जुमलों का यह कैसा राष्ट्रवाद, जिसे सेना की सच्ची फ़िक्र नहीं!
सेना के पास हथियार नहीं हैं। हथियार ख़रीदने के पैसे भी नहीं हैं। विडम्बना यह कि राष्ट्रवाद के नाम का बड़ा ढोल पीटने वाली बीजेपी की सरकार को इसकी कोई चिन्ता नहीं है। मोदी सरकार सेना की कितनी परवाह करती है, यह सच्चाई जान कर सच्चे राष्ट्रवादियों को वाक़ई बहुत धक्का लगेगा।
सेना की हालत पर रक्षा मामलों से जुड़ी संसदीय कमेटी की रिपोर्ट में यह ख़ुलासा किया गया था कि सेना के पास हथियारों की भारी कमी है, काफ़ी हथियार पुराने पड़ गये हैं, लेकिन इसके बावजूद सेना को पैसे मुहैया कराये जाने के बजाय मोदी सरकार ने उसमें कटौती कर दी। यह रिपोर्ट आज से एक साल पहले सुन्जुवान आर्मी कैम्प पर जैश-ए-मुहम्मद के एक फ़िदायीन हमले के बाद आयी थी। यह रिपोर्ट देनेवाली संसद की इस स्थायी समिति के अध्यक्ष कोई कांग्रेसी या वामपंथी नहीं थे, बल्कि बीजेपी सांसद मेजर जनरल भुवन चंद्र खंडूरी थे, जो केन्द्रीय मंत्री भी रह चुके हैं और उत्तराखंड के मुख्यमंत्री भी।
- लेकिन मोदी सरकार ने यह रिपोर्ट तो दबा ही दी, खंडूरी जी को भी समिति के अध्यक्ष पद से 20 सितम्बर 2018 को हटा दिया गया। तो आख़िर इस रिपोर्ट में ऐसा क्या था, जो वह मोदी सरकार को इतनी नागवार लगी कि अपनी पार्टी के ही एक बेहद वरिष्ठ और अनुभवी राजनेता को स्थायी समिति की अध्यक्षता से हाथ धोना पड़ गया। अपने हटाये जाने के दो दिन बाद ही खंडूरी ने देहरादून में मीडिया के पूछने पर कहा था, ‘किसी से कोई गिला नहीं, मैंने अपना काम किया।’
खंडूरी की अध्यक्षता वाली इस समिति ने अपनी रिपोर्ट में इस बात पर कड़ी नाराज़गी जाहिर की थी कि हमारे रक्षा प्रतिष्ठानों (समुद्री अड्डों समेत) की सुरक्षा के मामले में मौजूदा इंतज़ाम बहुत ही घटिया हैं और कहा था कि रक्षा मंत्रालय का रवैया इस मामले में बहुत ही शर्मनाक है।
पुलवामा में अभी हुए हमले के ठीक एक साल पहले 10 फरवरी, 2018 को जम्मू के सुन्जुवान आर्मी कैंप पर इसी जैश-ए-मुहम्मद ने एक फ़िदायीन हमला किया था, जिसमें 11 सैनिक शहीद हुए थे और 14 जवान गंभीर रूप से घायल हुए थे। समिति ने अपनी रिपोर्ट में इस हमले का विशेष रूप से ज़िक्र करते हुए उन बिंदुओं की तरफ़ भी इशारा किया था, जिनकी वजह से आतंकवादी ऐसी वारदातें करने में सफल हो जाते हैं।
कमेटी में बीजेपी का बहुमत
इस समिति में बीजेपी सांसदों का प्रचण्ड बहुमत था। यानी कोई यह नहीं कह सकता कि समिति ने किसी पूर्वग्रह से रिपोर्ट दी थी। रिटायर्ड मेजर जनरल रहे बी. सी. खंडूरी के अलावा इस समिति में लोकसभा से बीस और राज्यसभा से नौ सांसद थे। खंडूरी ख़ुद सेना की पृष्ठभूमि से हैं, इसलिए सेना की समस्याओं और ज़रूरतों को उनसे बेहतर और कौन समझ सकता है। हालाँकि वर्ष 2017-18 की रक्षा मामलों की इस रिपोर्ट के तैयार होने से पहले इस समिति के दो सदस्यों ने इस्तीफ़ा दे दिया था। सुब्रमनियन स्वामी भी इस समिति के सदस्य थे, जिन्होंने 7 मार्च, 2018 को इस्तीफ़ा दे दिया था, एक और सदस्य कांग्रेस के विवेक के तनखा इसके लगभग पाँच महीने पहले ही 16 नवंबर, 2017 को इस्तीफ़ा दे चुके थे।
