क्या है नेशनल मॉनीटाइजेशन पाइपलाइन, क्यों हो रहा है विरोध?
नेशनल मॉनीटाइजेशन पाइपलाइन (एनएमपी) के ज़रिए छह लाख करोड़ रुपए का इंतजाम करने की सरकार की योजना और मुख्य विपक्षी दल के इसके ख़िलाफ़ ज़ोरदार सोशल मीडिया अभियान से कई सवाल खड़े होते हैं।
आख़िर यह योजना क्या है, इससे सरकार को पैसे कैसे मिलेंगे और क्या वाकई ये परिसंपत्तियाँ बेच दी जाएंगी, यदि नहीं तो फिर पैसे कैसे मिलेंगे?
इन सवालों के उत्तर ढूंढना ज़रूरी है।
क्या है परियोजना?
सरकार का कहना है कि एनएमपी यानी नेशनल मॉनीटाइजेशन पाइपलाइन के तहत पहले से काम कर रही परियोजनाओं या परिसंपत्तियों का मालिकाना हक़ एक निश्चित समय के लिए निजी कंपनियों को दिया जाएगा, लेकिन उन्हें बेचा नहीं जाएगा।
यानी, इन परिसंपत्तियों को इस्तेमाल करने के लिए निजी कंपनियों को लीज़ पर दिया जाएगा, जिसका वे इस्तेमाल कर मुनाफ़ कमाएं और वह अवधि ख़त्म हो जाने के बाद उसे फिर सरकार को वापस कर दें। इसके बदले उन्हें सरकार को पैसे देने होंगे।
यानी निजी कंपनी पैसे देकर चार साल के लिए कोई परिसंपत्ति सरकार से लीज़ पर ले, व्यवसाय करे और चार साल बाद सरकार को वापस कर दे।
इससे सरकार को एक निश्चित रकम मिलेगी, लेकिन वह इन चार सालों में उसका इस्तेमाल नहीं कर सकती।
क्या होता है मॉनीटाइजेशन?
इस मॉनीटाइजेशन स्कीम के तहत सरकार उस परिसंपत्ति पर राजस्व साझा करने, उसमें निवेश करने और उसके विकास करने की शर्त भी लगा सकती है। यह एकमुश्त पैसे से अलग भी हो सकता है।
रियल इस्टेट इनवेस्टमेंट ट्रस्ट और इन्फ़्रास्ट्रक्चर इनवेस्टमेंट ट्रस्ट जैसी सरकारी कंपनियाँ पहले से ही हैं, जो मनीटाइजेशन के क्षेत्र में हैं। वे स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध भी हैं।
कोई कंपनी इन कंपनियों में पैसे डाल सकती है। इनमें से पहली कंपनी सड़क व दूसरी कंपनी बिजली क्षेत्र में काम करती है।
आर्थिक मॉडल
इसके अलावा मॉनीटाइजेशन के तहत दूसरे आर्थिक मॉडल पर भी काम किया जा सकता है। ये हो सकते हैं-
- पीपीपी यानी पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप यानी सरकार और निजी क्षेत्र मिल कर कोई परियोजना अपने हाथ में लें।
- ओएमटी यानी ऑपरेट, मेन्टेन एंड ट्रांसफर। इसके तह किसी कंपनी को कोई परिसंपत्ति दी जा सकती है, वह उसे चलाएगी, उसका रखखाव करेगी और बाद में सरकार को सौंप देगी।
- टीओटी यानी टॉल, ऑपरेट ट्रांसफर। इसके तहत किसी कंपनी को राजमार्ग का कोई हिस्सा दिया जाएगा, वह उसे चलाएगी, उस पर टोल टैक्स लगा कर पैसे कमाएगी और समय पूरा होने पर सरकार को वह सड़क सौंप देगी।
- ओएमडी यानी ऑपरेट, मेन्टेन एंड डेवलप। इसके तहत कोई कंपनी किसी परियोजना को हाथ में लेगी, उसे चलाएगी, उसका रख रखाव करेगी और उसका विकास करेगी। मसलन, कोई कंपनी किसी हवाई अड्डे को ले, उसे चलाए, उसकी क्षमता बढ़ाए, पैसे कमाए।
टीओटी और ओएमटी के तहत कई सड़कें और ओएमडी के तहत कई हवाई अड्डे पहले से दिए गए हैं और कई कंपनियाँ उन पर काम कर रही हैं।
किन परियोजनाओं पर लागू?
