+
सिंघु बॉर्डर: फिर चर्चा में हैं निहंग सिख, कौन होते हैं ये?

सिंघु बॉर्डर: फिर चर्चा में हैं निहंग सिख, कौन होते हैं ये?

निहंग सिख साल भर तक अपने डेरों में ही रहते हैं लेकिन एतिहासिक सिख गुरूद्वारों में होने वाले धार्मिक कार्यक्रमों में ज़रूर भाग लेते हैं और वहां घुड़सवारी और युद्ध से जुड़े कौशल दिखाते हैं। 

पिछले साल दिल्ली के बॉर्डर्स पर किसान आंदोलन शुरू होते ही देश भर के लोगों का ध्यान जिन्होंने सबसे ज़्यादा खींचा, वे निहंग सिख थे। निहंग सिखों के रहने का तरीका, पोशाक, पगड़ी, करतब को देखकर लोगों में उनके लिए ख़ासा कौतूहल देखने को मिला। इसके बाद कई लोग सिंघु और टिकरी बॉर्डर पर निहंग सिखों को देखने गए। 

सिंघु बॉर्डर पर पंजाब के तरन तारन के रहने वाले लखबीर सिंह की हत्या के बाद एक बार फिर निहंग सिखों का नाम चर्चा में आया है। क्योंकि एक निहंग सिख ने इस हत्या की जिम्मेदारी लेते हुए पुलिस के सामने आत्मसमर्पण किया है। पुलिस ने उसे गिरफ़्तार भी कर लिया है। 

आइए, जानते हैं कि कौन होते हैं निहंग सिख। 

निहंग सिख ख़ुद को सिखों के दसवें गुरू गोबिंद सिंह की लाडली फ़ौज़ कहते हैं। इस फ़ौज को गुरू गोबिंद सिंह ने ही बनाया था। निहंग सिख नीले कपड़े पहनते हैं। इनके पास हमेशा तलवारें और कुछ और हथियार रहते हैं। इनकी पगड़ी भी आम सिखों से अलग होती है।

सिख इतिहासकार डॉ. बलवंत सिंह ढिल्लों ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ को बताते हैं, “फ़ारसी भाषा में निहंग शब्द का मतलब है- मगरमच्छ, तलवार और कलम लेकिन निहंगों की जो विशेषताएं हैं, वे संस्कृत भाषा के निशंक शब्द के अर्थ से मिलती हैं। निशंक का मतलब होता है, निर्भय, निष्कलंक, खालिस यानी शुद्ध, सांसारिक फ़ायदों और आराम से दूर रहने वाला।” 

नीला निशान साहिब फहराते हैं

ढिल्लों कहते हैं कि निहंग खालसा के लिए बने नियमों का पूरी तरह पालन करते हैं और भगवा निशान साहिब फहराने के बजाए वे अपने धार्मिक स्थल पर नीला निशान साहिब फहराते हैं। निहंग बातचीत के दौरान चढ़दी कला शब्द का प्रयोग करते हैं जिसका मतलब है कि- मनोबल हमेशा ऊंचा रहे। 

निहंगों की सिख इतिहास में अहम भूमिका है। मुगल शासकों से लड़ते वक़्त जब सिखों का क़त्लेआम हो रहा था, तब निहंगों ने सिख धर्म को बचाने के लिए मुगलों से लड़ाई लड़ी थी। 

निहंगों को घुड़सवारी, तलवारबाज़ी सहित युद्ध की अन्य विधाओं में माहिर माना जाता है। निहंगों के कई समूह हैं और हर समूह का एक जत्थेदार होता है। निहंग समूहों में बुड्ढा दल और तरूणा दल होते हैं। बुड्ढा दल में बुजुर्ग जबकि तरूणा दल में नौजवान निहंग सिख होते हैं। 

निहंग सिख साल भर तक अपने डेरों में ही रहते हैं लेकिन एतिहासिक सिख गुरूद्वारों में होने वाले धार्मिक कार्यक्रमों में ज़रूर भाग लेते हैं और वहां घुड़सवारी और युद्ध से जुड़े कौशल दिखाते हैं। 

निहंग सिख खेती करते हैं और आम लोगों के साथ भी मिलकर रहते हैं। किसी भी धर्म का व्यक्ति अगर निहंग सिख बनना चाहता है तो उसे निहंग सिख जिन नियमों को मानते हैं, उन्हें मानना होता है। 

निहंग सिख जीवन भर सिर से लेकर पैर तक बाल नहीं कटा सकते, जीवन भर नीला चोला पहनते हैं, ख़ुद ही लंगर बनाते हैं, घुड़सवारी सहित युद्ध की कुछ और कलाएं भी वे ज़रूर सीखते हैं और साथ ही धार्मिक पाठ भी उन्हें याद करने होते हैं। 

सत्य हिंदी ऐप डाउनलोड करें