सौरव गांगुली बीजेपी के मुख्यमंत्री पद के दावेदार होंगे?
क्या पश्चिम बंगाल के गौरव के प्रतीक माने जाने वाले क्रिकेटर सौरव गांगुली जल्द ही भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो जाएंगे? क्या बीजेपी ममता बनर्जी की लोकप्रियता की काट के रूप में उन्हें विधानसभा चुनाव में मैदान में उतारेगी?
पश्चिम बंगाल बीजेपी अध्यक्ष दिलीप घोष के हालिया बयान से ये सवाल उठे हैं। घोष ने कहा, "सौरव गांगुली जैसे कामयाब लोगों को राजनीति में आना चाहिए।"
उन्होंने कहा, "हम तमाम लोगों से अपील कर रहे हैं कि वे आएं और बीजेपी में शामल हों। सौरव गांगुली जैसे सफल लोगों को राजनीति में आना चाहिए। बीजेपी हर किसी को स्वीकार करने और राज्य सरकार से संघर्ष करने को तैयार हैं।"
राज्यपाल से मुलाक़ात
इसके एक दिन पहले ही बीसीसीआई के अध्यक्ष गांगुली ने राज्यपाल जगदीप धनकड़ से मुलाक़ात की थी। इस पर कई तरह के कयास लगाए गए थे। राज्यपाल से गांगुली की मुलाक़ात इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि जगदीप धनकड़ राज्य सरकार और मुख्यमंत्री पर निजी हमले कर उन्हें लगातार परेशान करने के लिए शुरू से ही विवादों में हैं। कई बार ममता बनर्जी ने उन पर पलटवार किया है और राज्यपाल-सरकार के बीच की लड़ाई पर सवाल उठाए गए हैं।
सौरव गांगुली ने राज्यपाल से मुलाक़ात पर उठी चर्चा के बाद बहुत ही सधी हुई प्रतिक्रिया दी थी। उन्होंने ट्वीट कर कहा था कि "यदि राज्यपाल आपको बुलाते है तो आपको जाना ही होता है।"
बीसीसीआई प्रमुख ने राज्यपाल को कोलकाता स्थिति ईडन गार्डन स्टेडियम आने का न्योता दिया।
Had interaction with ‘Dada’ @SGanguly99 President @BCCI at Raj Bhawan today at 4.30 PM on varied issues.
— Governor West Bengal Jagdeep Dhankhar (@jdhankhar1) December 27, 2020
Accepted his offer for a visit to Eden Gardens, oldest cricket ground in the country established in 1864. pic.twitter.com/tB3Rtb4ZD6
अफ़वाह नई नहीं
लेकिन क्या मामला इतना भर है, सवाल यह है। सौरव गांगुली के बीजेपी में शामिल होने की अफ़वाह नई नहीं है। पहले भी इस पर काफी चर्चा हुई है और वे इस पर चुप रहे हैं।
पिछले महीने तृणमूल कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और सांसद सौगत राय ने कहा था कि गांगुली राजनीति में नहीं चल पाएंगे क्योंकि उन्हें इसका कोई अनुभव नहीं है।
उन्होंने कहा था,
“
"सौरव गांगुली को ग़रीबों और देश की समस्याओं की जानकारी नहीं हैं, वे ग़रीबों की दिक्क़तें नहीं जानते क्योंकि उन्होंने ग़रीबी नहीं देखी है।"
सौगत राय, सांसद, तृणमूल कांग्रेस
इसके साथ ही सौगत राय ने यह भी कहा कि बीजेपी को अब तक मुख्यमंत्री पद का कोई उम्मीदवार नहीं मिला है, लिहाज़ा, वह इस तरह के अफ़वाह फैला रही है।
क्या सचमुच?
