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उसने मुझे गोली मार दी होती तो...

उसने मुझे गोली मार दी होती तो...

अमेरिका में कुछ वे हैं जो अब भी रंगभेद और नस्ल भेद के साथ हिंसा और नफ़रत से भरे हुए हैं और दूसरे वे जो मानवीय हैं। 

उस महिला ने अपनी बंदूक़ मेरी तरफ़ तान दी और चिल्लाई- 'मैं तुमको गोली मार दूँगी।' मैं समझ नहीं पा रहा था कि क्या हुआ। वो चीख़ रही थी 'तुमने मेरे कंपाउंड में ट्रेसपास किया' (तुम बिना अनुमति मेरे हाते में आए)। मैं बार-बार माफ़ी माँग रहा था लेकिन उसका ग़ुस्सा कम नहीं हो रहा था। वो बार-बार मेरी तरफ़ अपनी बंदूक़ तान देती थी। इस बीच मेरी बेटी ने यह नज़ारा थोड़ी दूर से देखा और लगभग चीख़ते हुए बोली, ‘पापा भाग कर जल्दी से उसके गेट से बाहर आ जाओ।’ मैं तेज़ चलता हुआ गेट के बाहर भागा। इस बीच मेरा दामाद, जो व्हाइट अमेरिकन है, उसके पास पहुँच गया और उसे बताने लगा कि हम वहाँ क्यों आये थे।

उससे बातचीत के बाद कुछ मिनटों में वो अपनी कार में वापस चली गयी। उसने हमारी मदद नहीं की। बाद में मेरी बेटी ने बताया कि मैं बच गया। वो औरत गोली मार सकती थी। अमेरिका में ऐसी घटनाएँ होती रहती हैं। व्हाइट अमेरिकन यानी गोरे अमेरिकियों के कंपाउंड में कोई ब्लैक यानी काला आदमी घुस जाए तो वो गोली मार सकते हैं। भारतीय भले ही अफ़्रीकी लोगों की तरह काले नहीं हैं लेकिन बहुत से अमेरिकियों के लिए वो ब्लैक या काले ही हैं।

यहीं मैंने आधे घंटे के अंदर अमेरिका के दो चेहरे देखे। एक वो जिसका ज़िक्र ऊपर कर चुका हूँ जो अब भी रंगभेद और नस्ल भेद के साथ हिंसा और नफ़रत से भरा हुआ है और दूसरा जो मानवीय है। रंगभेद और नस्ल भेद से ऊपर उठ चुका है।

वो 2018 के जून की बात है। हम घूमने के लिए अमेरिका गए थे। तब मेरी बेटी और उसका व्हाइट अमेरिकी पति अमेरिका के ख़ूबसूरत राज्य ऐरिज़ोना के एक छोटे से शहर ‘फ़्लैग स्टाफ़’ में रहते थे। ऐरिज़ोना की राजधानी फ़ीनिक्स से कोई 4 घंटे की दूरी पर है कुल 20-25 हज़ार की आबादी वाला यह शहर फ़्लैग स्टाफ़। फ़ीनिक्स में भारतीय अमेरिकियों की ख़ासी आबादी है लेकिन फ़्लैग स्टाफ़ या अमेरिका के दूर दराज़ के छोटे शहरों में भारतीय मूल के लोग नाम मात्र के ही हैं। जून 2018 में हमने परिवार के साथ ऐरिज़ोना के आसपास के ख़ूबसूरत पहाड़ी इलाक़ों में घूमने का प्लान बनाया। मैं, मेरी पत्नी, छोटी बेटी और उसके पति भारत से फ़ीनिक्स पहुँचे। मेरी बड़ी बेटी और उसके पति फ़ीनिक्स में ही हम से मिले।

