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सावरकर को लेकर कांग्रेस-बीजेपी में सियासी घमासान

सावरकर को लेकर कांग्रेस-बीजेपी में सियासी घमासान

राजस्थान में अभी तक सावरकर को देशभक्त बताकर पढ़ाया जा रहा था लेकिन अब कांग्रेस सरकार ने इसमें बदलाव किए हैं। इसे लेकर बीजेपी आग-बबूला हो गई है।

बीजेपी और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के राष्ट्रवाद और देशभक्ति के नारे को अशोक गहलोत सरकार ने वीर सावरकर पर वार कर झूठा साबित करने की कोशिश की है। अशोक गहलोत ने बीजेपी के हथियार से ही उस पर वार किया है। अब तक सावरकर को राजस्थान में छात्रों को वीर, देशभक्त और क्रांतिकारी बताकर पढ़ाया जा रहा था। लेकिन गहलोत सरकार अब पढ़ाएगी कि सावरकर न वीर थे, न देशभक्त और न ही भारत माता के सच्चे बेटे। सरकार यह भी पढ़ाएगी कि जेल की पीड़ा से घबराकर सावरकर ने अंग्रेजों से रिहाई की भीख माँगी थी और जेल से आज़ादी के बदले अंग्रेजों की ग़ुलामी स्वीकार की थी।

राजस्थान में तीन साल पहले वसुंधरा राजे की अगुवाई में बनी बीजेपी सरकार ने पाठ्यक्रम में बदलाव किए थे। दसवीं कक्षा की सामाजिक विज्ञान की पुस्तक में एक पाठ शामिल किया था - अंग्रेज सरकार का प्रतिकार और संघर्ष। इस पाठ में आज़ादी की जंग लड़ने वाले स्वंत्रतता सेनानियों की जीवनियाँ शामिल हैं। उनमें विनायक दामोदर सावरकर की जीवनी भी है।

वर्तमान की अशोक गहलोत सरकार की ओर से गठित पाठ्यक्रम समिति ने इस पाठ में सावरकर की जीवनी में नए अंश जोड़ कर बवाल खड़ा कर दिया है। सावरकर के बाक़ी योगदान को यथावत रखते हुए उनके जीवन की कुछ नई बातें जोड़ी गई हैं। इनमें तीन बड़ी बाते हैं, पहली, सावरकर ने अंडमान सेलुलर जेल में कष्टों से परेशान होकर रिहाई के लिए चार बार ब्रिटिश हुकुमत के सामने दया याचिका दाख़िल की थी।

पहली दया याचिका 30 अगस्त 1910 को पेश की, दूसरी दया याचिका 14 नवंबर 1911 को पेश की, जिसमें सावरकर ने ख़ुद को पुर्तगाल का पुत्र बताया और दया याचिका में कहा कि वह ब्रिटिश सरकार के कहे के अनुसार काम करने को तैयार हैं।

तीसरी दया याचिका सावरकर ने 1917 में पेश की और चौथी दया याचिका सावरकर ने 1 फरवरी 1918 को पेश की। महात्मा गाँधी, लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक और सरदार वल्लभ भाई पटेल ने सावरकर को बिना शर्त जेल से छोड़ने की माँग की। 1921 में सावरकर को सेलुलर जेल से रत्नागिरी जेल में शिफ़्ट किया गया। 02 मई 1921 को सावरकर को रिहा कर दिया लेकिन इस शर्त के साथ कि पाँच साल तक वह राजनीति में भाग नहीं लेंगे।

दूसरी बात यह कि सावरकर जेल से छूटने के बाद हिंदू महासभा के अध्यक्ष बने और भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने की मुहिम चलाई। दूसरे विश्व युद्ध में ब्रिटिश सरकार को सहयोग देने की घोषणा की और हिंदुओं की राजनीति का नारा बुलंद किया था। हिंदुओं को सैन्य प्रशिक्षण देकर युद्ध में सक्रिय रहने को कहा।

तीसरी बात यह कि सावरकर ने 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन का विरोध किया। यह भी पढ़ाया जाएगा कि 1948 में सावरकर पर महात्मा गाँधी की हत्या का षड्यंत्र रचने और गोडसे का साथ देने के आरोप में मुक़दमा चला, लेकिन वह मुक़दमे में बरी हो गए। स्कूली पाठ्यक्रम में सावरकर को लेकर शामिल  नए तथ्यों के जरिए गहलोत सरकार ने सावरकर के बहाने बीजेपी के राष्ट्रवाद को छद्म बताने की कोशिश की है।  