यह सच है कि दिवंगत मुख्यमंत्री ज्योति बसु के बाद राज्य की सबसे लोकप्रिय नेता ममता बनर्जी ही हैं। उनकी बराबरी राज्य का कोई नेता नहीं कर सकता, सीपीआईएम में भी नहीं। कांग्रेस और बीजेपी की तो कोई बात ही नहीं है।
पश्चिम बंगाल बीजेपी अध्यक्ष प्रमुख दिलीप घोष का कोई बड़ा जनाधार नहीं है। मुख्यमंत्री पद की होड़ में शामिल होने के लिए मेघालय के पूर्व राज्यपाल और बीजेपी के पुराने नेता तथागत राय बड़े नेता समझे जाते हैं, पर उनका जनाधार भी बहुत बड़ा नहीं है। टीएमसी से गए मुकुल राय तो सारदा चिटफंड स्कैम में शामिल होने के आरोपों से इस तरह घिरे हैं कि वे कहीं नहीं हैं।
'देशेर गौरव, आमादेर सौरव'
ऐसे में पार्टी कोई यदि बांग्ला गौरव सौरव गांगुली की याद आती है तो अचरज नहीं। 'देशेर गौरव, आमादेर सौरव' (यानी 'देश का गौरव हमारा सौरव') का नारा उस समय दिया जाता था जब सौरव गांगुली भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान थे।
उनकी लोकप्रियता का अनुमान इससे लगाया जा सकता है जब उन्हें भारतीय टीम में शामिल नहीं किया गया था, तो कोलकाता शहर में विरोध प्रदर्शन हुए थे और स्टेडियम में नारेबाजी हुई थी। इसी तरह जब आईपीएल में कोलकाता नाइट राइडर्स की टीम में उन्हें जगह नहीं मिली थी तो टीम के फैन्स ने भी स्टेडियम में हल्ला-गुल्ला किया था।
क्रिकेट छोड़ने के बाद उस समय की सत्तारूढ़ सीपीआईएम के नेताओं से सौरव गांगुली की नज़दीकी खबर बनी थी। वे ख़ास कर अशोक भट्टाचार्य के नज़दीक समझे जाते थे। लेकिन न तो सीपीआईएम को सौरव की ज़रूरत महसूस हुई न ही सौरव को राजनीति में जाने का मन हुआ। बात आगे नहीं बढ़ी, सिर्फ अफ़वाह तक सीमित रही।
ममता से नज़दीकी
शुरू में सौरव की ममता बनर्जी के साथ नज़दीकी थी। इस पूर्व क्रिकेटर को जब 2016 में क्रिकेट एसोसिएशन ऑफ बंगाल का अध्यक्ष चुना गया था तो कहा गया था कि उन्हें राज्य सरकार और टीएमसी का समर्थन हासिल था।
यह बात इसलिए भी कही गई थी कि सीएबी के लंबे समय तक अध्यक्ष रह चुके दिवंगत जगमोहन डालमिया की बेटी वैशाली डालमिया ने सीएबी चुनाव में सौरव का साथ दिया था। वैशाली मुख्यमंत्री के नज़दीक समझी जाती हैं, उन्होंने 2016 का चुनाव टीएमसी के टिकट पर लड़ा था।
वाम मोर्चा के जमाने में कोलकाता के महंगे सॉल्ट लेक इलाक़े में सौरव की पत्नी डोना गांगुली को एक स्कूल खोलने के लिए ज़मीन का प्लॉट अलॉट हुआ था। लेकिन वह जमीन उन्हे टीएमसी के सत्ता में आने के बाद दी गई।
लेकिन बीते दिनों गांगुली ने ममता बनर्जी से मुलाक़ात कर वह ज़मीन यह कह लौटा दी कि उन्हें उसकी ज़रूरत नहीं रही। लेकिन समझा जाता है कि सौरव ने निश्चित तौर पर किसी दूसरे कारण से वह ज़मीन वापस की।
बीसीसीआई चुनाव
बीते कुछ समय से बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व ख़ास कर अमित शाह से उनकी नज़दीकी साफ दिख रही थी। उनके बीसीसीआई अध्यक्ष चुने जाने पर भी सवाल उठा था कि यह इस नज़दीकी के कारण हुआ। क्रिकेट की पृष्ठभूमि नहीं होने के बावजूद अमित शाह के बेटे जय शाह के बीसीसाई में चुने जाने से इस तरह की अटकलों को बल मिला।
बीसीसीआई चुनाव के बाद गांगुली ने 'आउटलुक' पत्रिका से बात करते हुए बीजेपी में शामिल होने या अमित शाह से मदद मिलने की बात से इनकार कर दिया था। उन्होंने यह ज़रूर कहा था कि उन्होंने बीसीसीआई चुनाव में पहले अनुराग ठाकुर का समर्थन किया था। अनुराग ठाकुर बीजेपी सांसद हैं।
सौरव गांगुली ने इस पर कहा था,
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"जब अनुराग ठाकुर का चुनाव हुआ था, हमने उनका समर्थन किया था। इसी तरह शशांक मनोहर के अध्यक्ष चुने जाने में जगमोहन डालमिया ने समर्थन किया था। शरद पवार और माधवराव सिंधिया के अध्यक्ष चुने जाने में भी ऐसा हुआ था। ऐसे में मेरे बीजेपी में जाने की बात कहाँ से आ गई?"
सौरव गंगुली, अध्यक्ष, बीसीसीआई
सौरव गांगुली लोकप्रिय हैं, साफ छवि वाले हैं, पश्चिम बंगाल के मध्यवर्गीय समाज को अपील करते हैं। अपने किसी बड़े नेता के अभाव में बीजेपी उन पर दाँव लगा सकती है। पर सवाल यह है कि क्या वे बीते 40 साल से पश्चिम बंगाल में ज़बरदस्त लोकप्रिय रहीं और अकेले अपने बल पर वाम मोर्चा के 35 साल के शासन को उखाड़ फेंकने वाली ममता बनर्जी को चुनौती दे पाएंगे?