बंगाल में सरकार और जज के बीच छिड़ी लड़ाई की वजह क्या है
सरकार और न्यायपालिका के बीच लड़ाई कोई नई नहीं है, यह हमेशा चलती रहती है। लेकिन इस लड़ाई का मकसद शासन और प्रशासन में सुधार करना होता है। इस लड़ाई में व्यक्तिगत विचारधारा जैसी किसी लड़ाई की गुंजाइश कम होती है। जज भी भी इस का ध्यान रखते हैं कि उनकी व्यक्तिगत विचारधारा सामने न आने पाए।
ऐसी ही लड़ाई कलकत्ता हाईकोर्ट के जस्टिस अभिजीत गांगुली और पश्चिम बंगाल में सत्तारूढ़ टीएमसी के बीच चल रही है। मौजूदा खींचतान राज्य सरकार और न्यायपालिका के बीच जारी तनाव को दर्शाती है।
जस्टिस गांगुली और सरकार के बीच चल रही लड़ाई के पीछे की हालिया वजह पिछले हफ्ते जस्टिस गांगुली की वह टिप्पणी है, जिसमें उन्होंने कहा था कि सीबीआई और ईडी जरूरत पड़ने पर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी से पूछताछ कर सकती हैं। इससे पहले शिक्षक भर्ती घोटाले में गिरफ्तार टीएमसी के युवा नेता कुंतल घोष ने आरोप लगाया था कि जांच एजेंसियां भ्रष्टाचार के मामलों में अभिषेक का नाम लेने के लिए दबाव डाल रही हैं।
जस्टिस गांगुली की टिप्पणी पर तृणमूल कांग्रेस के राज्य महासचिव कुणाल घोष ने पलटवार करते हुए कहा था कि जस्टिस गांगुली को जज की कुर्सी छोड़ देनी चाहिए और सीधे राजनीति में प्रवेश करना चाहिए, घोष ने उनसे पूछा था कि क्या आप जांच के प्रभारी हैं? आप जांच को समान रूप से प्रभावित कर रहे हैं, पक्षपात कर रहे हैं।
कुणाल घोष ने गांगुली पर विपक्षी दलों कांग्रेस, माकपा और भाजपा के साथ मिलीभगत करके अभिषेक को बदनाम करने का भी आरोप लगाया। इससे पहले जस्टिस गांगुली ने राज्य के शिक्षकों और गैर-शिक्षण कर्मचारियों की नियुक्ति में हुए कथित भ्रष्टाचार के मामले में सीबीआई जांच का आदेश दिया था। उसके बाद से कई टीएमसी नेताओं को गिरफ्तार किया जा चुका है। उन्होंने न्यायपालिका पर की गई एक टिप्पणी के लिए अभिषेक को आड़े हाथों लिया था। स्थानीय टीवी समाचार चैनल एबीपी आनंद से बात करते हुए उन्होंने कहा था, “वह न्यायपालिका पर उंगली उठाने वाले किसी भी व्यक्ति के खिलाफ 'सख्त से सख्त कार्रवाई' के पक्ष में हैं, अन्यथा लोगों का न्याय प्रणाली से विश्वास उठ जाएगा।”
जस्टिस गांगुली ने कहा कि अगर अभिषेक, जजों पर भाजपा के इशारे पर काम करने का आरोप साबित नहीं कर पाए तो उन्हें झूठ बोलने के लिए तीन महीने की जेल होनी चाहिए"। "बाद में, वह मुझे मार सकता है, यह मुझे परेशान नहीं करेगा।”
जस्टिस गांगुली और टीएमसी के बीच की यह लड़ाई काफ़ी पुरानी है, और दोनों ही एक दूसरे पर पहले भी आरोप प्रत्यारोप लगाते रहे हैं।
जस्टिस गांगुली की इस टिप्पणी के बाद टीएमसी के कार्यकर्ताओं ने उन पर जुबानी हमला बोला था। अभिषेक के करीबी माने जाने वाले तृणमूल कांग्रेस के युवा नेता देबंगशु भट्टाचार्य ने फेसबुक लाइव में कहा, 'उन्होंने ममता बनर्जी के बारे कहा था कि ‘सुना है कि उन्हें गुस्सा आता है और वह बदला लेती हैं’, आप एक निर्वाचित और लोकप्रिय मुख्यमंत्री की छवि कैसे खराब कर सकते है?”
ममता बनर्जी खुद स्कूल भर्ती घोटाले की जांच के संदर्भ में अक्सर न्यायपालिका पर निशाना साधती रही हैं। हाल ही में एक कार्यक्रम में ममता ने उन लोगों के बारे में बात की, जिन्होंने जांच के परिणामस्वरूप अपनी नौकरी गंवा दी थी।
इस कार्यक्रम में बोलते हुए उन्होंने न्यायपालिका से "उनके परिवारों को वित्तीय कठिनाइयों में नहीं डालने" का आग्रह किया। इस दौरान उन्होंने इससे जुड़ी दो आत्महत्याओं का भी उल्लेख किया था। बीते साल 15 दिसंबर को टीएमसी प्रवक्ता कुणाल घोष ने जस्टिस राजशेखर मंथा पर तीखा हमला बोला था। इसकी वजह जस्टिस मंथा का वह आदेश था कि हाईकोर्ट की अनुमति के बिना भाजपा के विपक्ष के नेता (एलओपी) सुवेंदु अधिकारी के खिलाफ कोई प्राथमिकी दर्ज नहीं की जा सकती है।
उनके इस निर्णय के खिलाफ कोलकाता के जोधपुर पार्क स्थित उनके घर के बाहर उनकी आलोचना करने वाले पोस्टर लगाए गए। पोस्टरों में उन्हें 'न्यायपालिका के लिए अपमानजनक' बताया गया है। जनवरी में वकीलों के एक समूह ने न्यायमूर्ति मंथा के चैंबर के बाहर प्रदर्शन किया था, जबकि कुछ लोगों ने उनकी बेंच का प्रवेश द्वार का रास्ता रोक लिया था।
इस मसले पर टीएमसी पर लग रहे आरोपों पर तृणमूल कांग्रेस प्रवक्ता कुणाल घोष ने सफाई देते हुए कहा था कि हम न्यायपालिका और न्यायाधीशों का बहुत सम्मान करते हैं। यह जाने बिना कि यह किसने किया है और इसके पीछे क्या उद्देश्य है, टिप्पणी करना सही नहीं होगा।