+
कौन होगा अगला प्रधानमंत्री?

कौन होगा अगला प्रधानमंत्री?

मोदी ने अपने प्रचार में करोड़ों-अरबों रुपये ख़र्च कर दिए। विदेश-यात्राओं में अब तक के सभी प्रधानमंत्रियों को मात दे दी और कुल मिलाकर प्रचार मंत्री ही साबित हुए।

लोकसभा चुनाव 2019 की घोषणा हो चुकी है, लेकिन असली सवाल यह है कि अगला प्रधानमंत्री कौन बनेगा 2014 के चुनाव के पहले शायद मैंने ही सबसे पहले यह लिखना और बोलना शुरू किया था कि भारत के अगले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी होंगे। सारे देश में घूम-घूमकर मैंने और बाबा रामदेव ने लाखों-करोड़ों लोगों को संबोधित किया। 

नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करवाने के लिए मुझे संघ और बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व से भी आग्रह करना पड़ा था। इस कारण कुछ वरिष्ठ मित्रों की अप्रियता भी मुझे झेलनी पड़ी लेकिन क्या अब 2019 में भी मैं वही चाहूंगा, जो मैं 2014 में चाहता था नहीं, बिल्कुल नहीं। इसका कारण स्वयं मोदी ही हैं। जिन्हें जनता ने प्रधानमंत्री के पद पर बैठाया, वह कुल मिलाकर प्रचार मंत्री ही साबित हुए। 

प्रधानमंत्री ने अपने प्रचार की ख़ातिर देश के करोड़ों-अरबों रुपये ख़र्च कर दिए। विदेश-यात्राओं और विज्ञापनबाज़ी में अब तक के सभी प्रधानमंत्रियों को मात दे दी।

जुमलेबाज़ी बनकर रह गए अभियान

प्रधानमंत्री ने दर्जनों सराहनीय अभियान घोषित किए लेकिन सबके सब जुमलेबाज़ी बनकर रह गए। पार्टी के अन्य नेताओं और साधारण कार्यकर्ताओं को बुहारकर एक कोने में सरका दिया और नौकरशाहों के दम पर पांच साल काट दिए। देश के सच्चे नेता बनने की बजाय नौकरशाहों के नौकर बन गए। नौकरशाहों ने हाँ में हाँ मिलाई और आपको सर्वज्ञजी बना दिया। 

नेता और जनता के बीच का दोतरफ़ा संवाद शुरू ही नहीं हुआ। सिर्फ़ भाषण ही भाषण हुए। एक भी पत्रकार-परिषद नहीं हुई। एक दिन भी जनता दरबार नहीं लगा। बीजेपी और संघ भी दरी के नीचे सरका दिए गए। मोदी स्वयं की सेवा करने वाले ‘स्वयंसेवक’ बन गए।

मोदी सरकार के कार्यकाल में विचारधारा की जगह व्यक्तिधारा चल पड़ी। राम मंदिर को अदालत के मत्थे मढ़ दिया। कश्मीर और धारा 370 अधर में लटक गए। नोटबंदी, जीएसटी, रफाल-सौदा जैसे अपूर्व काम सरकार ने हाथ में लिए ज़रूर लेकिन मंदबुद्धि, अनुभवहीनता और अहंकार के कारण उनके नतीजे भी उल्टे पड़ गए।

अर्थव्यवस्था और रोज़गार के मामले भी डाँवाडोल हैं। किसानों, अनुसूचितों और ग़रीबों को अब चुनाव के डर के मारे कुछ राहत ज़रूर मिली है, लेकिन कुछ पता नहीं कि वह वोटों में तब्दील होगी या नहीं

पुलवामा के बाद जैसा कि मेरा आग्रह रहा, आतंकवाद के गढ़ पर सीधा हमला हो, वह हुआ। लेकिन 350 आतंकवादियों के मारे जाने के झूठ ने सरकार की इज्जत पैंदे में बिठा दी। इसी के दम पर चुनाव जीतने की कोशिश में मोदी को लेने के देने पड़ सकते हैं। हो सकता है कि भारत की भोली जनता इसी कागज की नाव पर सवार हो जाए। और वह यदि हो जाए और बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरे तो भी मोदी को चाहिए कि वह ख़ुद को अपने ‘मार्गदर्शक मंडल’ में शामिल कर लें और प्रधानमंत्री की कमान अपने से कहीं अधिक योग्य नितिन गडकरी, राजनाथ सिंह या सुषमा स्वराज के हाथों में सौंप दें।

सत्य हिंदी ऐप डाउनलोड करें