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चुनाव के पहले राम मंदिर का मामला गरमाने की कोशिश में विहिप

चुनाव के पहले राम मंदिर का मामला गरमाने की कोशिश में विहिप

विश्व हिंदू परिषद ने राम मंदिर निर्माण के लिए 525 लोकसभा क्षेत्रों में रैली और 5,000 जगहों पर प्रार्थना सभाएँ करने का ऐलान किया है। इससे ध्रुवीकरण हो सकता है।

विश्व हिंदू परिषद ने चुनाव के ठीक पहले अयोध्या में राम मंदिर बनाने की माँग करते हुए पूरे देश में कार्यक्रमों की घोषणा की है। इसका कहना है कि सरकार पर दबाव बनाने के लिए ऐसा किया जा रहा है मगर इसका मक़सद स्पष्ट रूप से चुनाव से पहले धर्म के आधार पर वोटों का ध्रुवीकरण करके बीजेपी को लाभ पहुँचाना है।

5000 जगहों पर प्रार्थना सभाएँ

विश्व हिंदू परिषद की घोषणा के मुताबिक़ 25 नंवबर को अयोध्या, नागपुर और मंगलुरू में कार्यक्रम आयोजित किए जाएँगे। इसके बाद 9 दिसबंर तक 525 लोकसभा क्षेत्रों में भी इस तरह के आयोजन होंगे। इस मुद्दे पर बहुत ही बड़ी रैली दिल्ली में 9 दिसंबर को की जाएगी। इसके बाद 18 दिसंबर को देश के पाँच हज़ार जगहों पर राम मंदिर के लिए प्रार्थना सभाओं का आयोजन किया जाएगा।इन कार्यक्रमों के लिए में  मंगलुरू और नागपुर को बहुत सोच समझ कर चुना गया है। दक्षिणी राज्यों में बीजेपी या विहिप का कोई बड़ा जनाधार नहीं है। लेकिन वह इस मौक़े का फ़ायदा उठा कर यह संकेत देना चाहती है कि हिंदुत्व के मुद्दे पर उत्तर से दक्षिण तक सबका प्रतिनिधित्व करती है।यह भी पढ़ें - कांग्रेस ने खुलवाया ताला, कांग्रेस ही बनाएगी मंदिर - जोशी

नागपुर कनेक्शन

बीजेपी ने  केरल में जिस तरह सबरीमला के मुद्दे पर एक बड़ा आंदोलन खड़ा कर सत्ताधारी मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी को साँसत में डाल रखा है, उससे उसका उत्साह बढ़ा हुआ है। वह इसका लाभ भी उठाना चाहती है। नागपुर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का मुख्यालय होने का फ़ायदा भीड़ जुटाने में मिलेगा। लेकिन इसके साथ ही वहाँ मराठा आरक्षण और यलगार परिषद के नाम पर जिस तरह का अगड़ा-पिछड़ा भेद खड़ा हो गया है, बीजेपी तमाम हिेंदुओं को एकजुट करने का कार्ड खेल कर स्थिति सुधार सकती है। राजनीतिक कारणों से ही शिव सेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने कहा है कि वे भी उसी दिन अयोध्या जाएँगे।

 - Satya Hindi

अदालत पर दबाव की रणनीति

आरएसएस से जुड़ी इस संस्था ने इन कार्यक्रमों का आयोजन उस समय किया है जब मामला सुप्रीम कोर्ट में चल रहा है। अदालत ने मामले की नियमित सुनवाई के लिए जनवरी में तारीख़ तय करने का फ़ैसला किया है। लेकिन उसके बाद संघ और उससे जुड़े सगंठनों के तेवर तीखे हो गए और वे प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष तौर पर  अदालत पर ही सवाल उठाने लगे। विहिप एक तरह से अदालत पर दबाव बढ़ाने की नीति पर ही काम कर रही है।

कांग्रेस को चुनौती

बीजेपी के बिहार से राज्यसभा सांसद राकेश सिन्हा ने राम मंदिर के निर्माण पर संसद में निजी बिल पेश करने का ऐलान कर रखा है। उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी को चुनौती भी दे रखी है कि कांग्रेस पार्टी इस बिल का समर्थन करके दिखाए। बीजेपी के दूसरे नेता अलग-अलग समय कई बार कह चुके हैं कि राम मंदिर बनाने का रास्ता साफ़ करने के लिए सरकार को संसद में क़ानून बनाना चाहिए या अध्यादेश लाना चाहिए। तकनीकी तौर पर अयोध्या टाइटल सूट यानी भूमि विवाद का मामला है। इस पर क्या क़ानून बन सकता है, बीजेपी इस पर चुप है।

इलाहाबाद में राम की मूर्ति

चुनाव के पहले हिंदुत्व की भावना भड़काने और ध्रुवीकरण करने की नीति के तहत ही उत्तर प्रदेश सरकार ने इलाहाबाद में गंगा के तट पर राम और निषादराज की प्रतिमाएँ लगवाने का ऐलान किया है। उप-मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने कहा है कि श्रृंगवेरपुर धाम में ये मूर्तियाँ लगेंगी।

इलाहाबाद में राम के साथ ही निषादराज की मूर्ति लगवाने से सत्ताधारी दल को दो फ़ायदे होंगे। वह राम के नाम पर हिंदुओं को एकजुट करने की कोशिश तो कर ही रही है, निषादराज की प्रतिमा के पीछे वजह है पिछड़ों के बीच पार्टी की छवि को दुरुस्त करना।

बीजेपी गोरखपुर उपचुनाव मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के इलाक़ा होने के बावजूद हार गई। वहाँ समाजवादी पार्टी और बीएसपी ने हाथ मिला लिया था और पिछड़ों-दलितों का वोट एसपी को मिल गया था। इससे बीजेपी का परेशान होना स्वाभाविक है। निषादराज की मूर्ति के ज़रिए बीजेपी पिछड़ों तक पहुँचना चाहती है। चुनाव में राम मंदिर एक मुद्दा बनेगा, यह तो तय दिखता है। बीजेपी को उसका कितना सियासी फ़ायदा होगा, यानी वह इस मुद्दे पर कितनी सीटें जीट पाएगी, यह कहना फ़िलहाल जल्दबाज़ी होगा।

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