह के विवादास्पद बयान दिए हैं। वह पहले भी कई बार अपने बयानों से विवाद खड़ा कर चुके हैं।
एक बार राजा सिंह ने कहा था, ‘अगर बांग्लादेशी और रोहिंग्या देश नहीं छोड़ते हैं तो उन्हें गोली मार देनी चाहिए’। इसी तरह एक बार उन्होंने कहा था कि वोटों की भीख माँगने वाले ही इफ़्तार पार्टियों का आयोजन करते हैं।
राजा सिंह बार-बार यह कहते हैं कि अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण, कश्मीर में हिन्दू पंडितों की वापसी, भारत-भर में गोवध पर प्रतिबंध ही उनके जीवन का सबसे बड़ा लक्ष्य है।
अनुशासनात्मक कार्रवाई से कैसे बचे
इसी तरह के बयानों की वजह से बीजेपी के कुछ नेताओं ने उनके ख़िलाफ़ अनुशासनात्मक कार्रवाई करने की सिफ़ारिश की थी। लेकिन राजा सिंह के दूसरी पार्टी में चले जाने आशंका से पार्टी को होने वाले संभावित नुकसान को ध्यान में रखकर कोई कार्रवाई नहीं की गई। बीच में ऐसी ख़बरें भी आई थीं कि बीजेपी से नाराज़ राजा सिंह शिवसेना में जा सकते हैं। सूत्रों का कहना है कि राजा सिंह के बीजेपी के राष्टीय अध्यक्ष अमित शाह, केन्द्रीय मंत्रियों राजनाथ सिंह, नितिन गडकरी, उमा भारती जैसे बड़े नेताओं से अच्छे संबंध हैं। राजा सिंह के करीबियों की मानें तो वह अमित शाह के चहेते भी हैं। ऐसे में बड़ा सवाल यही है कि क्या तेलंगाना और पूरे दक्षिण में बीजेपी राजा सिंह की कट्टरपंथी वाली लाइन पकड़ेगी या ‘सबका साथ सबका विकास’ वाली उदारवादी लाइन पर आने के लिए राजा सिंह जैसे नेताओं को मजबूर करेगी।