कोहली को बोर्ड का खेल समझ क्यों नहीं आ रहा है?
कुछ साल पहले नई दिल्ली के पांच सितारा होटल ताज की लॉबी में मौजूदा खेल मंत्री अनुराग ठाकुर ने बीसीसीआई की एक बैठक के दौरान एक बेहद दिलचस्प बात बतायी थी। ठाकुर का कहना था कि अगर आपको भारतीय संसद की राजनीति और गठजोड़ को समझना है तो सबसे पहले बीसीसीआई की राजनीति समझिये।
दरअसल, जिस तरह से बीसीसीआई में सत्ता आती और जाती है और जिस तरह से प्रशासक बनते हैं और कुर्सियाँ खिसकती हैं उसी की छाया आपको भारतीय राजनीति में अक्सर दिखाई देगी। और बीसीसीआई में जो राज करता है, भारतीय क्रिकेट के मैदान के फ़ैसलों पर भी उसका ही डंका बजता है। विराट कोहली होंगे बहुत महान बल्लेबाज़, वो होंगे सबसे सफल कप्तान लेकिन अब बीसीसीआई ने जब ठान लिया है कि कोहली के विराट कद को कतरना है तो वो कतरे ही जायेंगे भले वो इसे पसंद करें या नापसंद।
बहरहाल, ऐसा कहने का मतलब बिल्कुल यह नहीं है कि बीसीसीआई जो कर रही है वो ग़लत है और कोहली बेचारे या मासूम हैं। दरअसल, कोहली को आज नहीं तो कल इस दौर से गुज़रना ही था लेकिन बीसीसीआई के आकाओं ने इंतज़ार किया है। उन्होंने कोहली पर ‘वार’ तब किया है जब वो बल्लेबाज़ के तौर पर सबसे कमज़ोर दिख रहे हैं। आँकड़े इस बात के गवाह हैं क्योंकि नवंबर 2019 से उनके बल्ले से कोई शतक नहीं निकला है और 12 टेस्ट में उनका औसत 26 का है जबकि उनका करियर औसत 51 का रहा है।
यही हाल वन-डे मैचों में है जहाँ 15 मैचों में उनका औसत 43 के क़रीब है जबकि उनका करियर औसत 60 के पास हुआ करता था। बल्लेबाज़ कोहली की इस गिरावट ने टीम पर असर डाला है। वो दिन बीते ज़्यादा नहीं हुए जब बैंगलोर की नेशनल क्रिकेट एकेडमी में एक सीढ़ी के टाइल्स का रंग भी बीसीसीआई के सीईओ राहुल जौहरी कोहली से पूछकर लगवाया करते थे!
वो दौर तो विनोद राय की अध्यक्षता वाली COA का था जो कोहली के आगे नतमस्तक हुआ करती थी। कप्तान कोहली के फ़ैसले पर कोई सवाल नहीं उठाता था। कोहली का रूतबा ऐसा हुआ करता था कि वो सचिन तेंदुलकर जैसे दिग्गज को अकेले तो क्या उनके साथ सौरव गांगुली और वीवीएस लक्ष्मण वाली क्रिकेट सलाहकार कमेटी को भी धता बता रहे थे।
लंदन में तेंदुलकर और गांगुली ख़ासतौर पर कोहली को इस बात के लिए मनाने गये कि अनिल कुंबले जैसे पूर्व कप्तान को भारतीय कोच के पद से हटवाना सही नहीं होगा लेकिन कोहली टस से मस तक नहीं हुए।
कप्तान के पंसदीदा चीयर लीडर कोच रवि शास्त्री की दोबारा वापसी हुई।
अब वक़्त का पहिया घूम रहा है...