बी. सी. खंडूरी ने इस रिपोर्ट में बताया था कि हमारे क़रीब 68 फ़ीसदी गोला-बारूद और हथियार बाबा आदम के जमाने के हैं। केवल 24 फ़ीसदी ही ऐसे हथियार हैं, जिन्हें हम आज के ज़माने के हथियार कह सकते हैं और सिर्फ़ आठ फ़ीसदी हथियार ऐसे हैं, जो 'स्टेट ऑफ़ द आर्ट' यानी अत्याधुनिक कैटेगरी में रखे जा सकते हैं।
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यानी सेना के पास ज़्यादातर हथियार बहुत पुराने समय के हैं और उनकी जगह तुरन्त नये हथियार ख़रीदे जाने चाहिए।
‘फ़ंड की भी बेहद कमी’
आज के ज़माने में किसी भी आधुनिक सेना के पास मुश्किल से सिर्फ़ एक तिहाई हथियार ही ऐसे रह जाते हैं, जिन्हें पुराना कहा जा सके। समिति ने यह भी कहा था कि हमारी सेनाओं के पास पैसे की बेहद कमी है और युद्ध छिड़ जाने पर मौजूदा स्टॉक से हम मुश्किल से दस दिन की लड़ाई ही पाकिस्तान से लड़ सकते हैं, वह भी तब जब चीन मैदान में न हो।
इस कमेटी की इस रिपोर्ट के आते ही मोदी सरकार की भारी किरकिरी हुई थी क्योंकि केंद्र की सरकार संभालने से पहले और संभालने के बाद मोदी जी हमेशा छप्पन इंच का सीना, मज़बूत प्रधानमंत्री, ‘मोदी है छेड़ेगा नहीं, छेड़ोगे तो छोड़ेगा नहीं’ टाइप जुमले फेंकने के लिए मशहूर रहे हैं।
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रिपोर्ट में ऐसा क्या था जिससे सरकार थी नाराज़
चलिए, हम आपको इस बेहद ज़रूरी और एक दम सही जानकारी से रूबरू कराते हैं और रिपोर्ट के अंश आप तक पहुँचाने की कोशिश कर रहे हैं। यह है हमारी सेना का वह सत्य, जिसे एक नागरिक के तौर पर आपको ज़रूर जानना चाहिए।
1. बजट ज़रूरतें
रिपोर्ट के अनुसार रक्षा मामलों के बजट में सेना की वास्तविक ज़रूरतों और संसाधनों के आवंटन में भारी फ़र्क बना हुआ है...
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पाकिस्तान और चीन दोनों अपनी सेनाओं को आधुनिक बनाने में जी-जान से लगे हुए हैं। जहाँ चीन का लक्ष्य अमेरिका की बराबरी करना है, वहीं पाकिस्तान भारत को पछाड़कर आगे निकल जाना चाहता है। हमारे सामने दोनों ओर से चुनौती है, लेकिन हमारा रक्षा बजट इस क्षेत्र में सिर्फ़ आंशिक या न के बराबर योगदान कर रहा है। हम आपको कुछ मामलों के जरिए समझाएँगे कि कई बार तो यह हुआ है कि सेना को धन का आवंटन पिछले वर्ष के मुक़ाबले घट ही गया। वह ऐसे कि जिस रफ़्तार से मुद्रास्फ़ीति बढ़ी, उससे भी कम बढ़ोतरी रक्षा बजट पर की गई। ऑपरेशन और मेंटेनेंस के मद में पिछले साल से कुल 3.73 प्रतिशत अधिक आवंटित तो किया गया, लेकिन मुद्रास्फ़ीति 5 फ़ीसदी तक रही। यानी अगर औसत मुद्रास्फीति को हिसाब में ले लें, तो बढ़ोत्तरी नकारात्मक हो गयी। सेना के आधुनिकीकरण की 125 योजनाओं के लिए 29033 करोड़ के इंतज़ाम का वादा किया गया था, पर 21338 करोड़ रुपये ही आवंटित किये गये।
2. गोला-बारूद
कमेटी को बताया गया कि सेना के पास किसी भी सूरत में दस दिन काम चलाने का रिज़र्व रहना ज़रूरी है (क्योंकि किसी भी बड़े युद्ध की परिस्थिति में सेना फ़ाइलों की मगज़मारी में समय ख़राब नहीं कर सकती) इस अकाउंट में 9980 करोड़ रुपए की ज़रूरत बतायी गयी थी, लेकिन कुल 3600 करोड़ रुपये ही आवंटित हुए। अभी सेना के बजट का क़रीब 63 फ़ीसदी वेतन देने में निकल जाता है। मेंटेंनेंस और ऑपरेशनल ज़रूरतों के लिए 20 फ़ीसदी और क़रीब 3 फ़ीसदी इंफ्रास्ट्रक्चर पर ख़र्च होता है।
