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बांग्ला ऐप के ज़रिए बंगाली अस्मिता को भुनाने की कोशिश में बीजेपी

बांग्ला ऐप के ज़रिए बंगाली अस्मिता को भुनाने की कोशिश में बीजेपी

पश्चिम बंगाल में बाहरी होने के ठप्पे से मुक्ति पाने और बंगाली मानसिकता को लुभाने के लिए उनकी सबसे प्रिय चीज बांग्ला भाषा के ज़रिए बीजेपी बंगालियों के दिल में घुसने की कोशिश कर रही है।बंगालियों को लुभाने के लिए बीजेपी ने बांग्ला भाषा में ऐप लॉन्च किया है। 

पश्चिम बंगाल में बाहरी होने के ठप्पे से मुक्ति पाने और बंगाली मानसिकता को लुभाने के लिए उनकी सबसे प्रिय चीज बांग्ला भाषा के ज़रिए बीजेपी बंगालियों के दिल में घुसने की कोशिश कर रही है। पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव 2021 के पहले बंगालियों को लुभाने के लिए बीजेपी ने बांग्ला भाषा में ऐप लॉन्च किया है। 

'मोदीपाड़ा' (मोदी का मुहल्ला) नाम के इस ऐप में विधानसभा चुनाव से जुड़ी जानकारियाँ दी गई हैं, पर वे तमाम जानकारियाँ बांग्ला भाषा में हैं। इसमें अंग्रेजी भाषा चुनने का विकल्प है, लेकिन ऐप की मूल भाषा बांग्ला है। गूगल प्ले स्टोर पर यह ऐप मौजूद है और उसे मुफ़्त डाउनलोड किया जा सकता है।

मोदीपाड़ा

गृह मंत्री अमित शाह ने यह ऐप लॉन्च किया था। इस ऐप पर बीजेपी की पूरी प्रचार सामग्री, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भाषण, केंद्र सरकार की योजनाओं की जानकारी व बीजेपी नेताओं के बारे में जानकारी है। 

इसमें तृणमूल कांग्रेस, पश्चिम बंगाल सरकार और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पर हमला करने वाली सामग्री भी डाली हुई है। इसमें टेक्स्ट के साथ वीडियो भी है। 

लेकिन इस ऐप की यूएसपी बांग्ला भाषा है। बीजेपी इस ऐप के ज़रिए यह साबित करना चाहती है कि वह बांग्ला भाषा और बंगालियों के नज़दीक है। 

बंगाली अस्मिता

पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के पहले बंगाली प्रतीक पुरुषों से नज़दीकी दिखाने और बंगाली अस्मिता को भुनाने की कोशिशों के बाद ऐप नया मामला है। इसके जरिए बीजेपी एक पंथ दो काज करना चाहती है। वह डि़जिटल कैंपेन कर रही है और उसी बहाने बंगालियों तक पहँचने की कोशिश भी कर रही है। 

ऐप की इस लड़ाई में तृणमूल कांग्रेस भी मैदान में है। उसने 'दीदीर दूत' (दीदी का दूत) नामक ऐप लॉन्च किया है। इसे भी गूगल प्ले स्टोर से मुफ़्त डाउनलोड किया जा सकता है। 

लेकिन इस ऐप का फोकस चुनाव प्रचार है। इसमें राज्य सरकार की तमाम योजनाएं, ममता बनर्जी के भाषण और पार्टी के कार्यक्रम वगैरह डाले गए हैं। 

 - Satya Hindi

बीजेपी की आईटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय ने दावा किया है कि मोदीपाड़ा ऐप डाउनलोड करने के लिए 1.8 लाख लोगों ने रजिस्ट्री करा ली है और 3.50 लाख लोगों ने इसे विजिट किया है।

डिजिटल वॉर

बीजेपी के इस ऐप पर रजिस्टर कराने वालों में आधे से अधिक लोग 18-25 साल की उम्र के और 31 प्रतिशत लोग 26 से 35 साल की उम्र के हैं। 

दूसरी ओर, तृणमूल कांग्रेस का कहना है कि एक लाख लोगों ने 'दीदीर दूत' ऐप को डाउनलोड किया है। 

समझा जाता है कि इस ऐप की खूबी यह है कि इसमें लोगों को टीएमसी से जोड़ने की कोशिश की गई है। इसमें लोगों से कहा जा रहा है कि वे दीदी के दूत बन जाएं, उनकी बात लोगों तक पहुँचाएं। यानी टीएमसी इसके ज़रिए वॉलंटियर्स की फ़ौज खड़ी करना चाहती है। इससे यह हो सकता है कि अधिक से अधिक लोग उससे जुड़ सकते हैं और उसका प्रचार भी हो सकता है। 

इसके अलावा पाार्टी ने दीदीर दूत नाम से गाड़ियाँ भी चलानी शुरू कर दी है, जिस पर ऐप का क्यूआर कोड होगा। लोग इस क्यूआर कोड को स्कैन कर भी उस ऐप से जुड़ सकते हैं। 

टीएमसी की ट्रिक!

दीदीर दूत का विचार प्रशांत किशोर और उनकी संस्था आई-पैक का है। टीएमसी बांग्ला भाषा को हथियार बना कर बीजेपी पर दूसरे कई तरीकों से भी हमले कर रही है। उसने एक नया नारा दिया है, 'बंगध्वनि' यानी बंगाल की आवाज़। इसके ज़रिए टीएमसी अपनी सरकार की तमाम उपलब्धियों को तो लोगों के सामने रख ही रही है, वह बांग्ला भाषा को मुहरा बना रही है। उसका सारा सब कुछ बांग्ला भाषा में है।

टीएमसी इसके ज़रिए एक तीर से दो शिकार कर रही है। वह अपना प्रचार कर रही है और बांग्ला अस्मिता को भी उभार रही है।

बीजेपी के साथ दिक्कत यह है कि अमित शाह, नरेंद्र मोदी या जे. पी. नड्डा तो बांग्ला बोल नहीं सकते, लेकिन प्रचार की कमान उन लोगों के हाथों ही है। दिलीप घोष या तथागत राय जैसे बंगाली नेता हाशिए पर हैं।

'एबार बांग्ला, पारले सामला'

बीजेपी ने इसकी काट के लिए नारा दिया है, 'एबार बांग्ला, पारले सामला' ('इस बार बंगाल, हो सके तो लो संभाल')। बीजेपी टीएमसी को चुनौती दे रही है कि हो सके तो इस बार बंगाल का चुनाव जीत लो।

लेकिन बीजेपी के पुराने नारे 'माँ, माटी, मानुष' का कोई काट बीजेपी के पास नहीं है। वह भारत माता' और 'जय श्री राम' के नारे उछाल रही है, पर उसका ज़्यादा असर बंगाल मतदाताओं पर पड़े, इसकी संभावना निहायत ही कम है।

पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव 2021 के पहले मामला दिलचस्प हो गया है। वहां लड़ाई बंगाली अस्मिता की लड़ी जा रही है तो वह डिजिटल प्लैटफ़ार्म पर। बंगाल के प्रतीकों का इस्तेमाल किया जा रहा है, बांग्ला भाषा का इस्तेमाल किया जा रहा है। इन मामलों में टीएमसी बढ़त हासिल करती दिख रही है। 

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