ऐरिज़ोना की तरह पड़ोसी राज्य ऊटा और कोलराडो भी बेहद ख़ूबसूरत हैं। अमेरिका का ग्रैंड कनियन मुख्य रूप से एरिज़ोना में है। कुछ हिस्सा पड़ोसी राज्य ऊटा में भी है। और ब्लैक कनियन कोलराडो में। इन राज्यों में न तो वाशिंगटन और न्यूयॉर्क जैसे शहरों की भागमभाग है न ही भीड़भाड़। लॉस वेगास जैसा ग्लैमर भी नहीं है। इन राज्यों में अमेरिका का एक अलग चेहरा दिखाई देता है। यहाँ चारों तरफ़ प्रकृति के नज़ारे हैं। सुकून है। एक और महत्वपूर्ण बात यह कि इन राज्यों में अमेरिका के मूल निवासी जिन्हें रेड इंडियन कहा जाता है वे भी काफ़ी संख्या में मौजूद हैं। अब ये लोग रेड इंडियन कहना अपमान मानते हैं और ख़ुद को नेटिव यानी मूल अमेरिकन कहते हैं। लेकिन इंडियन कहलाने से उन्हें शायद कोई एतराज़ नहीं है। 

सड़क से गुज़रते हुए जगह-जगह ‘इंडियन स्टोर’ देख कर कई बार लगता है कि हम भारत में ही कहीं मौजूद हैं। या फिर ये कि अमेरिका में इंडिया या भारत प्रेम हर कहीं बसा हुआ है। लेकिन अमेरिका के इन इंडियन स्टोर का इंडिया या भारत से कोई लेना देना नहीं है।

ये स्टोर अमेरिका के मूल निवासियों के हैं। इनमें मूल अमेरिकियों के पारम्परिक गहने, कपड़े, शिल्प की बिक्री होती है। ये सब चीज़ें भारत के आदिवासियों या फिर अफ़्रीकी पारम्परिक चीज़ों से मिलती-जुलती हैं। मूल अमेरिकी लोगों के विशिष्ट भोजन का आनंद भी इनमें लिया जा सकता है।

ये मूल निवासी अब अल्पसंख्यक और ग़रीब हैं। शिक्षा की भी कमी है। भारत के आदिवासियों की तरह ग़रीबी में और सरकारी सहयोग से इनकी ज़िंदगी किसी तरह चलती है। यूरोप से भारत के लिए समुद्री मार्ग की खोज में निकला नाविक कोलंबस 1492 में भूल से अमेरिका पहुँच गया था। कोलंबस भारत या इंडिया की खोज में निकला था पर अमेरिका पहुँच गया तो उसे ही इंडिया कह दिया। वहाँ के निवासियों का रंग कुछ कुछ लाल जैसा था इसलिये उनको नाम दे दिया रेड इंडियन। रेड इंडियन के चेहरे की बनावट में भारत के आदिवासियों की छाप ढूँढी जा सकती है। लेकिन भारतीयों से उससे ज़्यादा कोई सम्बंध दिखाई नहीं देता।

ऐसे अस्तित्व में आया संयुक्त राज्य अमेरिका

कोलंबस के दिखाए रास्ते से पूरे यूरोप के लोग अमेरिका पहुँचे। स्थानीय लोगों यानी रेड इंडियन का नर संहार किया और अमेरिका पर व्हाइट का वर्चस्व क़ायम कर लिया। ब्रिटेन ने अमेरिका में 13 कॉलोनियों (देशों) की स्थापना की। 1775 से 1782 के बीच व्हाइट अमेरिकियों ने जॉर्ज वाशिंगटन के नेतृत्व में फ़्रांस की मदद से ब्रिटेन से युद्ध किया और आज़ाद होकर यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ़ अमेरिका की स्थापना की। 

आज का अमेरिका उसका विस्तारित रूप है। अमेरिका में बसे अफ़्रीकी मूल के ब्लैक यानी काले लोग भी मूल निवासी नहीं हैं। इनमें से ज़्यादातर के पूर्वजों को मज़दूर के तौर पर लाया गया था। रंग के आधार पर भेदभाव आज भी यहाँ मौजूद है। हालाँकि बड़ी संख्या में उदार व्हाइट अमेरिकी रंगभेद के ख़िलाफ़ हैं।

