मिथुन को मुख्यमंत्री चेहरा बनाने में बीजेपी को दुविधा क्यों?
बीजेपी ने पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव 2021 के लिए अभी तक मुख्यमंत्री के रूप में किसी को पेश नहीं किया है, जिसकी वजह यह है कि पार्टी के पास ममता बनर्जी की क़द का कोई नेता नहीं है। शुरू से ही चर्चा थी कि वह राजनीति से बाहर की किसी मशहूर बंगाली शख़्सियत को पार्टी के मुख्यमंत्री के तौर पर पेश करेगी। इस साल के आरंभ में सौरभ गांगुली के नाम की चर्चा भी उठी, लेकिन सौरभ अचानक बीमार पड़ गए और उस आधार पर उन्होंने यह अनुरोध अस्वीकार कर दिया।
इधर जब से मिथुन चक्रवर्ती बीजेपी में शामिल हुए हैं, तब से यह अनुमान लगाया जाने लगा कि पार्टी उन्हे ममता बनर्जी के मुक़ाबले में सामने ला सकती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी ब्रिगेड रैली में उन्हें 'बांग्लार छेले' (बंगाल का बेटा) कहा, जिससे इन अटकलों को बल मिला क्योंकि तृणमूल ममता को 'बंगाल की बेटी’ के तौर पर प्रचारित कर रही है। उसका नारा है - 'बांग्ला निजेर मेये के चाय' (बंगाल अपनी ही बेटी को चाहता है)।
'बांग्लार छेले'
मिथुन 7 मार्च को बीजेपी में शामिल हुए थे और अभी तक बीजेपी ने ऐसी कोई घोषणा नहीं की है। अभी तो यह भी तय नहीं है कि मिथुन विधानसभा का चुनाव लड़ेंगे या नहीं।
'एबीपी आनंद' ने मंगलवार को मिथुन चक्रवर्ती के साथ एक लंबी बातचीत में यह जानने की कोशिश की कि इन चुनावों में उनकी भूमिका क्या होगी। मिथुन ने इन सवालों के जो जवाब दिए, उनसे परस्पर विरोधी संकेत मिले। एक तरफ़ यह लगा कि वे पश्चिम बंगाल की बागडोर सँभालना चाहते हैं, लेकिन दूसरी तरफ़ उन्होंने चुनाव लड़ने के प्रति अपनी अरुचि भी दिखाई।
मिथुन चक्रवर्ती की बातों से यह संकेत मिलता है कि पश्चिम बंगाल बीजेपी उन्हें प्रचार में उतारकर अपना जन समर्थन बढ़ाना तो चाहती है, लेकिन वह उन्हें ममता की टक्कर में खड़ा नहीं करना चाहती।
ममता का सम्मान करते हैं मिथुन
मिथुन चक्रवर्ती ने, जो पहले तृणमूल कांग्रेस के सांसद रह चुके हैं, इस इंटरव्यू में कहा कि उनको निजी तौर पर किसी से कोई शिकायत नहीं है और वे ममता बनर्जी का बहुत सम्मान करते हैं। उन्होंने कहा कि उनकी लड़ाई केवल नीतिगत है और वे राज्य और केंद्र के बीच टकराव की राजनीति को पसंद नहीं, करते क्योंकि इससे राज्य का ही नुक़सान होता है।
बंगाल की दुरवस्था के लिए राज्य सरकार की नीतियों को दोषी ठहराते हुए उन्होंने अपने 10 सूत्री एजेंडा का हवाला दिया, जिसके आधार पर वे सत्ता में आने पर काम करेंगे। उनके अजेंडे में सबसे ऊपर है बिजली की दरों को कम करना ताकि यहाँ उद्योग लग सकें और लोगों को रोज़गार मिल सके। मिथुन ने कहा कि केवल छह महीने में राज्य के हालात सुधार कर रख देंगे।
मिथुन की दुविधा
मिथुन की इन बातों से लगा कि वे अपने लिए राज्य का नेतृत्व पद देख रहे हैं। लेकिन जब उनसे सीधा सवाल पूछा गया कि क्या वे बीजेपी का मुख्यमंत्री चेहरा होने जा रहे हैं तो उन्होंने कोई साफ़ उत्तर नहीं दिया। उन्होंने कहा कि ‘अभी समय है। देखिए, आगे क्या होता है।’
मिथुन के जवाबों से लगा कि वे राज्य के लिए काम करना चाहते हैं, उसका नेतृत्व करना चाहते हैं लेकिन फिर भी मन में कहीं-न-कहीं दुविधा है। दुविधा पार्टी में भी है। क्यों, यह हम नीचे समझते हैं।
- बंगाल बीजेपी में कई नेता हैं जो मुख्यमंत्री बनने के लायक़ और इच्छुक हैं। वे सालों से पार्टी के साथ जुड़े हुए हैं और इस दिन की प्रतीक्षा कर रहे हैं जब राज्य में बीजेपी की सरकार बने। ऐसे में सरकार बनने के बाद उन्हें मिथुन चक्रवर्ती जैसे एक नौसिखिया के अधीन काम करना पड़े, यह वे कभी नहीं चाहेंगे।
