क्यों हुई दिल्ली हाई कोर्ट के जस्टिस मुरलीधर के तबादले की कोशिश?
सुप्रीम कोर्ट में दो जजों की नियुक्ति पर कॉलेजियम के फ़ैसले से उठे विवाद के बीच ही दिल्ली हाई कोर्ट के जस्टिस एस. मुरलीधर का तबादला करने की कोशिश की गई थी। हालाँकि इस तबादले को लेकर कॉलेजियम के एक जज ने मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई को ऐसा न करने की सलाह दी। इसके बाद कॉलेजियम ने इस प्रक्रिया को रोक दिया। ‘इंडियन एक्सप्रेस’ की रेजिडेंट एडिटर सीमा चिश्ती ने इस पर एक रिपोर्ट छापी है। रिपोर्ट के मुताबिक़ जस्टिस मुरलीधर के तबादले की कोशिश दो बार की गई। चीमा चिश्ती ने सूत्रों के हवाले से लिखा है कि जस्टिस मुरलीधर के तबादले के प्रस्ताव को फिर से लाया जा सकता है।
जस्टिस मुरलीधर साम्प्रदायिक दंगे से जुड़े मामलों में कड़े फ़ैसले देते रहे हैं। उन्होंने हाल ही में 1986 के हाशिमपुरा नर-संहार मामले में यूपी पीएसी के सदस्यों को सजा सुनाई थी। आरबीआई के स्वतंत्र निदेशक और आरएसएस विचारक एस. गुरुमूर्ति से उनका टकराव भी रहा है।
जस्टिस मुरलीधर के तबादले की कोशिश उसी दौरान हुई जब एस. गुरुमूर्ति का मामला कोर्ट में पहुँचा। दरअसल, गुरुमुर्ति ने पिछले साल जस्टिस मुरलीधर के ख़िलाफ़ कुछ टिप्पणियाँ की थीं। जिस पर इस मामले में दिल्ली हाई कोर्ट ने उनके ख़िलाफ़ अवमानना की कार्रवाई शुरू की थी। इसी मामले में 11 दिसंबर को सुनवाई हुई थी। इसके तुरंद बाद ही पहली दफ़ा जस्टिस मुरलीधर के तबादले की प्रक्रिया शुरू हुई थी।
जस्टिस मुरलीधर कड़े फ़ैसले देने के लिए मशहूर
जस्टिस मुरलीधर सांप्रदायिक हिंसा और निजी स्वतंत्रता पर कड़े फ़ैसले देने के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने साल 2018 में कई ऐसे फ़ैसले सुनाए जो काफ़ी चर्चा में रहे।
- इन फ़ैसलों में बुद्धिजीवियों और कार्यकर्ताओं को जेल भेजने का एक फ़ैसला भी शामिल है जिसमें माओवादियों से संबंध रखने के आरोप में गौतम नवलखा का नाम भी जुड़ा था। जस्टिस मुरलीधर के नेतृत्व वाले दो जजों की पीठ ने सिख दंगा मामले में कांग्रेस नेता सज्जन कुमार को दिसंबर 2018 में दोषी ठहराया। जस्टिस मुरलीधर ने सज्जन कुमार को दोष मुक्त क़रार दिए जाने के पहले के फ़ैसले को बदल दिया और धीमा अभियोग चलाने के लिए सख्त लहज़े में टिप्पणी भी की थी।
बता दें कि तीन सदस्यीय कॉलेजियम से हाल ही में जस्टिस एम. बी. लोकुर रिटायर हुए हैं और जस्टिस ए. के. सिकरी मार्च में रिटायर होने वाले हैं। सीमा चिश्ती ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि अब तक दो बार जस्टिस मुरलीधर को दिल्ली हाई कोर्ट से बाहर तबादला करने पर विचार किया जा चुका है। एक बार आख़िरी दिसंबर महीने में और फिर जनवरी में।
- जस्टिस मुरलीधर को दिसंबर महीने में जब पहली बार तबादला करने की कोशिश हुई तो कॉलेजियम के एक जज ने मुख्य न्यायाधीश को ऐसा नहीं करने के लिए मना लिया। दूसरी बार यह प्रयास तब किया गया था जब जस्टिस लोकुर के रिटायर होने के बाद कॉलेजियम में बदलाव हुआ था।
जब कॉलेजियम ने पलटा अपना ही प्रस्ताव
याद रहे कि इसी महीने की शुरुआत में सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने दो जजों की नियुक्ति के दिसंबर महीने के अपने प्रस्ताव को बदल दिया था।
प्रस्ताव में बदलाव के कारण राजस्थान हाई कोर्ट के चीफ़ जस्टिस प्रदीप नंदराजोग और दिल्ली हाई कोर्ट के चीफ़ जस्टिस राजेंद्र मेनन की पदोन्नति रुक गई और उनकी जगह जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और जस्टिस संजीव खन्ना सुप्रीम कोर्ट में नियुक्ति दे दी गई।