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'जय श्री राम' के नारे से किनारा करेगी बंगाल बीजेपी?

'जय श्री राम' के नारे से किनारा करेगी बंगाल बीजेपी?

भारतीय जनता पार्टी जिस 'जय श्री राम' नारे के बल पर लोकसभा में दो सीट से 303 सीट तक पहुँच गई और अकेले बहुमत हासिल कर दूसरी बार देश की सत्ता पर कब्जा कर लिया, वह पश्चिम बंगाल में उस नारे से निजात पाने की रणनीति अपना रही है। 

भारतीय जनता पार्टी जिस 'जय श्री राम' नारे के बल पर लोकसभा में दो सीट से 303 सीट तक पहुँच गई और अकेले बहुमत हासिल कर दूसरी बार देश की सत्ता पर कब्जा कर लिया, वह पश्चिम बंगाल में उस नारे से निजात पाने की रणनीति अपना रही है। 

'बाहरी' और 'ग़ैर-बंगाली' राजनीतिक दल होने के ठप्पे से मुक्ति पाने और पहचान की राजनीति को पहले से ज़्यादा मजबूत करने की कोशिश के तहत बीजेपी पश्चिम बंगाल में 'जय श्री राम' को छोड़ कर 'जय मां काली' के नारे को अपनाने जा रही है। इस रणनीति के तहत ही बीजेपी के तमाम केंद्रीय नेता कोलकाता जाने पर काली घाट और दक्षिणेश्वर के काली मंदिरों के दर्शन करने लगे हैं। लेकिन पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव 2021 पर इस नारे का कितना असर पड़ेगा, सवाल यह है। 

जय श्री राम!

अमित शाह ही नहीं, नरेंद्र मोदी ने भी 2017 में ही पश्चिम बंगाल में 'जय श्री राम' का नारा उछाला और 2019 के लोकसभा चुनाव की हर रैली और हर मीटिंग में इस नारे को उछालते हुए मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पर आरोप लगाया कि इस नारे को लगाने वाले को पुलिस गिरफ़्तार कर लेती है। उन्होंने राज्य सरकार और सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस पर मुसलिम तुष्टीकरण ही नहीं, हिन्दू-विरोधी होने के आरोप भी लगाए। 

ममता बनर्जी ने ज़ोरदार पलटवार करते हुए बीजेपी को 'ग़ैर-बंगाली', 'बाहरी' राजनीतिक दल क़रार दिया और आरोप लगाया कि वह 'बंगाली राष्ट्रवाद' को कुचल कर वहां के लोगों पर 'उत्तर भारतीय राष्ट्रवाद' थोपना चाहती है। 

पश्चिम बंगाल में अंदर ही अंदर मजबूत बंगाली राष्ट्रवाद हमेशा ही रहा है। वह मराठी राष्ट्रवाद की तरह उग्र भले न हो, पर बाहरी लोगों के प्रभुत्व के ख़िलाफ़ हमेशा रहा है।

ममता का पलटवार

ममता बनर्जी ने साफ तौर पर कहा था कि ये बाहरी लोग बंगाल को नहीं समझ सकते और बंगाली अस्मिता, बंगाली पहचान और बंगाली गौरव पर चोट कर रहे हैं। 

उन्होंने लगभग चुनौती के स्वर में कहा था कि 'जय श्री राम' के जवाब में हम 'जय मां काली' कहेंगे और बीजेपी भी ऐसा ही कहे। इस हमले से अकबकाए बीजेपी केंद्रीय नेतृत्व को कोई जवाब नहीं सूझा था क्योंकि वे बंगाली संस्कृति से पूरी तरह अनजान थे। 

 - Satya Hindi

उत्तर भारतीय राष्ट्रवाद

बीजेपी के केंद्रीय नेताओं को यह समझने में देर हुई कि पश्चिम बंगाल में राम उत्तर भारत की तरह लोकप्रिय देवता नहीं हैं, वे उत्तर प्रदेश की तरह गाँव-गाँव नहीं पूजे जाते हैं, 'जय श्री राम' का नारा बंगाली मानसिकता और वहां की धार्मिक-संस्कृति बुनावट के अनुकूल नहीं है। 

तमाम पर्यवेक्षकों को यह बात समझ में नहीं आ रही थी कि मोदी और शाह तो ग़ैर-बंगाली हैं ही, पर दिलीप घोष और मुकुल राय जैसे नेताओं को यह बात क्यों समझ में नहीं आ रही है कि पश्चिम बंगाल में 'जय श्री राम' का नारा नहीं चल पाएगा। 

मातृका पूजा और देवी पूजन करने वाले समाज में दुर्गा गाँव की बेटी समझी जाती है जो साल में एक बार अपने बच्चों के साथ मायके आती है और लोग 'दुर्गा एसछे' कह कर उसकी पूजा करते हैं। इस समाज में राम बिल्कुल बाहरी हैं, वे देवता भले ही हों, पर यहां स्वीकार्य नहीं हैं।

देवी पूजन करने वाले और मातृ सत्ता को स्वीकार करने वाले इस समाज में दुर्गा के बाद दूसरी सबसे बड़ी देवी काली हैं, जिनकी पूजा घर-घर में होती है और लगभग हर गाँव में किसी न किसी रूप में उनकी प्रतिमा होती है। 

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'जय मां काली' 

अब बीजेपी ने 'जय मां काली' का नारा लगाने की तैयारी कर ली है। इसके तहत ही जे. पी. नड्डा और अमित शाह ने काली घाट और दक्षिणेश्वर जाकर दर्शन किए हैं। वे अब मंच से भी इस नारे को उछालेंगे। 