लेकिन, अब वक़्त का पहिया ऐसे घूम रहा है कि बीसीसीआई 4 साल बाद उसी कुंबले को कोच के तौर पर टीम इंडिया में एंट्री करवाने के बारे में सोच रही है। पिछले एक साल में भारतीय क्रिकेट में मैदान और मैदान के बाहर हालात तेज़ी से बदले हैं और अब कोहली की सर्वोच्चता वाले भाव को चुनौती देने के लिए रोहित शर्मा का एक तगड़ा विकल्प उभरकर सामने आया है। बीसीसीआई में जय शाह जैसे सचिव हैं जिनकी ताक़त किसी परिचय का मोहताज नहीं है।
अब विनोद राय की तरह शाह तो कप्तान को पूरी तरह अपनी मनमर्जी से टीम को चलाने की इजाज़त क़तई नहीं देंगे। शाह ने पिछले ऑस्ट्रेलिया दौरे से ही कई सीनियर खिलाडियों से कप्तान और कोच के बारे में फीडबैक ली है और इसी का नतीजा है कि पूर्व कप्तान और कैप्टन कूल और सबसे सम्मानित नाम महेंद्र सिंह धोनी को मेंटोर बनाकर लाया गया और विराट कोहली को टी20 की कप्तानी छोड़ने की घोषणा मजबूरी में करनी ही पड़ी।
आम-तौर पर इतने बड़े फ़ैसले की घोषणा या तो बीसीसीआई की प्रेस कांफ्रेस या फिर प्रेस रिलीज के ज़रिये होती है लेकिन कोहली ने निजी तौर पर ऐसा करके यह संदेश देने की कोशिश की है कि ये फ़ैसले वो खुद की मर्जी से ले रहे हैं लेकिन यह सच नहीं है। कोहली ने अपने अधिकारिक बयान में कहा कि वह टी20 की कप्तानी तो छोड़ देंगे लेकिन वन-डे और टेस्ट में कप्तानी करते रहेंगे। वो ये शायद भूल गये कि बीसीसीआई भला ऐसा क्यों चाहेगा कि वन-डे क्रिकेट जो सफेद गेंद के फॉर्मेट का हिस्सा है, उसकी कप्तानी कोहली को ही सौंपी जाए जबकि उनके पास रोहित शर्मा का शानदार विकल्प है?
अगर कोहली के हिसाब से बोर्ड चलेगा तो ना तो राष्ट्रीय कप्तानी की ज़िम्मेदारी का बंटवारा ठीक से हो पायेगा और न ही भविष्य के लिए कोई नया कप्तान तैयार करने में किसी तरह की मदद मिलेगी।
कुंबले की दोबारा एंट्री?
और इसलिए कुंबले की दोबारा संभावित एंट्री काफी सोची समझी रणनीति का हिस्सा है। बोर्ड जानता है कि अब कोहली और रोहित दोनों 32 साल के पार हो चुके हैं। भविष्य के तौर पर कप्तानी का विकल्प नहीं है। उन्हें हर हाल में या तो के एल राहुल (सुनील गावस्कर की पंसद) या फिर ऋषभ पंत (युवराज सिंह समेत कई आधुनिक खिलाड़ियों की पसंद) को आगे की कप्तानी के लिये तैयार करना होगा। हो सकता है कि अब लाल गेंद और सपेद गेंद के लिए अलग अलग कप्तान हों और इसलिए ड्रेसिंग रूम में संतुलन स्थापित करने के लिए आपको कुंबले जैसा ही ठोस और बेहद सम्मानित नाम चाहिए।
कुंबले के आने से जूनियर खिलाड़ियों को तो फायदा होगा ही और साथ ही कोहली और रोहित के बीच किसी भी तरह के मन-मुटाव की संभावना कम हो जायेगी क्योंकि कुंबले को भारतीय ड्रेसिंग रुम में गांगुली-लक्ष्मण-द्रविड-श्रीनाथ जैसे सिनियर खिलाड़ियों के साथ चलने का अनुभव है तो सहवाग-हरभजन-युवराज-धोनी जैसी नई पीढ़ी का भरपूर सम्मान भी मिला था। कुंबले एक आधुनिक कोच भी हैं और बेहद संतुलित मिज़ाज के भी हैं। इस बात में किसी को शक नहीं होना चाहिए कि भारतीय क्रिकेट की प्राथमिकता ही उनका मूल उद्देश्य रहा है।
कोहली वो सब कुछ देख क्यों नहीं पा रहे हैं?
