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यूपी को लेकर अमित शाह की छटपटाहट क्या बताती है?

यूपी को लेकर अमित शाह की छटपटाहट क्या बताती है?

गृह मंत्री दिल्ली का मखमली गद्दा छोड़कर यूपी में डटे हुए हैं। उनकी ताबड़तोड़ रैलियों में भीड़ भी खूब जुट रही है लेकिन इसके बावजूद वो यूपी में बीजेपी की जीत को लेकर भरोसा नहीं कर पा रहे हैं। इसीलिए आज से उनके भाषण का अंदाज भी बदल गया। हालात ये हैं कि उन्हें चुनाव का मैनजमेंट ठीक करने के लिए रोजाना बैठकें करना पड़ रही हैं।

गृह मंत्री अमित शाह दिल्ली लौटने का नाम ही नहीं ले रहे हैं। वे पिछले चार-पांच दिनों से यूपी में डटे हुए हैं। आज उन्नाव, मुरादाबाद, अलीगढ़ में तीन रैली और लखनऊ में बैठक करने के बाद वो अयोध्या जा रहे हैं। कल सारा दिन अयोध्या में रहेंगे। अभी चुनाव के तारीख की घोषणा नहीं हुई है लेकिन जिस तरह एक-एक दिन में वो तीन-तीन रैलियां कर रहे हैं, वो बताता है कि बीजेपी किसी भी तरह यूपी का किला जीतना चाहती है। 

अभी तक मोदी और अमित शाह के जो बयान हिन्दू-मुसलमान-पाकिस्तान को लेकर आए हैं, उनका बहुत खास असर यूपी के मतदाताओं पर पड़ता नहीं दिख रहा है। इसलिए बयानों की भाषा अब बदल रही है। आज ही उसकी झलक अमित शाह की रैली में दिखी। अमित शाह की रैलियां ये भी बताती हैं कि इस बार बीजेपी को यूपी में कड़ा मुकाबला करना पड़ रहा है। ध्रुवीकरण की तमाम कोशिशों के बावजूद वो जीत के प्रति आश्वस्त नहीं लग रही है। इसलिए अमित शाह अब माइक्रो लेवल की बैठकें कर रहे हैं।

रैलियां और भीड़ क्या बता रही है

प्रधानमंत्री मोदी की रैली हो या अमित शाह की रैली, दोनों जबरदस्त भीड़ खींच रहे हैं। हालांकि राज्य में बीजेपी की सरकार है और सरकारी मशीनरी का इस्तेमाल कर भीड़ लाई जा सकती है। लेकिन टीवी पर इसका लाइव प्रसारण होने से बाकी शहरों और कस्बों में तो पार्टी की बेहतर छवि दिखती है। लेकिन अगर इन रैलियों में आ रही भीड़ का गौर से अध्ययन किया जाए तो लगता है कि सारी भीड़ भाजपा के नेताओं, सांसदों और विधायकों ने मैनेज की है। खुद से आई भीड़ झंडा वगैरह लेकर नहीं आती है। बीजेपी की टोपी पहने, मोदी जिन्दाबाद करते हुए आने वाले साफ बता देते हैं कि वे कार्यकर्ता हैं।

अगर हर विधायक, सांसद और टिकट के लिए आतुर नेताओं को भीड़ का टारगेट दे दिया गया तो वो नेता उतनी भीड़ तो ले ही आएगा। यानी एक लाख तक की भीड़ लाना कोई बड़ी बात नहीं है। किसी मैदान में अगर टेंट वगैरह लगातर 50 हजार से लेकर एक लाख लोगों की भीड़ भर दी जाए तो वो भीड़ बहुत लगती है। यही नुस्खा मोदी और शाह की हर रैली के लिए सेट किया गया है। इसकी व्यूह रचना इस ढंग से की गई है कि सांसद-विधायक प्रतिष्ठा का प्रश्न बनाकर भीड़ लाते हैं।

