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कफ सिरप से मौत? उज़्बेकिस्तान का सहयोग करेगा WHO, भारत में भी जाँच

कफ सिरप से मौत? उज़्बेकिस्तान का सहयोग करेगा WHO, भारत में भी जाँच

भारत में बने कफ सिरप के सेवन से उज़्बेकिस्तान में कथित तौर पर बच्चों की मौत के बाद अब जानिए, किस स्तार पर इसकी पड़ताल हो रही है?

भारत में बने कफ सिरप के सेवन से गाम्बिया में कथित तौर पर बच्चों की मौत के बाद अब उज़्बेकिस्तान में भारतीय दवा के सेवन से मौत की शिकायत से खलबली मची है। सवाल उठ रहे हैं कि क्या भारत में निर्मित दवा कंपनियाँ मानकों का ध्यान नहीं रख रही हैं? गाम्बिया के मामले में जहाँ विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी डब्ल्यूएचओ ने चेतावनी दी थी, वहीं अब उज़्बेकिस्तान के मामले में सहयोग का भरोसा दिया है। इधर भारत में भी इस मामले की जाँच शुरू कर दी गई है।

द इंडियन एक्सप्रेस ने आधिकारिक सूत्रों के हवाले से लिखा है कि केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन यानी सीडीएससीओ ने उज्बेकिस्तान में 18 बच्चों की कथित तौर पर एक भारतीय फर्म द्वारा निर्मित खांसी की दवाई से मौत के मामले में जाँच शुरू की है।

डब्ल्यूएचओ ने एएनआई के एक ईमेल के जवाब में कहा, 'डब्ल्यूएचओ उज्बेकिस्तान में स्वास्थ्य अधिकारियों के संपर्क में है और आगे की जाँच में सहायता करने के लिए तैयार है।'

ये प्रतिक्रियाएँ इसलिए आ रही हैं कि उज़्बेकिस्तान के स्वास्थ्य मंत्रालय ने दावा किया है कि एक भारतीय दवा कंपनी द्वारा निर्मित दवाओं का सेवन करने के बाद देश में कम से कम 18 बच्चों की जान चली गई है। उज़्बेकिस्तान के स्वास्थ्य मंत्रालय ने एक बयान में कहा है कि मरने वाले बच्चों ने नोएडा स्थित मैरियन बायोटेक द्वारा निर्मित डॉक-1 मैक्स सिरप का सेवन किया था। मंत्रालय ने दावा किया है कि अब तक सांस की गंभीर बीमारी वाले 21 में से 18 बच्चों की मौत डॉक-1 मैक्स सिरप लेने के बाद हुई है।

वहाँ के मंत्रालय के बयान में कहा गया है, 'यह पाया गया कि मृत बच्चों ने अस्पताल में भर्ती होने से पहले इस दवा को 2-7 दिनों के लिए दिन में 3-4 बार 2.5-5 एमएल लिया, जो बच्चों के लिए दवा की मानक खुराक से अधिक है।'

मैरियन बायोटेक प्राइवेट लिमिटेड को 2012 में उज़्बेकिस्तान में पंजीकृत किया गया था। उज़्बेकिस्तान के मंत्रालय के बयान में कहा गया है, 'चूँकि दवा का मुख्य घटक पेरासिटामोल है, माता-पिता द्वारा डॉक-1 मैक्स सिरप को ग़लत तरीक़े से खुद से या फार्मेसी विक्रेताओं की सिफारिश पर ठंड से बचाव के उपाय के रूप में इस्तेमाल किया गया था। और यह रोगियों की स्थिति बिगड़ने का कारण था।' 

मंत्रालय के बयान में यह भी कहा गया है कि प्रारंभिक प्रयोगशाला अध्ययनों से पता चला है कि डॉक-1 मैक्स सिरप की इस श्रृंखला में एथिलीन ग्लाइकॉल होता है। इसे ज़्यादा मात्रा में देना घातक होता है।

उज़्बेकिस्तान में कुल सात जिम्मेदार कर्मचारियों को लापरवाही के कारण उनके पदों से बर्खास्त कर दिया गया और यहाँ तक कि कई विशेषज्ञों पर अनुशासनात्मक कार्रवाई की गई। वर्तमान में डॉक -1 मैक्स दवा के टैबलेट और सिरप को निर्धारित तरीके से देश के सभी फार्मेसियों में बिक्री से वापस ले लिया गया है। 

कुछ महीने पहले ही गाम्बिया में 66 बच्चों की मौत का मामला सामने आया था। गाम्बिया में बच्चों की मौत के बाद विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी डब्ल्यूएचओ द्वारा भारतीय फार्मा कंपनी मेडेन फार्मास्युटिकल्स को लेकर आगाह किया गया था।

डब्ल्यूएचओ के बाद हरियाणा सरकार के ड्रग्स अधिकारियों ने कंपनी की दवा के निर्माण को लेकर पड़ताल की। अधिकारियों ने नियमों के उल्लंघन किए जाने को लेकर नोटिस जारी किया।

स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक, डब्ल्यूएचओ की ओर से ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया को बीती 29 सितंबर को इन कफ सिरप को लेकर अलर्ट भेजा गया था। इसके बाद सेंट्रल ड्रग्स स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गेनाइजेशन ने इस मामले में जांच शुरू की। 

लेकिन इस मामले में अब भारत के ड्रग कंट्रोलर ने गाम्बिया में हुई मौत को लेकर डब्ल्यूएचओ को पत्र लिखा है। इसने लिखा है कि बच्चों की मौत के लिए भारतीय कंपनी द्वारा निर्मित खाँसी के सिरप को बिना जाँच के ही कठघरे में खड़ा करना सही नहीं है। उसनें कहा कि उस कंपनी द्वारा निर्मित खाँसी के चार कफ सिरप के नमूने की जाँच की गई और चारों उत्पाद मानक गुणवत्ता वाले पाए गए हैं।

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