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एनआरसी के लिए आंदोलन छेड़ने वाली बीजेपी अब क्यों है इसके ख़िलाफ़?

एनआरसी के लिए आंदोलन छेड़ने वाली बीजेपी अब क्यों है इसके ख़िलाफ़?

जिस बीजेपी ने एनआरसी को सबसे बड़ा च़ुनावी मुद्दा बनाया था और पूरे राज्य में इसकी लहर फैला दी थी, वह अब नेशनल रजिस्टर ऑफ़ सिटीजंस का विरोध भला क्यों कर रही है?

जिस भारतीय जनता पार्टी ने नेशनल रजिस्टर ऑफ़ सिटीजंस यानी एनआरसी को मुद्दा बना कर असम का चुनाव जीता, उसी के नेता अब खुले आम इसका विरोध कर रहे हैं। उनका तर्क यह है कि इससे विदेशियों की पड़ताल नहीं हो सकेगी, उनकी शिनाख़्त नहीं हो सकेगी। पार्टी के नेताओं का यह भी कहना है कि कुछ असली भारतीयों के नाम छूट गए हैं जबकि कुछ विदेशियों को इस सूची में शामिल कर लिया गया है। लेकिन मामला इतना आसान भी नहीं है। ऐसा लगता है कि बीजेपी इस मुद्दे पर अपने ही जाल में फँस गई है। 

अब क्यों नाराज़ है बीजेपी

अब वही बीजेपी एनआरसी से असंतुष्ट दिख रही है और उसका खुले आम विरोध कर रही है, जो इसका सबसे बड़ा पैरोकार थी। जिन हिमंत विस्वशर्मा ने सबसे आगे बढ़ कर एनआरसी की वकालत की थी, इसे लागू करने की सबसे उग्र कोशिश की थी, वही आज इसका सबसे मुखर विरोध भी कर रहे हैं। 

असम सरकार में मंत्री विस्वसर्मा ने एक कड़ी चिट्ठी लिख कर आरोप लगाया है कि 1971 के पहले उस समय के पूर्वी पाकिस्तान यानी आज के बांग्लादेश से शरणार्थी बन कर असम आए कई लोगों के नाम सूची में शामिल नहीं किए गए हैं। उन्होंने ट्वीट कर कहा, 'बांग्लादेश से 1971 मे शरणार्थी बन कर आए कई भारतीय नागरिकों के नाम एनआरसी में शामिल नहीं किए गए हैं क्योंकि अधिकारियों ने उनके शरणार्थी सर्टिफिकेट को स्वीकार ही नहीं किया। कुछ दूसरे लोगों के नाम इसलिए शामिल कर लिए गए कि उन्होंने अपने पूर्वजों के काग़ज़ात में हेराफेरी कर लिया।' 

विस्वसर्मा ने एनआरसी की अंतिम सूची जारी होने के एक दिन पहले यानी शुक्रवार को ही कहा था कि इस तरीके से राज्य में रह रहे विदेशियों की पहचान नहीं हो सकेगी और इस समस्या का निपटारा नहीं हो सकेगा।

'असली भारतीयों के नाम नहीं'

उन्होंने यह भी कहा था कि केंद्र और राज्य सरकारें विदेशियों की शिनाख़्त करने और उसने निपटने के दूसरे तरीके अपनाएगी। उन्होंने कहा था, 'इतने सारे असली भारतीयों के नाम बाहर छूट जाने के बाद यह कैसे कहा जा सकता है कि यह दस्तावेज़ असमिया समाज के लिए बेहद महत्वपूर्ण है'

हमारी दिलचस्पी एनआरसी में नहीं है, यह असम से विदेशियों खदेड़ने के लिए कोई क्वार्टर फ़ाइनल नहीं, सेमीफ़ाइनल नहीं है। थोड़ा इंतजार कीजिए, फिर आप देखिएगा कि बीजेपी सरकार किस तरह इसका फ़ाइनल ले कर आती है।


