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किसान नाले में क्यों बहा रहे हैं लहसुन की फसल

किसान नाले में क्यों बहा रहे हैं लहसुन की फसल

मध्य प्रदेश में किसान लहसुन की फसल को नालों और नदी में बहा रहे हैं। सोमवार को इंदौर का एक वीडियो वायरल हुआ। जानिए कि किसान ऐसा करने को क्यों मजबूर हो रहे हैं।

यह सच घटना है। मध्य प्रदेश के इंदौर के नाले में सोमवार 5 सितंबर को लहसुन नाले में बहते दिखाई दिए। इससे पहले पिछले हफ्ते मंदसौर में लहसुन नदी में बहते दिखे थे। आखिर मध्य प्रदेश में ही लहसुन क्यों नाले और नदी में दिखाई दे रहे हैं। दरअसल, मध्य प्रदेश का किसान लहसुन की अपनी फसल के साथ यही सलूक कर रहा है। दिल्ली में लहसुन 120 रुपये किलो मिल रहा है तो मध्य प्रदेश के ग्रामीण इलाकों में वही लहसुन 2 रुपये किलो भी बिकने को तैयार नहीं है। यही वजह है कि किसान गुस्से में अपनी फसल को नदी और नाले में बहा रहे हैं। यह सिलसिला अगस्त से शुरू हुआ था और अभी तक जारी है।

2014 के आम चुनाव में बीजेपी का वादा था कि वो केंद्र की सत्ता में आई तो किसानों की आमदनी दोगुनी हो जाएगी। 2019 का आम चुनाव आया। पीएम मोदी ने फिर दोहराया कि किसानों की आय दोगुनी करने का संकल्प जरूर पूरा होगा। 2024 के आम चुनाव के लिए बीजेपी चुनावी मोड में आ चुकी है लेकिन किसान अपनी फसल को लेकर खून के आंसू बहा रहे हैं। ऐसा सिर्फ लहसुन की फसल के साथ नहीं हुआ है। आलू और टमाटर के साथ भी यही हो चुका है। पंजाब में हर सीजन में आलू से सड़कें पटी होती हैं। क्योंकि भाव नहीं मिलने पर किसान आलू को सड़कों पर फेंक देते हैं। 

मध्य प्रदेश के लहसुन किसानों का दर्द टीवी चैनलों की बहसों के सरोकार से बाहर है। दैनिक भास्कर इंदौर संस्करण की 19 दिनों पहले की खबर बता रही है कि बंपर फसल के बावजूद किसानों को वाजिब कीमत नहीं मिल रही है और वे बेहद नाराज हैं। दैनिक भास्कर ने 19 दिनों पहले बताया था कि मध्य प्रदेश के तमाम इलाकों में लहसुन 45 पैसे से 1 रुपये किलो बिक रहा है। जबकि दिल्ली समेत तमाम बड़े और मीडियम साइज वाले शहरों में लहसुन का भाव सौ रुपये से ऊपर था। दिल्ली की सब्जी मंडियों में तो लहसुन के रेट कभी सौ रुपये से नीचे आते ही नहीं। 

मध्य प्रदेश में रतलाम, नीमच, मंदसौर, इंदौर बड़ी मंडियां हैं, जहां किसान अपनी फसल लाते हैं और वहां से आढ़ती उन्हें थोक में बाहर के बड़े व्यापारियों के लिए बुक करता है। मध्य प्रदेश की इन बड़ी मंडियों से ही रेट तय होते हैं और इन बड़ी मंडियों के रेट इन फसलों को बड़े पैमाने पर खरीदने वाले सेट करते हैं। यह एक पूरी चेन है, जिसके सिस्टम में किसान नहीं हैं। किसान अपनी फसल का भाव तय नहीं कर सकता। लेकिन देश के उद्योगपति अपने प्रॉडक्ट का भाव खुद तय करता है।

किसानों को रेट कम मिलने का मार्केट के पास बेसिर पैर का जवाब है। मध्य प्रदेश के बड़े मंडियों और दिल्ली तक से रेट सेट करने वाले मीडिया को जानकारी देते हैं कि इस बार फसल तो बंपर हुई। इसी वजह से किसानों को सही रेट नहीं मिल रहा। उनका यह जवाब अगस्त के पहले हफ्ते में था। अब सितंबर के पहले हफ्ते में उनका जवाब है कि इतनी बारिश हुई है, बाढ़ आ गई है। किसान लहसुन को स्टोर नहीं कर पा रहे हैं तो वो अपनी फसल नदी, नालों में बहा रहे हैं। हालांकि किसानों के पास लहसुन भंडारण की सुविधा नहीं है। 

रेट कम होने का एक बहाना मार्केट वाले ये भी बना रहे हैं कि गुजरात में इस बार लहसुन की फसल बहुत अच्छी हुई है। पहले सारा लहसुन गुजरात चला जाता था और अच्छे रेट मिलते थे। गुजरात में लहसुन की प्रोसेसिंग करके उसे बाहरी देशों में एक्सपोर्ट किया जाता है। कई बार यह बहाना सुनने को भी मिलता है कि इस बार यूपी-बिहार की तरफ लहसुन की फसल अच्छी हुई है इसलिए दूसरे राज्यों के लिए लदान नहीं हो रहा है। बहरहाल, दलोदा मंडी में जब किसान की लहसुन की फसल 45 रुपये क्विंटल या 45 पैसे प्रति किलो पर खरीदी गई तो किसान नाले में लहसुन नहीं फेंकेगा तो क्या करेगा।

उज्जैन में पिछले महीने भारतीय किसान संघ ने सड़कों पर लहसुन फेंककर प्रदर्शन किया था, इसके बावजूद सरकार नहीं जागी। इसके बाद देवास में लहसुन की शव यात्रा तक निकाली गई लेकिन सरकार सोई रही। उसकी तरफ से किसानों को लहसुन का वाजिब दाम दिलाने की कोशिश नहीं की गई। हालांकि एमपी के राज्यमंत्री भारत सिंह कुशवाहा का कहना है कि यह सब राजनीति के तहत किया जा रहा है।

 

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