लेकिन बीजेपी की रणनीति सिर्फ 'जय मां काली' का नारा उछालने भर की नहीं है, वह राज्य के हिन्दू संप्रदायों तक पहुंचने और उनके मठों और संस्थाओं से जुड़ने और उनसे वोट मांगने की नीति पर काम कर रही है। इसके तहत राष्ट्रीय महासचिव अनुपम हाजरा की अगुआई में एक कमेटी का गठन किया है। इसके महासचिव रथींद्र बोस हैं, कमेटी में आठ सदस्य हैं। 

धार्मिक संस्थाओं तक पहुँचेगी बीजेपी

यह कमेटी इस्कॉन, राम कृष्ण मिशन, अनुकूल देव के ऑश्रम, कीर्तनिया समाज, भारत सेवाश्रम, हिन्दू मिलन समाज और इस तरह की तमाम संस्थाओं से संपर्क करेगी और उनके नेतृत्व से कहेगी कि वह चुनाव के ठीक पहले बीजेपी को वोट देने की अपील जारी कर दें। ऐसे लगभग 20-22 संगठनों को चुना गया है। 

रामकृष्ण मिशन, ठाकुर अनुकूल देव आश्रम और इस्कॉन का राज्य में बहुत ही अधिक प्रभाव हैं, इनके अनुयायियों की तादाद लगभग 1-2 करोड़ है। 

बीजेपी की यह रणनीति इससे साफ है कि शनिवार को अमित शाह कोलकाता गए तो रामकृष्ण मिशन भी गए और उसे खूब प्रचारित भी किया। 

अमित शाह ने रामकृष्ण मिशन में स्वामी विवेकानंद के बारे में बताया, उन्हें सनातन धर्म से जोड़ा, अनके शिकागो व्याख्यान की राजनीतिक व्याख्या की कोशिश की और वह वीडियो ट्वीट किया। जाहिर है, वे यह जताना चाहते हैं कि रामकृष्ण मिशन और स्वामी विवेकानंद से पार्टी को ख़ास लगाव है। 

क्या करेंगी ये संस्थाएं

लेकिन सवाल यह है कि क्या ये संस्थाएं किसी राजनीतिक दल के पक्ष में वोट डालने की अपील करेंगी पर्यवेक्षकों का कहना है कि बीजेपी इस बारे में एक बार फिर ग़लती कर रही है। पश्चिम बंगाल की राजनीति में ऐसा नहीं होता है कि कोई सामाजिक या धार्मिक संस्था किसी राजनीतिक दल का खुले आम समर्थन करे या उसके अनुयायी उसे मान लें। 

यह भी अहम है कि यदि रामकृष्ण मिशन या इस्कॉन ने बीजेपी को वोट देने की अपील की तो उसके अनुयायियों का बड़ा समूह उसके ख़िलाफ़ हो जा सकता है क्योंकि वहां राजनीतिक विवाद की रेखाएं ज़्यादा गहरी खिंची हुई हैं।

वहाँ लोग राजनीतिक सिद्धान्त और धार्मिक आस्था को अलग-अलग ही रखते हैं और उसमें किसी तरह के घालमेल को पसंद नहीं करेंगे

काली के उद्घोष से फ़ायदा होगा

ऐसे में 'जय मां काली' का उद्घोष कितना कारगर होगा, यह सवाल भी महत्वपूर्ण है। जिस तरह 'जय श्री राम' के नारे का राजनीतिकरण किया गया और उसे उग्र हिन्दुत्व के प्रतीक के रूप में स्थापित कर दिया गया, 'जय मां काली' के साथ ऐसा नहीं हो सकता है। 

इसकी वजहें भी साफ हैं, 'जय मां काली'  के नाम पर कोई विवाद नहीं है, यह धार्मिक है, लेकिन इसे हिन्दुत्व से जोड़ना मुश्किल होगा। उग्र हिन्दुत्व का प्रतीक तो बिल्कुल ही नहीं बनाया जा सकता है, खास कर तब जब अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण शुरू हो चुका है। 

बीजेपी ने जिस तरह 'जय श्री राम' नारे का इस्तेमाल एक समुदाय विशेष को डराने के लिए किया और इसके आधार पर बहुसंख्यक हिन्दू समाज को एकजुट कर उसे वोटों में तब्दील करने की कोशिश की, वैसा 'जय मां काली' नारे के साथ नहीं हो सकता।

इस नारे के आधार पर न तो किसी समुदाय को डराया जा सकता है न ही हिन्दुओं को एकजुट किया जा सकता है क्योंकि यह लोगों की मानसिकता नें रचा-बसा हुआ है।

इन तमाम घात-प्रतिघातों के बीच क्या ममता बनर्जी चुनाव हारने के कगार पर हैं, बता रहें है वरिष्ठ पत्रकार आशुतोष। 

साफ है, 'जय मां काली' बंगालियों के मन के अंदर है, सांस्कृतिक पहचान और बंगाली अस्मिता का प्रतीक भी है, लेकिन वह उग्र हिन्दुत्व का प्रतीक नहीं बन सकता। यह नारा वोट खींचने के काम नहीं आ सकता है। 

'जय मां काली' बंगाली पहचान का हिस्सा है, यह भले ही अल्पसंख्यक समुदाय को आकर्षित न करे, उन्हें डराता भी नहीं है। इसलिए इस आधार पर ध्रुवीकरण करना मुश्किल होगा। 

'जय श्री राम' का नारा बुझ गया है, बीजेपी  'जय मां काली' के नारे को हवा नहीं दे पाएगी। 

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