जून 2020 में पुलिस के द्वारा एक ब्लैक नागरिक की हत्या के बाद रंगभेद के ख़िलाफ़ ग़ुस्सा सड़कों पर आ गया था। ये ब्लैक अफ़्रीकी मूल का था। उसकी हत्या के ख़िलाफ़ सड़कों पर संघर्ष की शुरुआत अफ़्रीकी मूल के काले लोगों ने ही की थी जिसमें गोरे अमेरिकियों ने भी साथ दिया।

उसके पहले ही 2018 में रंग भेद के दो चेहरों से हमारा सामना हुआ था।

कोलराडो की यात्रा के दौरान हम एक दिन के लिए ब्लैक कनियन ऑफ़ गनिसॉन पहुँचे। ठोस काले पत्थर के पहाड़ों के बीच लगभग नीले पानी का झील एक अलग नज़ारा पेश करता है। ठोस पत्थरों के ऊपर मौजूद मिट्टी की सतह पर पेड़ों की क़तारें और जंगली झाड़ियाँ जगह-जगह फैली हुई हैं। लेकिन झील, पहाड़ी से 50/60 फ़ीट नीचे है। पहाड़ पर ट्रैकिंग करने वाले जाँबाज़ ही झील में उतरने का जोखिम उठा सकते हैं। एरिज़ोना और ऊटा के ग्रैंड कनियन से यह अलग है। ग्रैंड कनियन के किनारों पर टुरिस्ट स्पॉट विकसित हो चुके हैं। ग्रैंड कनियन झील में पानी के जहाज़ और नावों में सफ़र किया जा सकता है। ब्लैक कनियन सिर्फ़ उनके लिये है जो प्रकृति से सचमुच प्रेम करते हैं। बहरहाल ब्लैक कनियन पर कुछ घंटे गुज़ारने के बाद हम वापस लौट पड़े।

सहायता माँगी तो बंदूक़ तान दी

पहाड़ी-रेगिस्तानी (माउंटेन डेज़र्ट) रास्ते एक अलग ख़ूबसूरती लिए होते हैं। घुमावदार, कहीं तेज़ धूप, कहीं पेड़ों की छाया, छोटी-छोटी बस्तियाँ, सन्नाटा सब कुछ मिल जाता है थोड़े से सफ़र में। हम इन सब का मज़ा लेते हुए सफ़र में बढ़ रहे थे कि गाड़ी अचानक बंद हो गयी। पेट्रोल ख़त्म हो गया था। फ़ोन में गूगल से खोज की गयी तो पता चला कि पेट्रोल पंप क़रीब 10 किलोमीटर दूर है। गाड़ी को धकेल कर इतनी दूर ले जाना मुश्किल लग रहा था। पास में एक बोर्ड दिखाई दिया। ‘शूटर्स बार एंड ग्रिल’। वैसे तो वह बंद लग रहा था लेकिन उसके सामने 2/3 गाड़ियाँ खड़ी थीं। मैं और मेरे दामाद डेविड ने पास जाकर पता करने का फ़ैसला किया कि वहाँ कोई है या नहीं और क्या हमें पेट्रोल मिल सकता है लेकिन पास जाकर पता चला कि वो बंद है और वहाँ कोई नहीं है। उसके ठीक पीछे एक घर दिखाई दिया। हमने वहाँ जाकर मदद माँगने का फ़ैसला किया।

कुछ आगे बढ़ने पर एक बोर्ड दिखाई दिया जिसमें लिखा था कि ट्रेसपास करने वालों को यानी बिना अनुमति अंदर आने वालों को गोली मार दी जायेगी। डेविड ने सचेत किया कि हम आगे नहीं जा सकते। हम पीछे लौट पड़े। डेविड कुछ आगे था और मैं पीछे। अचानक पीछे से एक गाड़ी आकर मेरे पास रुकी। इसी गाड़ी में थी वो महिला। उसने मुझसे पूछा कि मैं अंदर क्यों आया। वो बहुत ग़ुस्से में थी। फिर भी मुझमें उम्मीद जागी। मैंने उससे अंदर आने के लिए माफ़ी माँगी और पेट्रोल ख़त्म होने की बात बता कर उससे मदद माँगने की कोशिश की। शायद वो मेरी बात से संतुष्ट नहीं हुई।

