मोहम्मद जुबैर कौन हैं और आपका सरोकार उनसे क्यों होना चाहिए
खबरें तमाम न्यूज पोर्टल, अखबारों और टीवी चैनलों के जरिए आप तक पहुंचती हैं। इंटरनेट और सोशल मीडिया के उभार के बाद फेक खबरें यानी फर्जी समाचार आपको परोसे जाने लगे। आपको स्वार्थ वाली खबरें सच की चाशनी में लपेट कर पेश की जाने लगीं। इसी दौर में एक शख्स ने महसूस किया कि लोगों को सत्य खबरें जाननी चाहिएं। वही शख्स मोहम्मद जुबैर था।
मोहम्मद जुबैर फैक्ट चेकिंग वेबसाइट ऑल्ट न्यूज़ के सह-संस्थापक हैं, जिसकी स्थापना उन्होंने पूर्व सॉफ्टवेयर इंजीनियर प्रतीक सिन्हा के साथ 9 फरवरी 2017 में की थी। प्रतीक सिन्हा एक प्रशिक्षित भौतिक विज्ञानी, वकील, मानवाधिकार कार्यकर्ता है। ऑल्ट न्यूज़ की टीम ने हार्पर कॉलिन्स द्वारा प्रकाशित "इंडिया मिसिनफॉर्मेड: द ट्रू स्टोरी" नामक एक पुस्तक भी लिखी है, जिसे मार्च 2019 में प्रकाशित किया गया था।
ऑल्ट न्यूज में 12 पूर्णकालिक कर्मचारी हैं और 1.3 मिलियन से अधिक अनुयायी हैं। रेस्ट ऑफ द वर्ल्ड के साथ एक साक्षात्कार में, जुबैर ने कहा था, फिल्म सितारों, कोविड और घरेलू इलाज के बारे में गलत सूचना के अलावा, फर्जी खबरों का एक बड़ा हिस्सा धार्मिक अल्पसंख्यकों से संबंधित है, जिनमें ज्यादातर मुस्लिम टारगेट पर हैं। जिनकी सच्चाई बताना जरूरी है।
उन्होंने बताया था कि कैसे समुदाय विशेष को बदनाम करने के लिए, COVID-19 महामारी के बीच भारत में रमज़ान के दौरान मिस्र की तस्वीरों को गलत तरीके से पेश किया गया था। कोरोना जिहाद के नाम पर दक्षिणपंथी मीडिया द्वारा फैलाए गए फर्जी वीडियो और समाचारों के बारे में उन्होंने दुनिया को सच बताया था। एक ढाबे में थूक कर रोटी परोसने की सच्चाई का उन्होंने पर्दाफाश किया था। इससे संबंधित फर्जी वीडियो एक बड़े न्यूज चैनल ने दिखाया था।
जुबैर के ट्विटर अकाउंट पर कोई भी नज़र डाले तो वहां फर्जी समाचारों और भ्रामक वीडियो के पर्दाफाश को आसानी से समझा जा सकता है। विडंबना ये है कि भारत की मुख्यधारा का मीडिया भी अब दक्षिणपंथी समूहों के फेक न्यूज को फैलाने का आदी बनता जा रहा है। ऐसे में मोहम्मद जुबैर जैसों का काम बढ़ गया है। फेक न्यूज का प्रवाह जारी रहे, इसलिए जुबैर जैसे लोग गिरफ्तार किये जा रहे हैं।
वह भारत के उन पत्रकारों में से हैं, जिन्हें बहुसंख्यकवादी एजेंडे और नफरत की राजनीति के खिलाफ बोलने के लिए निशाना बनाया जा रहा है और लगातार सरकार और प्रवर्तन एजेंसियों के रडार पर हैं।
AltNews के सहायक संस्थापक प्रतीक सिन्हा ने इस महीने की शुरुआत में आर्टिकल 14 को दिए गए इंटरव्यू में कहा था कि हममें से किसी एक को गिरफ्तार किए जाने का डर हमेशा बना रहता है। लेकिन इससे भी बड़ी समस्या यह है कि कानूनी मामलों में कितना समय और ऊर्जा खर्च होती है।
ज़ुबैर द्वारा इस महीने की शुरुआत में पैगंबर पर निलंबित बीजेपी प्रवक्ता नुपुर शर्मा द्वारा की गई टिप्पणियों को उजागर करने के बाद, केंद्र सरकार ने कतर, कुवैत और सऊदी अरब सहित कई देशों की निंदा के बाद खुद को एक मुश्किल में पाया था। केंद्र को शर्मा की टिप्पणियों से दूरी बनाने के लिए मजबूर होना पड़ा, जबकि पार्टी ने उन्हें निलंबित कर दिया था।
इस महीने की शुरुआत में, उत्तर प्रदेश में जुबैर के खिलाफ ट्विटर पर महंत बजरंग मुनि को 'उदासीन', यति नरसिंहानंद और स्वामी आनंद स्वरूप को 'घृणा करने वाला' कहकर धार्मिक भावनाओं को आहत करने के आरोप में एफआईआर दर्ज की गई थी। एफआईआर भगवान शरण की शिकायत पर दर्ज की गई थी, जो हिंदू शेर सेना की सीतापुर इकाई के प्रमुख हैं।
अब क्यों गिरफ्तार
जुबैर को 2018 में किए गए एक ट्वीट के लिए गिरफ्तार किया गया था। जुबैर ने ऋषिकेश मुखर्जी की 1983 की फिल्म किसी से ना कहना का एक क्लिप ट्वीट किया था। फोटो में, एक बोर्ड हिंदी में "हनुमान होटल" लिखा है, जबकि पेंट के निशान बताते हैं कि इसे पहले "हनीमून" नाम दिया गया था और बाद में इसे बदल दिया गया।जुबैर ने ट्वीट किया था, "2014 से पहले: हनीमून होटल, 2014 के बाद: हनुमान होटल।"
अपनी एफआईआर में, दिल्ली पुलिस ने कहा कि ट्वीट घृणा की भावना को भड़काने के लिए पर्याप्त से ज्यादा था।दिल्ली पुलिस के एक सब इंस्पेक्टर की शिकायत पर रिपोर्ट दर्ज की गई है।
हालाँकि, ज़ुबैर को 2020 के एक मामले में पूछताछ के लिए दिल्ली बुलाया गया था, जिसमें अदालत ने उन्हें गिरफ्तारी से सुरक्षा प्रदान की थी, और उन्हें उपरोक्त मामले के लिए गिरफ्तार किया गया था। जुबैर के खिलाफ 21 महीनों में तीन राज्यों के पांच शहरों में कम से कम पांच मामले दर्ज हैं। जुबैर और उन जैसे लोगो की लड़ाई लंबी है। दरअसल, सत्य की लड़ाई लड़ने वालों का संघर्ष हमेशा लंबा रहा है। लेकिन सत्य जिन्दा रहे, इसलिए जुबैर जैसे लोग संघर्षशील रहते हैं।