हिमंत विस्वसर्मा, मंत्री, असम सरकार

उन्होंने इसके यह भी कहा कि 'यह महत्वपूर्ण नहीं है कि कौन सूची में शामिल है और कौन इससे बाहर रह गया, हमें पूरी शांति बनाए रखनी है, हमें यह देखना है कि हिन्दू, मुसलमान, सिख, ईसाई, जिनके नाम सूची में नहीं है उन पर कोई फ़ैसला फॉरनर्स ट्राइब्यूनल ही दे सकता है।'  

विस्वसर्मा ने कहा, 'जिन 19 लाख लोगों के नाम सूची में नहीं हैं, उनमें से 3.80 लाख ऐसे लोग हैं जो अपील करना ही नहीं चाहते या जिनकी मौत हो चुकी है, इसके अलावा कुछ लोगों की मौत हो चुकी है। इस तरह तक़रीबन 5-6 लाख लोग हैं. ये ऐसे लोग हैं जो धार्मिक अत्याचार की वजह से बांग्लादेश से शरणार्थी बन कर आए थे।' 

कैसे बदला बीजेपी का रुख

बीजेपी के इस बदले हुए रुख को समझने के लिए यह याद करना ज़रूरी है कि किस तरह बीजेपी विपक्ष में रहते हुए और राज्य की सत्ता में आने के बाद भी कहती रही कि राज्य का जनसंख्या अनुपात बिगड़ गया है और यह पड़ोसी बांग्लादेश से आए लोगों की वजह से हुआ है।  

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक ने चुनाव प्रचार में कहा था कि किस तरह दूसरे देश से आए एक ख़ास समुदाय के लोगों ने राज्य का जनसंख्या अनुपात बिगाड़ कर रख दिया है, इसे अब और बर्दाश्त नहीं किया जाएगा और एनआरसी लागू कर इस समस्या से छुटकारा पाया जाएगा। 

बीजेपी के बड़े नेताओं ने सीधे मुसलमानों का नाम तो नहीं लिया, पर उनकी मंशा इससे समझी जा सकती है कि बीजेपी एक विधेयक लाना चाहती थी जिसमें यह कहा गया था कि पड़ोसी देशों से आए हुए हिन्दू, सिख, बौद्ध और ईसाई लोगों को भारत में नागरिकता मिलनी चाहिए।

इसमें मुसलमानों को नहीं शामिल करना क्या ज़ाहिर करता है, यह साफ़ है। इस मुद्दे पर बीजेपी खुले आम कहती थी किन लोगों को भारत की नागरिकता इसलिए दी जानी चाहिए क्योंकि वे अपने देश में बहुसंख्यक के सताए हुए हैं और अत्याचार से बचने के लिए भारत आए हैं। 

लेकिन जब एनआरसी की सूची बीते साल जारी हुई तो राज्य बीजेपी के नेताओं के होश उड़ गए क्योंकि इसमें जिन 41 लाख लोगों के नाम शामिल नहीं हुए थे, उनमें हिन्दू भी थे। बीजेपी पर यह आरोप लगने लगा कि इनकी वजह से इन हिन्दुओं को अब भुगतना होगा, वे राज्यविहीन क़रार दिए जाएँगे, गिरफ़्तार किए जाएंगे या उन्हें दूसरी तरह की यातनाओं से गुजरना होगा क्योंकि वे विदेशी माने जाएंगे। इसके बाद स्थानीय लोगों के दबाव में आकर बीजेपी ने अपना रुख पहले तो नरम किया, उसके बाद कहने लगे कि किसी को बाहर नहीं भेजा जाएगा। फिर राज्य सरकार कहने लगी कि वह ऐसे लोगों की क़ानूनी मदद करेगी। स्थानीय लोगों का दबाव और बढ़ा तो बीजेपी एनआरसी के ख़िलाफ़ हो गई। अब वह खुले आम इसका विरोध कर रही है। 

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