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‘वाइब्रेंट गुजरात’ से किनारा क्यों कर रहे हैं बड़े देश?

‘वाइब्रेंट गुजरात’ से किनारा क्यों कर रहे हैं बड़े देश?

ब्रिटिश सरकार ने  18 से 20 जनवरी तक होने वाले ‘वाइब्रेंट गुजरात’ समिट में भाग लेने से आधिकारिक तौर पर इनकार कर दिया है, जबकि अमरीका, ऑस्ट्रेलिया आदि ने  भागेदारी से पीछे हटने की पुष्टि नहीं की है।  ये देश पीछे क्यों हट रहे हैं?

ब्रिटेन, अमरीका, रूस, जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया समेत तमाम बड़े और प्रमुख देश इस बार ‘वाइब्रेंट गुजरात’ में हिस्सा नहीं लेंगे। प्रधानमंत्री मोदी चुनाव वर्ष में इसका उद्घाटन करेंगे। सारी दुनिया की मीडिया समेत लोकल मीडिया को भरपूर कवरेज के लिए तैनात करने का काम पूरे उरूज पर था कि तभी इस सूचना की पुष्टि हुई। 18 से 20 जनवरी तक होने वाले इस समिट के लिये ब्रिटिश सरकार ने आधिकारिक तौर पर 'नहीं' कह दिया है, जबकि अमरीका, ऑस्ट्रेलिया आदि ‘नो कमेंट’ कहकर सूचना की पुष्टि नहीं कर रहे हैं।

भारत में एफ़डीआई लाने में मॉरिशस, सिंगापुर और जापान के बाद दुनिया का चौथा राष्ट्र ब्रिटेन ही है। पिछले सारे ‘वाइब्रेंट गुजरात’ कार्यक्रमों में ब्रिटिश पंडाल था, पर उनका अनुभव बहुत कड़वा है। अंग्रेजी अख़बार 'इंडियन एक्सप्रेस' को भारत स्थित उच्चायुक्त में तैनात एक आला अफ़सर ने बताया, 'हमने मंत्रियों और व्यापारियों को इंग्लैंड से इस सम्मिट में लाने में हर बार 50,000 पाउंड से ज़्यादा ख़र्च किए, पर नतीजा उत्साहवर्धक नहीं निकला'। 

  • सितंबर 2018 में एक बड़ा प्रतिनिधिमंडल लेकर गुजरात सरकार के मुख्य सचिव एम. के. दास लंदन गए थे। उनकी वहाँ व्यापारियों और सरकार के नुमाइंदों से कई बैठकें हुई थीं। लंदन स्थित भारतीय उच्चायुक्त कार्यालय की पहल पर बैठकों में अच्छी उपस्थिति भी रही, पर भोजन-भजन के बाद सब ठन-ठन गोपाल रहा! यहाँ तक कि पोंटाक यूके नाम की कंपनी से हस्ताक्षरित एमओयू के मामले में भी शीतलहर पसर गई।
राहुल गांधी ने भी नव वर्ष की पूर्व संध्या पर इस प्रसंग में चुटकी ली 'स्पांसर नमो का भाषण सुनने को अब तैयार नहीं हैं!' इसके जवाब में गुजरात के मुख्यमंत्री रूपानी ने राहुल गाँधी को बेशर्म-झूठा कहा और दावा किया कि इस बार कहीं ज़्यादा देशों की हिस्सेदारी इस समिट में होने जा रही है। पर उन्होंने ब्रिटेन और अमेरिका का नाम नहीं लिया।

 

दिसंबर 2018 में वडोदरा आए अमरीकी कौंसुल जनरल एडगार्ड डी. केगन ने भी पत्रकारों के पूछने पर साफ़ कर दिया था कि अमरीका इस बार समिट का पार्टनर नहीं है।ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड पहले से ही इसको लेकर बहुत उत्साहित नहीं रहे। सिर्फ़ फ़्रांस और जापान दो बड़े नाम हैं, जो यहाँ इस बार आ रहे हैं। दोनों के यहाँ आने की व्यापारिक वजहें भी हैं और यह कारण भी है कि दोनों के राष्ट्र प्रमुखों से मोदी जी कई-कई बार मिल चुके हैं। 

कुल मिलाकर चुनाव वर्ष में ‘वाइब्रेंट गुजरात’ एक नया विवादित मसला बनने जा रहा है!

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