सावरकर के प्रति क्यों उमड़ रहा है बीजेपी नेताओं का प्रेम?
महाराष्ट्र में महा विकास अघाडी की सरकार बने कुछ ही दिन हुए हैं लेकिन एक महीने में दूसरी बार उसे विनायक दामोदर सावरकर को लेकर अग्नि परीक्षा से गुजरना पड़ रहा है। कांग्रेस की ओर से जारी की गई बुकलेट ‘वीर सावरकर, कितने वीर’ को लेकर शिवसेना पसोपेश में है और बीजेपी आक्रामक। लेकिन बीजेपी की यह आक्रामकता सावरकर के प्रति उसकी सच्ची श्रद्धा है या इसमें भी कहीं कोई राजनीतिक चाल छुपी हुई है?
सावरकर की हिन्दू महासभा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बीच कैसे रिश्ते और दूरियां थीं, इस पर कई किताबें लिखी गयी हैं। लेकिन महाराष्ट्र और केंद्र के बीजेपी नेताओं के सावरकर के प्रति उमड़े अचानक प्रेम के पीछे कुछ और पटकथा भी चल रही है, इस बात का संकेत उद्धव ठाकरे ने विधानसभा में बतौर मुख्यमंत्री अपने भाषण में कुछ समय पहले दिया था।
ठाकरे ने सावरकर को लेकर आंदोलित बीजेपी नेताओं से कहा था कि सावरकर के नाम का इस्तेमाल करने से बेहतर है उनका जैसा बनने का प्रयास करना। दरअसल, बीजेपी सावरकर को लेकर बार-बार जो इतनी आक्रामक हो रही है उसके पीछे उसकी नीति सावरकर प्रेम से हटकर कुछ और है। बीजेपी ने सत्ता से हटने के बाद बार-बार हिंदुत्व को लेकर शिवसेना पर हमले किये हैं।
बीजेपी शिवसेना को अब पुरानी यानी बालासाहेब के जमाने की शिवसेना नहीं कहकर उसकी हिंदुत्ववादी पार्टी की छवि को धूमिल करने का प्रयास कर रही है। बीजेपी ऐसा कर महाराष्ट्र में हिंदुत्व के नाम पर पड़ने वाले वोटों का ध्रुवीकरण करना चाहती है। इस ध्रुवीकरण में वह प्रदेश में शिवसेना की ज़मीन को हथियाना चाहती है।
बीजेपी चाहती है कि मुख्यतया चार दलों वाली महाराष्ट्र की राजनीति में जब तीन पार्टियों ने मिलकर सरकार बना ली है तो विपक्ष के रिक्त स्थान को वह भर ले ताकि वोटों का समीकरण बदल जाए। राजीव गाँधी के नेतृत्व में जब शरद पवार ने अपनी पार्टी समाजवादी कांग्रेस का कांग्रेस में विलय कर दिया था, उसके बाद से प्रदेश में विपक्ष का नया समीकरण तैयार हुआ था। यह समीकरण था शिवसेना-बीजेपी का।
हिंदू वोटों पर कब्जे की कोशिश
1989 के लोकसभा चुनाव में शिवसेना और बीजेपी की प्रदेश में ताकत बढ़नी शुरू हुई और 1995 में यह गठबंधन राज्य में सरकार बनाने में सफल रहा। उसके बाद से महाराष्ट्र में कांग्रेस का आधिपत्य ख़त्म हो गया और सत्ता के खेल में चार प्रमुख पार्टियां दो गठबंधनों में बंट गयीं। शायद बीजेपी इसी रणनीति के तहत काम कर रही है और अब वह हिंदुत्व के नाम पर बने वोट बैंक को ज्यादा से ज्यादा अपने हिस्से में करने की कोशिश में है।
जिला परिषदों में हार रही बीजेपी
प्रदेश में वर्तमान में जिला परिषदों के चुनाव चल रहे हैं उसमें कांग्रेस-शिवसेना और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के नए गठबंधन की वजह से बीजेपी को धक्का लग रहा है। शिवसेना को साथ रखकर उसने जिला परिषदों पर जो कब्जा जमाया था, वह एक-एक कर उसके हाथ से निकल रहे हैं। इसलिए भी बीजेपी चाहती है जब ग्राम पंचायतों व महानगरपालिकाओं के चुनाव हों तो वह हिंदुत्व का वोट बैंक शिवसेना से खींच ले। इसलिए कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गाँधी का दिल्ली में भारत बचाओ रैली के दौरान दिया गया 'मैं राहुल सावरकर नहीं हूं' वाले बयान को लेकर भी बीजेपी हमलावर रही थी और कांग्रेस सेवादल की पुस्तक 'वीर सावरकर कितने वीर' को लेकर भी वह आक्रामक हो गयी है।
