हाथरस में सत्संग में 121 लोगों की मौत हो गई तो क्या सत्संग करने वाले नारायण साकार हरि उर्फ 'भोले बाबा' ज़िम्मेदार नहीं हैं? आख़िर एफ़आईआर में उनका नाम क्यों नहीं है? और उनकी गिरफ़्तारी क्यों नहीं हो पाई है?
इस घटना को लेकर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा है कि जाँच इस बात पर भी केंद्रित होगी कि क्या इस त्रासदी के पीछे कोई 'साजिश है। 'भोले बाबा' के वकील ने भी 'असामाजिक तत्वों' को दोषी ठहराया है और जोर देकर कहा है कि यह एक 'सुनियोजित साजिश थी। यानी इस हिसाब से क्या मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का इशारा और 'भोले बाबा' की साज़िश का दावा एक ही लाइन पर नहीं है? पुलिस परमिशन को नज़रअंदाज़ कर आयोजन किए गए सत्संग में भगदड़ की जाँच पूरी होने से पहले ही आख़िर साज़िश की आशंका क्यों जताई जा रही है?
अब यदि प्रशासन की तरफ़ से कार्रवाई को देखें तो एफआईआर में भी 'भोले बाबा' का नाम नहीं है। इसके बदले में उनके सहयोगी और कार्यक्रम के मुख्य आयोजक मुख्य आरोपी हैं। एफआईआर में स्थानीय प्रशासन को सभी जिम्मेदारियों से मुक्त कर दिया गया है और आयोजकों को कुप्रबंधन के लिए दोषी ठहराया गया है। हालाँकि, राज्य सरकार ने आश्वासन दिया है कि दोषी किसी भी व्यक्ति को बख्शा नहीं जाएगा।
यौन उत्पीड़न के छह केस
वैसे, 'भोले बाबा' कई-कई मुक़दमों का सामना कर चुके हैं। बाबा पर अलग-अलग शहरों में 6 मुकदमे दर्ज हैं, जिनमें 5 मुकदमे यौन उत्पीड़न के शामिल हैं। न्यूज़24 की एक रिपोर्ट के अनुसार इटावा, कासगंज, फर्रुखाबाद, दौसा और आगरा में बाबा के खिलाफ यौन उत्पीड़न के मामले चल रहे हैं। दुष्कर्म के एक मामले में 'भोले बाबा' जेल की सजा भी काट चुके हैं।
'भोले बाबा' स्थानीय उपदेशक हैं। उनके अनुयायी उनका सम्मान करते हैं, उनका मानना है कि वे एक 'आचार्य' हैं जो इलाज करते हैं, एक ओझा हैं जो बुरी आत्माओं से छुटकारा दिलाते हैं, और एक जादुई शक्तियों वाले भगवान हैं जो उनकी इच्छाएं पूरी कर सकते हैं।
जादुई शक्तियों के उनके कथित दावे के कारण उनको 2000 में आगरा में गिरफ्तार भी किया गया था। तब उन्होंने कथित तौर पर एक 16 वर्षीय लड़की के शव को उसके परिवार से जबरन छीन लिया था और दावा किया था कि वह उसे वापस जीवित कर देंगे। बाद में यह केस बंद कर दिया गया था।
क्या वोटबैंक से बच रहे 'भोले बाबा'?
हाथरस भगदड़ मामले में सूरज पाल उर्फ नारायण साकार हरि उर्फ भोले बाबा का एफ़आईआर में नाम क्यों नहीं है? क्या आयोजकों को नामजद कर बाबा को बचाने की कोशिश हो रही है? अब तक बाबा सामने क्यों नहीं आ रहे हैं? क्या वोटबैंक की ताक़त से उन्हें बचाया जा रहा है? सूरज पाल उर्फ भोले बाबा दलित समुदाय से आते हैं। उनके कई राज्यों में अनुयायी हैं। ऐसे अनुयायियों की संख्या लाखों में है। और ये वोट बैंक भी हैं!
कई लोगों ने कहा कि उन्हें 'भोले बाबा' की ओर आकर्षित करने वाली बात यह थी कि वे भी दलित परिवार से थे और वह किसी भी तरह का चढ़ावा नहीं मांगते थे। अपनी बहन तारामती के साथ सत्संग में आई उर्मिला देवी ने द इंडियन एक्सप्रेस से कहा, 'बाबा न तो कुछ लेते हैं और न ही कुछ मांगते हैं। अपने सत्संग में वे हमें झूठ न बोलने और मांस, मछली, अंडा और शराब न खाने की सलाह देते हैं।'
'भोले बाबा' पहले कासगंज में कांस्टेबल सूरज पाल थे। 1990 के दशक में उत्तर प्रदेश पुलिस छोड़ने के बाद वह एक स्वयंभू धार्मिक उपदेशक बन गए। अब दो दशकों से अधिक समय में, उन्होंने काफी अनुयायी जुटा लिए हैं। ज्यादातर निम्न आय वाले दलित परिवार, जहाँ पुरुष मजदूर, राजमिस्त्री, कृषि मजदूर, सफाई कर्मचारी, बढ़ई या कालीन बेचने वाले के रूप में काम करते हैं।
हाथरस जिले के डोनकेली गांव के निवासियों के अनुसार, हर गांव में ‘भोले बाबा’ के 10 से 12 सेवादार हैं। एक ग्रामीण ने अख़बार से बताया, 'वे आते हैं और गांव के लोगों को सत्संग के बारे में बताते हैं, और उन्हें कारों और बसों में कार्यक्रम स्थल तक ले जाते हैं।' उनके कई अनुयायी अपने गले में उनकी तस्वीर वाला पीला लॉकेट पहनते हैं।
इन्हीं वजहों से दिल्ली, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तराखंड जैसे राज्यों में काफी तादाद में उनके अनुयायी हैं। इन राज्यों में दलितों की आबादी काफ़ी संख्या में है। उत्तर प्रदेश में 22 फ़ीसदी, हरियाणा में 21 फ़ीसदी, पंजाब में 32 फ़ीसदी, उत्तराखंड में 20 फ़ीसदी, एमपी व राजस्थान में भी क़रीब 15-16 फ़ीसदी दलित आबादी है। किसी भी राजनीतिक पार्टी के लिए ये बड़ा वोटबैंक हो सकता है।
बहरहाल, हाथरस की इस घटना की जाँच एक विशेष जांच दल यानी एसआईटी कर रहा है। राज्य सरकार ने भगदड़ की त्रासदी की जांच के लिए एक सेवानिवृत्त उच्च न्यायालय के न्यायाधीश की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय पैनल का गठन भी किया है। लेकिन सवाल वही है कि क्या यह जाँच नारायण साकार हरि उर्फ 'भोले बाबा' तक पहुँचेगी, उनकी गिरफ़्तारी हो पाएगी?