- इसके बाद बचा 14 फ़ीसदी धन ही आधुनिकीकरण के लिए ख़र्च किया जाता है, जबकि सेना पिछले कई सालों से इसको कम से कम 22 से 25 फ़ीसदी करने को कहती रही है। दुनिया की आधुनिक सेनाएँ कम-से-कम 40 फ़ीसदी पैसा इस मद में ख़र्च कर रही हैं।
3. सेना में ‘मेक इन इंडिया’
सेना ने ‘मेक इन इंडिया’ के तहत 25 प्रोजेक्ट तय किए थे। इनमें से दो तिहाई तो शुरुआती महीनों में ही बजट की कमी से बंद हो गए। बाक़ी के लिए भी बजट इतना कम है कि इनकी भी अकाल मृत्यु संभावित है या इनके पूरा होने की उम्र अनिश्चितकाल के लिए बढ़ जाएगी।
4. अफ़सरों की कमी
सेना में अफ़सरों की कमी एक बड़ी समस्या बनती जा रही है। अभी हमारी सेनाओं में कम से कम 16 फ़ीसदी अफ़सरों की कमी है, जिनके पद सृजित हैं।
5. ट्रेनिंग प्रभावित
वायुसेना के प्रतिनिधि ने कमेटी को बताया कि बजट में कमी की वजह से मरम्मत के लिए ज़रूरी कलपुर्जे और ईंधन ख़रीदना मुश्किल हो रहा है। इससे हमारे हवाई बेड़े की मेंटेनेंस और ट्रेनिंग प्रभावित हो रही है।
6. इंतज़ाम घटिया
कमेटी ने इस बात पर रिपोर्ट में कड़ी नाराज़गी जाहिर की थी कि हमारे रक्षा प्रतिष्ठानों (समुद्री अड्डों समेत) की सुरक्षा के मौजूदा इंतज़ाम बहुत ही घटिया हैं। मतलब यह कि सैन्य व अन्य सुरक्षा प्रतिषठानों की अपनी ख़ुद की सुरक्षा व्यवस्था इतनी लचर है कि वे आसानी से आतंकवादी हमलों की चपेट में आ जाते हैं। इसी सन्दर्भ में समिति ने सुन्जुवान आर्मी कैम्प पर आतंकवादी हमले का उल्लेख किया था और कहा था कि हमें इंक्वायरी और पॉलिसी अनाउंसमेंट मत सुनाइए, हमको बताइए कि सिक्योरिटी सिस्टम को मज़बूत करने का आपका क्या प्लान है इन प्रतिष्ठानों और मोर्चों के आधुनिकीकरण के लिए आपकी क्या योजना है इन ठिकानों की सुरक्षा के लिए कौन-सी आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल हो रहा है अभी तक क्यों नहीं हुआ7. हालात ख़राब
सेना के प्रतिनिधि ने कमेटी के सामने अपना बयान देते हुए कहा कि 'कुल मिलाकर हालात बहुत ही ख़राब हैं।'
8. तत्काल आधुनिकीकरण की ज़रूरत
सेना के प्रतिनिधि ने आगे कहा कि यदि हम दो मोर्चों पर युद्ध के लिए सेना को तैयार रखना चाहते हैं, तो तत्काल सेना के आधुनिकीकरण के काम को देश में सबसे बड़ी प्राथमिकता के तौर पर ही लेना होगा, फिलहाल न तो स्पष्ट नीति पर कोई ध्यान है और न ही बजट उपलब्ध है।
यह एक बड़ी रिपोर्ट थी जिसे बड़ी ज़िम्मेदारी के साथ तैयार किया गया था, लेकिन रिपोर्ट को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। खंडूरी को इसकी सज़ा मिली और रिटायर्ड मेजर जनरल के तौर पर लम्बे प्रोफ़ेशनल सैनिक अनुभव वाले खंडूरी की जगह बिना किसी सैन्य अनुभव वाले रिटायर्ड राजनेता कलराज मिश्र को इस समिति की कमान थमा देना मोदी जी की नीयत का और समझ का प्रत्यक्ष आइना है।
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