एक बात जो हैरान करने वाली है वह यह कि कोहली आख़िर वो सब कुछ देख क्यों नहीं पा रहे हैं जो बीसीसीआई उन्हें परोक्ष तरीक़े से बताने की कोशिश कर रही है। उल्टे कोहली अजीबोगरीब दलील देकर खुद को हल्का करते दिख रहे हैं। अब आप खुद सोचिये कि उनकी दलील है कि पिछले 8-9 सालों से तीनों फॉर्मेट खेलने और 5-6 सालों से इन तीनों में कप्तानी करने के चलते उन्हें थकान महसूस हो रही है और अब वो सिर्फ़ टेस्ट और वन-डे की कप्तानी ही करना चाहते हैं। लेकिन, वाजिब सवाल यह बनता है कि अगर थकान इतनी ही ज़्यादा महसूस हो रही है तो वो आईपीएल की कप्तानी क्यों नहीं छोड़ देते जहाँ हर साल उन्हें क़रीब 15 मैच सिर्फ़ 2 महीने के भीतर खेलना ही पड़ता है?
अगर कोहली अपने पूर्व कप्तान धोनी की ही तरह टेस्ट की कप्तानी छोड़ने के साथ साथ खिलाड़ी के तौर पर भी एक फॉर्मेट से पूरी तरह से संन्यास लेने वाला काम टी20 फॉर्मेट में करते तो ये ज़्यादा बेहतर बात हो सकती थी।
ये बीसीसीआई की परंपरा का हिस्सा है...
आख़िर में एक बात। कोहली को यह बिलकुल नहीं भूलनी चाहिये कि भारतीय क्रिकेट में हर कप्तान की तूती तब तक ही बोलती है जब तक कि बोर्ड का हाथ उनके कंधों पर होता है। ऐसा होने से चयनकर्ताओं की जुबान से भी शब्द नहीं निकलते हैं लेकिन जब बोर्ड चाहता है कि सत्ता में परिवर्तन हो तो चेतन शर्मा जैसे चयनकर्ता भी सार्वजनिक तौर पर ये कहने से नहीं हिचकते हैं कि भले ही कोहली टी20 में ओपनर बनना चाहते हों लेकिन टीम के लिये बेहतर होगा कि वो मध्य क्रम में ही बल्लेबाज़ी करें!
दरअसल, अभी जो कोहली के साथ हो रहा है या फिर आगे होगा वो कोई नयी बात नहीं है। भारतीय क्रिकेट में पहिया इसी अंदाज़ में ही घूमता है। जब भी किसी कप्तान का बल्लेबाज़ के तौर पर फॉर्म ढीला होता है तो कप्तान के तौर पर उसकी हैसियत पर भी असर पड़ता है। ये सुनील गावस्कर से लेकर सचिन तेंदुलकर और और अज़हरुद्दीन से लेकर राहुल द्रविड़ जैसे दिग्गजों को भी झेलना पड़ा है। अगर कोहली को इस दौर से निकलना है तो सबसे पहले उन्हें अपने बल्ले से इतने रन बनाने होंगे कि कोई भी उनके खेल पर सवाल ना कर सके। अगर इस दौरान रोहित का फॉर्म गड़बड़ाता है तो कोहली के लिए फिर से हालात सुधर सकते हैं। लेकिन अगर, रोहित का भी बल्ला गूंजता है और आईपीएल में वो फिर से मुंबई इंडियंस को चैंपियन बनाते हैं तो कोहली पर दबाव और बढ़ेगा।