- मिथुन चक्रवर्ती में वह समझ व दक्षता नहीं है जो मुख्यमंत्री या मंत्री में होनी चाहिए। इस इंटरव्यू के दौरान ही पेट्रोल क़ीमतों पर पूछे गए सवाल के जवाब में वे बोले कि उन्हें इसकी जानकारी नहीं है कि जब दुनिया भर में कच्चे तेल के दाम कम हो रहे हैं तो भारत में क्यों बढ़ रहे हैं। इसके अलावा उन्होंने ख़ुद माना कि वे अच्छे सांसद साबित नहीं हुए, क्योंकि अच्छा सांसद बनने के लिये जो योग्यता और अध्ययन चाहिए, वह उनमें नहीं है। उन्होंने यह भी माना कि वे कुशल वक्ता नहीं है जिसका एक ताज़ा उदाहरण ब्रिगेड रैली में दी गई उनकी स्पीच है जब उन्होंने ख़ुद को कोबरा बताया और जिसके कारण उनको भारी आलोचना झेलनी पड़ी।
- मिथुन ने इस इंटरव्यू में बताया कि 2014 से पहले भी उनको एक बार तृणमूल कांग्रेस की तरफ़ से राज्यसभा के लिए चुनाव लड़ने का ऑफ़र मिला था, लेकिन वह उन्होंने इसलिए स्वीकार नहीं किया कि तृणमूल के पास तब पर्याप्त संख्या में विधायक नहीं थे। मिथुन के अनुसार, उस चुनाव में अगर वे हार जाते तो उनकी और ममता दोनों की प्रतिष्ठा को चोट पहुँचती। मिथुन के इस बयान से हम अनुमान लगा सकते हैं कि मिथुन उस टीम का नेतृत्व नहीं करना चाहेंगे जिसकी जीत पक्की न हो। दूसरे शब्दों में मिथुन तभी बीजेपी का मुख्यमंत्री चेहरा बनना चाहेंगे जब यह पक्का हो कि बीजेपी की जीत निश्चित है।
- जब जीत के मुक़ाबले हार की आशंका ज़्यादा है, तब मिथुन बीजेपी का मुख्यमंत्री चेहरा बनकर अपनी प्रतिष्ठा को दाँव पर लगाना नहीं चाहते। फ़िलहाल यदि पार्टी हारती है तो वे कह सकते हैं कि मैंने तो केवल प्रचार किया था। संभवतः यही कारण है कि वे विधायक का चुनाव भी नहीं लड़ना चाहते, क्योंकि राज्य विधानसभा में विपक्ष का एक सामान्य विधायक बनने से उनकी प्रतिष्ठा में चार चाँद नहीं लगने वाले। वैसे इंटरव्यू में मिथुन ने चुनाव न लड़ने की पक्की घोषणा नहीं की। उन्होंने कहा है कि यदि पार्टी चाहेगी तो वे लड़ेंगे।
- बीजेपी अपनी हार निश्चित जानकर मिथुन को सीएम फ़ेस बनाने को तत्पर हो सकती है जैसा कि उसने दिल्ली में किरण बेदी को अपना सीएम फ़ेस बनाकर किया था क्योंकि तब उसके दोनों हाथों में लड्डू होंगे - हारे तो अपना गया क्या, जीते तो इससे भला क्या।
- अभी तक के ओपिनियन पोल में ऐसा कहीं नहीं लग रहा है कि बीजेपी की जीत पक्की है। एक-के-बाद-एक कुल छह ओपिनियन पोल एक ही परिणाम की ओर इशारा कर रहे हैं कि तृणमूल बंगाल में तीसरी बार सत्ता में आ रही है। ममता को चोट लगने के बाद बीजेपी के लिए स्थिति और प्रतिकूल हो गई है और सी-वोटर के अंतिम ओपिनियन पोल में उसको केवल 106 सीटें मिलने की संभावना जताई गई है, जो कि बहुमत के लिए ज़रूरी 148 से काफ़ी कम है।
मिथुन चक्रवर्ती मुख्यमंत्री चेहरा बनने के लिये तब तक तैयार नहीं होंगे जब तक पार्टी की जीत पक्की न हो। उधर अगर बीजेपी की जीत निश्चित हो तो उसे मिथुन जैसों की ज़रूरत ही क्या है? उसके पास पहले से ही कई नेता हैं जो मुख्यमंत्री बनने लायक़ है।
निष्कर्ष यह कि इन परिस्थितियों में बीजेपी और मिथुन दोनों के लिए सबसे अच्छा यही है कि मिथुन को औपचारिक तौर पर नहीं, केवल अनौपचारिक तौर पर ममता के प्रतिद्वंद्वी के तौर पर खड़ा किया जाये। इससे पार्टी को तीन फ़ायदे होंगे।
- बीजेपी के जो नेता सीएम बनने का सपना देख रहे हैं, वे इस निर्णय से प्रभावित नहीं होंगे।
- पार्टी की हार की स्थिति में मिथुन की प्रतिष्ठा कम नहीं होगी।
- मिथुन के प्रचार के बल पर अगर बीजेपी चुनाव जीतती है तो उसके सामने यह रास्ता खुला होगा कि वह किसे सीएम बनाती है। तब मिथुन को परामर्शदाता मंडली या ऐसी ही किसी कमिटी का सदस्य बनाया जा सकता है।