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डब्ल्यूएचओ से कोवैक्सीन को मंजूरी मिलने में देरी क्यों?

डब्ल्यूएचओ से कोवैक्सीन को मंजूरी मिलने में देरी क्यों?

विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा भारत बायोटेक की कोवैक्सीन को मंजूरी नहीं दिए जाने पर इस टीके को लगवाए लोगों को क्या आएंगी दिक्कतें?

कोवैक्सीन को विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी डब्ल्यूएचओ की आपातकालीन इस्तेमाल वाली सूची में शामिल करने में और देरी होगी। एक रिपोर्ट के अनुसार डब्ल्यूएचओ ने कोवैक्सीन को विकसित करने वाली कंपनी भारत बायोटेक को इसके लिए तकनीकी सवाल भेजे हैं। इसका मतलब है कि जब तक उनका जवाब नहीं दिया जाता तब तक तो मंजूरी नहीं ही मिलने के आसार हैं। अब इससे कोवैक्सीन लगाए उन करोड़ों लोगों में से उन लोगों को दिक्कत है जो दूसरे देशों के दौरे कर रहे हैं या करने वाले हैं। इनमें वे छात्र भी शामिल हैं जो विदेशों में पढ़ते हैं। डब्ल्यूएचओ से मंजूरी नहीं मिलने के कारण अधिकतर देशों में कोवैक्सीन लगाए हुए लोगों को भी बिना वैक्सीन लगाए व्यक्ति की तरह माना जा रहा है और उन्हें क्वारंटीन सहित दूसरी कई पाबंदियों से गुजरना पड़ रहा है। देश में अब तक 9 करोड़ से ज़्यादा कोवैक्सीन की खुराक लगाई जा चुकी है। 

विश्व स्वास्थ्य संगठन की आपातकालीन इस्तेमाल मंजूरी यानी ईयूए के बिना कोवैक्सीन को दुनिया भर के अधिकांश देशों में स्वीकृत वैक्सीन नहीं माना जाएगा। नयी अड़चन इसलिए आई है कि डब्ल्यूएचओ को अभी भी कई सवालों के जवाब चाहिए। एनडीटीवी की रिपोर्ट के अनुसार डब्ल्यूएचओ ने भारत बायोटेक को कई सवाल भेज दिए हैं। हालाँकि हैदराबाद स्थित दवा निर्माता कंपनी यह दावा करती रही है कि उसने मंजूरी के लिए सभी ज़रूरी आँकड़े जमा कर दिए हैं। ख़ुद भारत सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय ने इसका संकेत दिया था कि जल्द ही डब्ल्यूएचओ से मंजूरी मिल जाएगी। इससे पहले वैक्सीन पर राष्ट्रीय विशेषज्ञ समूह के अध्यक्ष डॉ. वीके पॉल ने भी कहा था कि कोवैक्सीन के लिए डब्ल्यूएचओ की मंजूरी इस महीने के अंत से पहले आने की संभावना है।

भारत में इस कोवैक्सीन को मंजूरी इस साल जनवरी की शुरुआत में ही मिल गई थी। यानी इसके 9 महीने में भी डब्ल्यूएचओ से मंजूरी नहीं मिल पाई है। वैसे, जब भारत में इसको मंजूरी मिली थी तब इस पर काफ़ी विवाद हुआ था। 

कोवैक्सीन को तीसरे चरण के ट्रायल के बिना ही मंजूरी देने पर वैज्ञानिकों ने भी सवाल खड़े किए थे। बाद में सरकार की ओर से सफ़ाई दी गई थी कि कोवैक्सीन को 'क्लिनिकल ट्रायल मोड' में मंजूरी दी गई।

बाद में जब तीसरे चरण के ट्रायल के आँकड़े आए तो 'क्लिनिकल ट्रायल मोड' का ठप्पा हटाया गया था। जून महीने में भारत बायोटेक ने कहा था कि वैक्सीन तीसरे चरण के ट्रायल में 77.8 फ़ीसदी प्रभावी रही। उसने कहा था कि यह ट्रायल 25 हज़ार 800 प्रतिभागियों पर किया गया। 

कोविशील्ड डब्ल्यूएचओ की सूची में एकमात्र भारत निर्मित वैक्सीन है। इसे ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी और एस्ट्राज़ेनेका ने विकसित किया है, लेकिन पुणे में सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया द्वारा निर्मित किया जा रहा है। डब्ल्यूएचओ ने अब तक कोविशील्ड के अलावा फाइजर-बायोएनटेक, जॉनसन एंड जॉनसन, मॉडर्ना और सिनोफार्म द्वारा निर्मित टीकों को भी मंजूरी दी है।

बता दें कि हाल के दिनों में वैक्सीन को लेकर यात्रा नियमों पर विवाद भी हुआ है। पहले तो यूरोपीय यूनियन ने कोविशील्ड को मंजूरी नहीं दी थी और बाद में इंग्लैंड ने भी ऐसा ही किया। सरकार की आपत्ति के बाद यूरोपीय यूनियन के कई देशों ने कोविशील्ड को मंजूरी दे दी है। इंग्लैंड में भी कोविशील्ड को लेकर ऐसा ही फ़ैसला लिया गया, लेकिन अब इंग्लैंड ने कहा है कि उसकी आपत्ति वैक्सीन सर्टिफ़िकेट को लेकर है। 

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