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इस परियोजना को स्पष्ट करते हुए कहा है कि यह पाइपलाइन उन परिसंपत्तियों के लिए है जो पहले से ही काम कर रही हैं, उन पर निवेश हो चुका है, लेकिन उनका भरपूर इस्तेमाल नहीं हो रहा है या वे बेकार पड़ी हुई हैं।
मॉनीटाइजेशन के ज़रिए निजी कंपनियाँ उनका बेहतर इस्तेमाल करेंगी और इस तरह उसमें नए निवेश और उनके विकास का रास्ता खुलेगा।
सरकार की नज़र सड़क, रेलवे और बिजलीघरों पर सबसे ज़्यादा है, एनएमपी परियोजना के तहत जितने पैसे मिलने की उम्मीद है, उसका 66 प्रतिशत तो इन्हीं क्षेत्रों से मिल सकता है।
इसके अलावा दूरसंचार, खदान, हवाई अड्डे, बंदरगाह, पेट्रोलियम उत्पाद और प्राकृतिक गैस की पाइपलाइन से भी काफी पैसे मिलने की संभावना है।
पहले साल में इन परिसंपत्तियों का 15 प्रतिशत मनीटाइज़ कर दिया जाएगा, जिसकी कुल कीमत लगभग 0.88 लाख करोड़ रुपए होगी।
नेशनल इन्फ़्रास्ट्रक्चर पाइपलाइन के साथ मिल कर एनएमपी के तहत 43 करोड़ रुपए का निवेश सिर्फ पाइपलाइन परियोजनाओं में ही हो सकता है। इसका एलान दिसंबर 2019 में ही हो चुका था। इस पर 100 करोड़ रुपए खर्च होने की संभावना है।
एनएमपी के तहत दी जाने वाली परिसंपत्तियाँ
- 26,700 किलोमीटर लंबी सड़क व रेल लाइनें, रेलवे स्टेशन व ट्रेन।
- 28,608 किलोमीटर लंबी बिजली ट्रांसमिशन लाइनें।
- 6 गीगा वॉट के पनबिजली घर व सौर ऊर्जा परियोजनाएं।
- 2.86 लाख किलोमीटर की फ़ाइबर।
- दूरसंचार के 14,917 टॉवर।
- 8,154 किलोमीटर की प्राकृतिक गैस पाइपलाइन।
- 3,930 किलोमीटर की पेट्रोलियम उत्पाद (डीज़ल- पेट्रोल) पाइपलाइन।
- 15 रेल स्टेशन। 25 हवाई अड्डे।
- 160 कोयला खदान।
- 9 बंदरगाहों पर 31 परियोजनाएं।
- 210 लाख मीट्रिक टन के गोदाम।
- दो राष्ट्रीय स्टेडियम।
- कई सरकारी कॉलोनी व आईटीडीसी के कई होटल।
दिक्क़तें
लेकिन यह राह इतना आसान भी नहीं है। कई दिक्क़तें हैं, कई अड़चने हैं, सरकार की नीति कई मुद्दों पर स्पष्ट नहीं है।
मसलन, बिजलीघरों की क्षमता को लेकर विवाद हो सकता है, पैदा हुई बिजली किस दर पर बेची जाए, इस पर विवाद हो सकता है क्योंकि कुछ भी तय नहीं है।
गैस व डीज़ल-पेट्रोल पाइपलाइन की क्षमता कितनी होगी और वे कितना काम करेंगी, इस पर विवाद हो सकता है।
एअर इंडिया और भारत पेट्रोलियम जैसी कंपनियों में निजी क्षेत्र की दिलचस्पी कम हो सकती है।
पिछले दिनों निजी ट्रेन परियोजना का एलान हुआ, पर उसमें किसी ने बहुत ज़्यादा दिलचस्पी नहीं ली।
कोंकण रेल में केंद्र सरकार के अलावा राज्य सरकार भी है, कई निजी कंपनियां भी हैं। उनके विचार अलग-अलग हो सकते हैं।
कुल मिला कर यह तो साफ है कि कोई परिसंपत्ति बेची नहीं जा रही है। लेकिन यह भी साफ है कि सरकार खुद न चला कर दूसरे को दे रही है। जो काम निजी कंपनी कर सकती है और मुनाफ़ा कमा सकती है, वही काम कर सरकार क्यों नहीं मुनाफा कमा सकती है।
इस सवालों के जवाब फिलहाल केंद्र सरकार ने नहीं दिए हैं।