गहलोत सरकार ने यह भी बताने की कोशिश की है कि जिसे आरएसएस और बीजेपी हीरो और देश का नायक बताकर पेश कर रहे हैं, वह अंग्रेजों की यातनाएँ नहीं सह पाया और जेल से आज़ादी के लिए अंग्रेजों का साथ देने और ग़ुलामी को तैयार हो गया।

सावरकर की दूसरी दया याचिका में ख़ुद को पुर्तगाल का बेटा बताने की बात पाठ्यक्रम में शामिल कर संघ के भारत माता को लेकर प्यार को बेनक़ाब करने की भी कोशिश की गई है। गाँधीजी की हत्या के केस में सावरकर पर मुक़दमा चलने की बात शामिल कर बीजेपी और संघ के सामने मुश्किल स्थिति पैदा करने की कोशिश की है। 

मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने सावरकर को लेकर जोड़े गए नए तथ्यों के बारे में कहा कि वह तो बचपन से ही सुनते आ रहे हैं कि सावकर ने जेल से रिहाई के लिए दया याचिका दायर की थी।

जब गहलोत से पूछा गया कि क्या इस बदलाव के पीछे सियासत तो नहीं है तो गहलोत ने संभलते हुए जवाब दिया कि इतिहास को तोड़ने-मरोड़ने वाले कभी ख़ुद का इतिहास नहीं लिख सकते। लेकिन सवाल तो यह है कि क्या गहलोत सरकार भी राजस्थान में पूर्ववर्ती वसुंधरा राजे सरकार की तर्ज पर ही सियासत चमकाने के लिए पाठ्यक्रम को हथियार बना रही है। राजस्थान के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने बीजेपी पर पाठ्यक्रम के भगवाकरण का आरोप लगाया था, जिनमें महापुरुषों की जीवनी के पाठ में संघ और बीजेपी विचारधारा से जुड़े लोगों को महापुरुषों के रुप में शामिल करना बताया गया था। कांग्रेस ने कहा था कि हल्दीघाटी के युद्ध में अकबर के बजाय महाराणा प्रताप की जीत बताने वाला पाठ शामिल किया गया था। इसके अलावा पाठ में अकबर के बजाय महाराणा प्रताप को महान बताया गया था।  प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के योगदान को छोटा करके एक पाठ में बता दिया गया था।

लेकिन सत्ता बदलते ही गहलोत सरकार ने पाठ्यक्रम में बदलाव के लिए एक समिति बनाने की घोषणा कर दी। इस समिति को राजे सरकार के दौरान किए बदलावों की समीक्षा कर नए पाठ जोड़ने, हटाने या फिर आंशिक बदलाव करने की छूट दी गई थी।

अब समिति ने पहला बदलाव सावरकर की जीवनी के पाठ में संशोधन कर किया है। सवाल यह है कि क्या यह गहलोत सरकार की सिर्फ़ पाठ्यक्रम में सुधार की कोशिश है या फिर बीजेपी की तरह ही पाठ्यक्रम का इस्तेमाल कर सियासी विचारधारा को आगे बढ़ाने की।

राजस्थान के पूर्व शिक्षा मंत्री और बीजेपी नेता वासुदेव देवनानी तो सावरकर की जीवनी के पाठ में इस बदलाव से इतने आग बबूला हैं कि उन्होंने गहलोत सरकार पर हिंदू और राष्ट्रविरोधी होने का आरोप जड़ दिया। बीजेपी ने इसे लेकर आंदोलन की चेतावनी तक दे डाली है। लेकिन अशोक गहलोत सरकार के शिक्षामंत्री गोविंद सिंह डोटासरा ने कहा कि सावरकर को लेकर ये बदलाव साक्ष्य और संबधित दस्तावेज़ मिलने के बाद ही समिति ने किए हैं। उन्होंने कहा कि बीजेपी ने पाठ्यक्रम का भगवाकरण कर रखा था। लेकिन असल सवाल तो छात्रों का है जिन्हें अभी तक सावरकर को हीरो और देशभक्त बताकर पढ़ाया जा रहा था लेकिन अब इस बदलाव के बाद छात्र क्या सावकर की पहले पढ़ाई गई छवि को याद रखें या अब दिखाई जा रही छवि को।

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