उसका ग़ुस्सा बढ़ता ही जा रहा था। वो कुछ डरी हुई लग रही थी और बार-बार बंदूक़ उठाकर मुझे गोली मारने की धमकी दे रही थी। इस बीच डेविड मेरे आगे आ गया और मैं सरपट गेट की तरफ़ निकल गया।

डेविड से बात करने के बाद वो महिला वापस लौट गयी। बाद में मेरी बेटी ने बताया कि अमेरिका में ऐसे काफ़ी लोग हैं जो ब्लैक या कालों से नफ़रत करते हैं। और वो महिला सचमुच मुझे गोली मार सकती थी।

मैं उस औरत से बच गया। लेकिन पेट्रोल का इंतज़ाम अभी बाक़ी था। हमने उधर से गुज़रती गाड़ियों को हाथ देकर रोकने की कोशिश शुरू की ताकि किसी से लिफ़्ट लेकर पेट्रोल पम्प तक जा सकें। ज़्यादातर गाड़ियाँ नहीं रुकीं। हम निराश हो रहे थे। तभी एक गाड़ी हमारे पास आकर रुक गई। ड्राइवर की सीट पर कोई 70/75 साल के व्हाइट व्यक्ति बैठे थे। बग़ल की सीट पर लगभग उसी उम्र की एक महिला थीं। उनकी पत्नी। गाड़ी रोकते ही उन्होंने विनम्रता से पूछा ‘क्या मैं आपकी मदद कर सकता हूँ’ हमने अपनी समस्या बताई। उन्होंने तपाक से कहा आप लोगों को यहाँ खड़ा देख कर मैं समझ गया था कि किसी मुसीबत में हैं। ‘ये कोई प्रकृति का नज़ारा देखने की जगह थोड़े ही है’। उन्होंने कहा- मैं उधर ही जा रहा हूँ जिधर पेट्रोल पम्प है। कृपया आप हमारे साथ आ जाइए। डेविड उनके साथ गाड़ी में बैठ गया। गाड़ी आगे बढ़ी लेकिन तुरंत ही पीछे लौट आयी। हमारे पास गाड़ी रोक कर उन्होंने बताया कि पास में ही उनका फ़ार्म हाउस है। वहाँ पेट्रोल रखा है। वहीं से ले आते हैं।

क़रीब आधे घंटे में वो वापस लौटे। एक केन में क़रीब 20/25 लीटर पेट्रोल लेकर। उन्होंने अपनी गाड़ी से पेट्रोल की केन ख़ुद उतारी और पेट्रोल हमारी गाड़ी में डाला। हमने पेट्रोल डालने के काम में उनकी मदद करने की कोशिश की लेकिन उन्होंने मना कर दिया। हमने उनका शुक्रिया अदा किया और पेट्रोल की क़ीमत उन्हें देने की पेशकश की। क़ीमत लेने के लिए वो तैयार नहीं हुए। सिर्फ़ एक बात दुहराते रहे। ‘मैं चैरिटी यानी किसी की मदद के बदले में पैसा नहीं ले सकता।’ उन्होंने पैसे नहीं लिए। हमसे कहा कि आप गाड़ी आगे ले जाएँ, हम पीछे आयेंगे ताकि रास्ते में कोई और समस्या हो तो मदद कर सकें। 

शूटर्स बार कंपाउंड में महिला ने जब मुझ पर बंदूक़ तानी थी और जब ये अजनबी फ़रिश्ता मिले तब उसके बीच सिर्फ़ आधे घंटे का समय होगा। लेकिन मुझे अमेरिका की व्हाइट आबादी के दो चेहरे देखने को मिल गए। एक रंगभेदी अमानवीय चेहरा और दूसरा उदार मानवीय चेहरा। अपनी अमेरिका यात्रा के थोड़े से अनुभवों से मैं कह सकता हूँ कि अमेरिका आज भी इन दो धाराओं के बीच जी रहा है।

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