'वाइब्रेंट गुजरात' के नाम पर झाँसा दे रहे हैं शोमैन मोदी?
अंग्रेज़ी में एक शब्द है Hoax! गूगल ने इसका अनुवाद किया झांसापट्टी। देश की सबसे बड़ी झांसापट्टी जिसे 'वाइब्रेंट गुजरात' के नाम से जाना जाता है, उसका उद्घाटन प्रधानमंत्री शुक्रवार को करेंगे। वायब्रेंट गुजरात 2003 से शुरू हुआ। यह देश विदेश से औद्योगिक निवेश गुजरात में लाने की राज्य सरकार की विशेष पहल का प्रतीक बताया गया, जिसके नियंता के रूप में नरेंद्र मोदी जी का बेहद खर्चीला महिमामंडन हुआ, जो साल दर साल जारी है। याद किया जा सकता है कि यह वही समय था जब मोदी पर गुजरात को भयानक सांप्रदायिक दंगों का प्रायोजन करने के बेहद गंभीर आरोप देश दुनिया के मीडिया में अनवरत बजबजा रहे थे।
जब मोदी जी प्रधानमंत्री बने, उसके ठीक बाद के वाइब्रेंट गुजरात के बारे में तत्कालीन अमेरिकी विदेश मंत्री जान केरी ने कहा था, 'मुझे पता है कि गुजरात में अपने नेतृत्व के दौरान उन्होंने जो हासिल किया, उसकी प्रतिष्ठा के कारण भारत के लोगों ने उनके पक्ष में यह जनादेश (लोकसभा में बहुमत) दिया।' पर इसी अमेरिका और उसके साथ ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, यूरोपीय यूनियन के सदस्य समेत कई देश 2019 के वाइब्रेंट गुजरात से गायब हैं, जो वहाँ बीते वर्षों में हर बार मौजूद रहे थे।
ब्रिटिश प्रशासन ने नवंबर 2018 में ही कह दिया था, 'हमने विगत वर्ष इस आयोजन में अपने प्रतिनिधिमंडल को इसमें लाने, ले जाने आदि पर पचास हज़ार पौंड ख़र्च किए, जिसका हमें कोई प्रतिफल नहीं मिला। हम ब्रिटिश करदाताओं के पैसे सैर-सपाटों पर ख़र्च नहीं कर सकते।' ग़ौरतलब है कि ब्रिटेन गुजरात में प्रत्यक्ष विदेशी पूँजी यानी एफ़डीआई लाने वालों में अग्रणी देश रहा है। सत्य हिन्दी.कॉम ने उन कारकों की पड़ताल करते हुए पाया कि सिर्फ ब्रिटेन ही नहीं, दूसरे देसी उद्योगपति भी ऐसा ही सोचते हैं। 2003 के वाइब्रेंट गुज़रात के बाद 2018 के वाइब्रेंट गुजरात तक 14,165 प्रस्तावों को खुद सरकार ने 'ज़ीरो स्टार्ट' माना। इस पूरे दौरान कुल 51,738 शुरुआती सहमति पत्र यानी एम.ओ. यू. पर दस्तख़त हुए थे।
मशहूर एन. आर. आई. व्यवसायी प्रसून मुखर्जी शिपिंग, बंदरगाह, बिजली और विशेष निवेश में 80,000 करोड़ के एम. ओ. यू. कर गये थे, वापस नहीं लौटे। हिंदुस्तान कंस्ट्रक्शन कंपनी का 40,000 करोड़ का वाटर फ़्रंट सिटी प्रोजेक्ट का अता-पता नहीं है। सबीर भाटिया की 30,000 करोड़ निवेश की नैनो सिटी अदृश्य है ।
सरकार की सफ़ाई है कि परियोजना के लिए ज़रूरी ज़मीन के अधिग्रहण में देरी, परिचालन या वित्तीय व्यावहारिकता की कमी से ये प्रोजेक्ट नहीं आ सके। अपनी सफलता गिनाने के लिए सरकार एस्सार, रिलायंस, अडानी और टोरेंट ग्रुप का हवाला देती है, जिनके वादे (उसके अनुसार) 70 फ़ीसद तक पूरे हुए हैं। पर आलोचकों का कहना है कि रिलांयस ने पहले से चल रही जामनगर रिफ़ाइनरी में ही ज़्यादा निवेश किया और उसके बाद जियो टेली सर्विसेज में, जो देशव्यापी है।
चालू परियोजनाएँ
बिजली और बंदरगाह उद्योग में अडानी समूह की कई परियोजनाएँ पहले से चल रही हैं। इनमें हुए निवेश को बाइब्रेंट गुजरात में जोड़ दिया गया है। टोरेंट ने भी बिजली और अन्य चलती हुई इकाइयों में ही निवेश किए हैं। सौर ऊर्जा को बढ़ा चढ़ा-कर बताया गया है जो मुख्यत: मित्र कंपनियों को किसानों से हड़पी गई ज़मीन के बड़े-बड़े आबंटन तक सीमित है। आलोचक राज्य की सकल घरेलू उत्पाद के आँकड़े सामने रखते हैं, जिनमें 2011-12 से लगातार गिरावट दर्ज की जा रही है।
गुजरात प्रत्यक्ष विदेश निवेश में लगातार पिछड़ रहा है। महाराष्ट्र और दिल्ली इससे कहीं आगे निकल चुके हैं। उद्योग विभाग की वेबसाइट स्वीकारती है कि 1983 से अगस्त 2016 तक कुल साढ़े नौ लाख करोड़ का निवेश हुआ, जबकि 2003 के बाद करीब नब्बे लाख करोड़ के एम. ओ. यू. पर दस्तख़त हुए हैं।
श्वेतपत्र की माँग
कांग्रेस नेता शक्ति सिंह गोहिल इन आँकड़ों को सामने रखकर चुनौती देते हैं कि सरकार इस पर श्वेतपत्र लाए कि वाइब्रेंट गुजरात के आयोजनों और प्रचार-प्रसार पर अब तक कितना ख़र्च हुआ है और तमिलनाडु, आँध्र प्रदेश, महाराष्ट्र दिल्ली में कितना? और इससे कितना निवेश आया है? वे कहते हैं कि इससे सरकारी ख़र्च पर सिर्फ 'मोदी ब्रांड' का झूठा प्रचार प्रसार किया गया है। इस आयोजन के ऊपर दूसरी तरह जालसाज़ी के भी शर्मिन्दा करने वाले तथ्य सामने आते रहे हैं। परन्तु मीडिया मैनेजमेंट इतना कामयाब रहा कि कभी यह विवाद आकार न ले सके।
2017 के वाइब्रेंट गुजरात के बारे में 'मुंबई मिरर' और 'गुजरात समाचार' ने छापा, 'अहमदाबाद, गांधीनगर, पाटन और साबरकाँठा के सुदर्शन व्यक्तित्व के सरकारी अध्यापकों को गाँधीनगर के महात्मा मंदिर में सूट-बूट पहनकर उद्योगपति दिखने की ट्रेनिंग दी गई। जिससे वे पंडाल की करीब साढ़े सात सौ उद्योगपतियों की उपस्थिति सीमा को 'ओवरफ्लो' करता हुआ दिखा सकें।' स्थानीय कलेक्टरों पर 'योग्य अभ्यर्थियों' को चुनने और ट्रेनिंग दिलवाने की ज़िम्मेदारी थी। मोदी जी राजनीति के शोमैन हैं और इसने उन्हे सफलता दिलाई है। यह और बात है कि अवाम इस सबसे हमेशा असफल ही होती रही है और होती रहेगी।