उन्नाव, मुरादाबाद और अलीगढ़ में नेताओं और कार्यकर्ताओं के आने, नारा लगाने का तरीका एक जैसा था। किसी रैली का रंग एक दूसरे से जुदा नहीं था। यहां तक की रैली में आने वाली भीड़ में भी कोई फर्क नहीं था। ऐसा नहीं है कि रैली में लोग एकदम से नहीं आए। मुरादाबाद की रैली में तो चंद मुसलमान भी अमित शाह की रैली में आने की कोशिश करते देखे गए, ये अलग बात है कि उन्हें बाहर ही रोक दिया गया। पुलिस अधिकारियों ने उनसे कहा कि वे पंडाल के अंदर नहीं जा सकते। उन्हें बाहर ही बैठना पड़ेगा। उनमें से सिर्फ एक शख्स के हाथ में बीजेपी का झंडा था। समझा जाता है कि इन्हें आरएसएस से जुड़े राष्ट्रीय मुस्लिम मोर्चा के पदाधिकारी लेकर आए थे।

सपा से मुकाबला

मोदी और शाह ने एक रणनीति के तहत अपनी रैलियों में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से रूप से समाजवादी पार्टी और अखिलेश यादव का नाम लेना शुरू कर दिया है। बीजेपी अपना मुकाबला सपा से चाहती है। लेकिन उसके लिए जब तक वो बार-बार सपा और अखिलेश का नाम नहीं लेगी, तब तक सपा मुकाबले में आएगी ही नहीं। सपा और मुसलमानों पर टारगेट करने से बीजेपी का कोर वोटर और संगठित होने लगता है। अमित शाह के आज के भाषणों से यह बात साफ भी हो गई।

अमित शाह ने उन्नाव की रैली में उन दौर को याद दिलाया जब अयोध्या में कार सेवकों पर तत्कालीन मुलायम सिंह यादव की सरकार में गोलियां चली थीं। मुरादाबाद की रैली में उन्होंने कहा कि अखिलेश यादव के कार्यकाल में 700 दंगे हुए थे। अलीगढ़ की रैली में धारा 370 का जिक्र किया। बता दें कि मुरादाबाद और अलीगढ़ में दंगों का इतिहास है। इसलिए इन दोनों रैलियों में अखिलेश पर सीधा हमला बोला गया। मुरादाबाद में दंगों का जिक्र करने का अपना निहितार्थ है।

शाह ने आज यह भी याद दिलाया कि बीजेपी ने अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण शुरू करा दिया है। यह हमारी पार्टी का वादा था।

 - Satya Hindi

चाणक्य की रणनीति

बीजेपी के नेताओं ने कहा कि पार्टी यूपी में 300 सीटों के लिए मेहनत कर रही है। अलीगढ़ की रैली में अमित शाह ने 300 सीटें जीतने का दावा भी कर दिया। अमित शाह ने जो रणनीति बनाई है, उसके मुताबिक वो पहले दौर में हर जिले मुख्यालय या बड़े कस्बों में रैली कर रहे हैं। चुनाव की तारीख घोषित होने के बाद वे बड़े ग्रामीण क्षेत्रों का रुख करेंगे। भीड़ की असली परीक्षा उन्हीं इलाकों में होगी। खासतौर पर पूर्वांचल के ग्रामीण क्षेत्रों में मैनेज की गई भीड़ ले जाना आसान नहीं होगा। क्योंकि शहरों में ही नेता गांवों से बहला-फुसलाकर भीड़ ले आते हैं। लेकिन गांवों की रैली में शहर के लोग आने से रहे। मोदी की रैलियों का पहला चरण निपट चुका है। अमित शाह का भी अंतिम दौर में चल रहा है। चुनाव की तारीख घोषित होने, आचार संहिता लगने के बाद भीड़ का मैनेजमेंट देखने लायक होगा।

अमित शाह पिछले एक हफ्ते से या ता वाराणसी में रात गुजारते हैं या फिर लखनऊ में। वहीं पर वे तमान कोर ग्रुप की बैठक करते हैं। इन बैठकों में सिर्फ टॉप लेवल के नेता ही आते हैं। किसी पदाधिकारी को नहीं आने दिया जाता। विशेष परिस्थितियों में विधायक को बुलाया जाता है। इन सारी बैठकों में सीएम योगी आदित्यनाथ और डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य को जरूर बुलाया जाता है।

शाह कल अयोध्या में रहेंगे। वहां उन्होंने यूपी पर बीजेपी की कोर कमेटी की बैठक बुलाई है। इन तमाम बैठकों में क्या फैसले लिए जाते हैं, उसकी जानकारी मीडिया तक नहीं आती है। इस संबंध में प्रदेश के बड़े बीजेपी नेता बयान भी नहीं देते हैं।

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