विश्व हिन्दू परिषद दलितों को पटाने क्यों निकली, धर्म सम्मेलनों से कुछ हासिल होगा?
लोकसभा चुनाव 2024 के दौरान यूपी, महाराष्ट्र, कर्नाटक आदि बड़े राज्यों में दलितों ने कांग्रेस और सपा या एमवीए को वोट डाला। इससे भाजपा का अपने दम पर सरकार बनाने का सपना चकनाचूर हो गया। केंद्र में उसकी सरकार अब सहयोगी दलों की बैसाखियों पर है। ऐसे में भाजपा के दलित समर्थन आधार के एक वर्ग के खिसकने की खबरों के बीच संघ परिवार अनुसूचित जाति को लक्ष्य करके 15 दिवसीय धर्म सम्मेलन आयोजित करने की योजना बना रहा है। इनमें दलितों के गांव और शहरी क्षेत्रों की मलिन बस्तियां हैं। विहिप संघ परिवार का हिस्सा है।
विश्व हिंदू परिषद (VHP) द्वारा आयोजित किए जा रहे इस कार्यक्रम में दलित घरों में भोजन करना और दलित बस्तियों में धार्मिक उपदेश देना शामिल होगा। इसके लिए वीएचपी बाबाओं की मदद भी ले रहा है।
विहिप के अध्यक्ष आलोक कुमार ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि “कार्यक्रम दिवाली (1 नवंबर) से 15 दिन पहले शुरू होगा। हमने धार्मिक नेताओं और संतों से शहरों और कस्बों में दलित गांवों और बस्तियों में पदयात्रा करने का अनुरोध किया है। इस दौरान संत समाज के साथ भोजन करेंगे और धार्मिक उपदेश भी देंगे। यह समाज में धार्मिक जागृति के लिए किया जा रहा है। हम समय-समय पर ऐसा करते रहते हैं। विचार यह है कि सत्संग (धार्मिक सभा) में लोगों के आने का इंतजार करने के बजाय, सत्संग लोगों के पास जाएगा।”
हालाँकि आरएसएस का कार्यक्रम छुआछूत खत्म करने और हिंदुओं को एकजुट करने के संघ परिवार की तथाकथित दीर्घकालिक परियोजना का हिस्सा है, लेकिन लोकसभा चुनावों में दलितों के एक महत्वपूर्ण वर्ग द्वारा पाला बदलने के कथित कदम के मद्देनजर यह राजनीतिक महत्व रखता है।
आरएसएस कृष्ण जन्माष्टमी पर भी अपनी 60वीं जयंती के मौके पर समारोह आयोजित करेगा। 24 अगस्त से विहिप देश भर के लगभग 9,000 ब्लॉकों में इस संबंध में धार्मिक सम्मेलन आयोजित करेगी। कुमार ने कहा, "इनमें महिलाओं और दलितों समेत समाज के विभिन्न वर्गों की भागीदारी होगी।"
महाराष्ट्र और कर्नाटक के अलावा कुछ हिंदी भाषी राज्यों में देखे गए इस बदलाव ने भाजपा की चुनावी संभावनाओं को नुकसान पहुंचाया, जिससे पार्टी सामान्य बहुमत (272 सीटें) से 32 सीटों से पीछे रह गई। भाजपा को सबसे बड़ा झटका यूपी में लगा, जहां जनवरी में अयोध्या में राम मंदिर का उद्घाटन करने के बावजूद, पार्टी न केवल अयोध्या (फैजाबाद) सीट समाजवादी पार्टी (सपा) से हार गई, बल्कि 62 सीटों की अपनी संख्या से भी पिछड़ गई। 2019 के लोकसभा चुनाव के मुकाबले राज्य में इस बार सिर्फ 33 सीटें आईं।
चुनावों में दलित बदलाव की शुरुआत कुछ भाजपा उम्मीदवारों के बयानों से हुई, जिन्होंने अपने प्रचार भाषणों में संकेत दिया था कि अगर पार्टी के नेतृत्व वाला एनडीए 400 सीटों से आगे चला गया, तो हिंदू राष्ट्र की सुविधा के लिए संविधान को बदल दिया जाएगा। इसे इंडिया गठबंधन ने तुरंत हथियार बना लिया, जिसने दलित आइकन बी. आर. अंबेडकर द्वारा तैयार किए गए संविधान को बचाने के मुद्दे पर एक अभियान चलाया गया।
भाजपा और आरएसएस को सबसे बड़ा झटका बसपा प्रमुख मायावती की तरफ से लगा। मायावती वैसे भी भाजपा की बी टीम के रूप में विख्यात हो चुकी है। भाजपा ने गणित लगाया था कि दलितों का वोट मायावती के साथ ही रहेगा और इस तरह जब दलित वोट एक तरफ कट जाएगा तो भाजपा की राह आसान हो जाएगी। लेकिन दलित वोटरों ने समझदारी दिखाई। उन्होंने मायावती की पार्टी को आंख बंद कर वोट देने की बजाया सपा और कांग्रेस को यूपी में दिया। महाराष्ट्र में महा विकास अघाड़ी (एमवीए) को दिया और कर्नाटक में कांग्रेस को दिया। भाजपा को ऐसी उम्मीद जरा भी नहीं थी। इसीलिए अब धर्म सम्मेलनों के जरिए दलितों को पटाने की मुहिम छेड़ी गई है। हालांकि केंद्र की सरकार जिस तरह लैटरल एंट्री के जरिए एससी-एसटी आरक्षण में छेड़छाड़ कर रही है, उससे अच्छे संकेत नहीं जा रहे हैं।