महाराष्ट्र में सत्ता से बेदख़ल हुई बीजेपी को बैठे-बिठाये शिवसेना को घेरने का मुद्दा मिल रहा है। महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस से लेकर केंद्रीय मंत्रियों ने कांग्रेस की इस बुकलेट को लेकर शिवसेना पर निशाना साधा है और पूछा है कि वह इस बारे में शिवसेना से जवाब चाहते हैं।
फडणवीस ने ट्वीट कर कहा, ‘आदरणीय हिंदू हृदय सम्राट शिवसेना प्रमुख बालासाहेब ठाकरे आज अगर हमारे बीच होते तो वह अपने चिरपरिचित अंदाज में इस पर (बुकलेट) सबसे पहले प्रतिक्रिया देते।’ फडणवीस ने इस बारे में कई ट्वीट किए। फडणवीस ने कहा कि आज ऐसी उम्मीद तो नहीं की जा सकती लेकिन आशा है कि मुख्यमंत्री इस बुकलेट को प्रतिबंधित करने की तत्काल घोषणा करें। लेकिन शिवसेना की तरफ से एक बार फिर से इस मामले में एक सधा हुआ बयान आया है।
यह पहला अवसर नहीं है जब फडणवीस ने बालासाहेब का उल्लेख कर उद्धव ठाकरे पर निशाना साधने की कोशिश की। बालासाहेब की पुण्यतिथि के दिन भी फडणवीस ने एक पुराने वीडियो क्लिप को शेयर कर उद्धव ठाकरे को बालासाहेब के हिंदुत्व पर विचार से सीख लेने की नसीहत दी थी। यही नहीं, नई सरकार के विधानसभा के पहले सत्र के दौरान फडणवीस के साथ सभी बीजेपी विधायक 'मैं भी सावरकर' लिखी टोपी पहनकर सदन में उपस्थित रहे थे और हंगामा किया था।
राहुल गाँधी के बयान पर बीजेपी नेताओं की इस आक्रामकता पर मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने जो बयान दिया था, उससे यह स्पष्ट संकेत मिल गए थे कि वह इस तरह के राष्ट्रीय या इतिहास के विवादास्पद मुद्दों के बजाय सरकार चलाने के लिए जो न्यूनतम साझा कार्यक्रम तय किया गया है, उस पर ज्यादा केंद्रित रहना चाहते हैं। अब जब नया विवाद जन्मा है तो ठाकरे शुक्रवार को सावरकर के पोते रंजीत सावरकर से नहीं मिले।
रंजीत सावरकर ने कहा कि इस संबंध में राहुल गाँधी और कांग्रेस के नेताओं के ख़िलाफ़ मामला दर्ज होना चाहिए। लेकिन जिस तरह से राहुल गाँधी के बयान पर शिवसेना प्रवक्ता संजय राउत का बयान आया था कि ‘वीर सावरकर न सिर्फ महाराष्ट्र, बल्कि पूरे देश के लिए आदर्श हैं। नेहरू और गाँधी की तरह सावरकर ने भी देश के लिए अपने जीवन का बलिदान दिया और इस पर कोई समझौता नहीं हो सकता।’ ठीक उसी तरह का बयान इस बुकलेट को लेकर उपजे विवाद पर आया है।
संजय राउत ने कहा, ‘वीर सावरकर महान व्यक्ति थे और हमेशा महान रहेंगे...एक वर्ग उनके ख़िलाफ़ बातें करता रहता है, चाहे वह कोई भी हो, लेकिन इससे उनके दिमाग में मौजूद गंदगी के बारे में पता चलता है...। राउत ने कहा कि मध्य प्रदेश की गन्दगी वहीं रहेगी। मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में कांग्रेस सेवादल का राष्ट्रीय प्रशिक्षण शिविर हो रहा है और इस शिविर में ही यह बुकलेट बांटी गई है।