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संघ के दबाव में वसुंधरा से मिले मोदी? क्या बड़ी ज़िम्मेदारी मिलेगी

संघ के दबाव में वसुंधरा से मिले मोदी? क्या बड़ी ज़िम्मेदारी मिलेगी

राजस्थान का विधानसभा चुनाव चार साल दूर है। ऐसे में अभी से मोदी को वसुंधरा क्यों याद आ गयीं? क्या वसुंधरा को कोई बड़ी ज़िम्मेदारी मिलने वाली है?

क्रोनोलॉजी समझिये। मोदी राजस्थान आते हैं। वसुंधरा राजे की तारीफ़ करते हैं और दिल्ली आने का न्यौता देते हैं। वसुंधरा दिल्ली में गुलदस्ता लेकर मोदी से मिलती हैं और पिक एक्स पर शेयर करती हैं।

अब यहां तीन बातें एक साल में पहली बार हो रही हैं। एक, मोदी का वसुंधरा की तारीफ़ करना। दो, वसुंधरा को बात करने के लिए बुलाना। तीन, वसुंधरा का इतनी आत्मीयता से मोदी से मिलना और मोदी की खुलकर तारीफ़ करना।

अब इसके सियासी मायने क्या हैं। आखिर जो मोदी वसुंधरा की तरफ़ देखते तक नहीं थे वह क्यों मिलने का समय देने लगे? अभी लोकसभा चुनाव साढ़े चार साल दूर है, राजस्थान का विधानसभा चुनाव चार साल दूर है। ऐसे में अभी से मोदी को वसुंधरा क्यों याद आ गयी? जो वसुंधरा पिछले एक साल में कम से कम चार बार इशारों ही इशारों में मोदी कैम्प को निशाने पर ले चुकी हैं वह क्यों अचानक दिल्ली दौड़ी दौड़ी चली गयी?

कुछ पक रहा है। क्या पक रहा है? चार तरह की बातें की जा रही हैं।

एक, वसुंधरा को बीजेपी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया जा सकता है।

दो, वसुंधरा को केन्द्र सरकार में बड़ी जिम्मेदारी दी जा सकती है।

तीन, वसुंधरा को मुख्यमंत्री बनाया जा सकता है।

चार, वसुंधरा के चार-पांच समर्थकों को भजनलाल सरकार के एक दो महीने बाद होने वाले संभावित मंत्रिमंडल में जगह दी जा सकती है।

पांच, कुछ कह रहे हैं कि वसुंधरा राज्यपाल बनने के लिए तैयार हो गयी हैं। बदले में उनके बेटे दुष्यंत सिंह को मोदी मंत्रिमंडल में जगह मिल सकती है।

सच्चाई क्या है। तीन लोग ही जानते हैं। एक मोदी, दो वसुंधरा और तीन मोहन भागवत। तीसरा नाम आपको चौंका रहा होगा लेकिन बड़ी सच्चाई इसी नाम में छुपी है। बताएंगे आगे। पहले पांच तरह की चर्चा की चर्चा करते हैं। 

वसुंधरा राज्यपाल किसी भी क़ीमत पर नहीं बनेंगी। ऐसा प्रस्ताव तो पांच साल पहले ही उनको दिया गया था जिसे ठुकरा दिया था। वसुंधरा कई बार संकेत दे चुकी हैं कि वह राजस्थान में ही रह कर सक्रिय राजनीति करना चाहती है। एक बार उन्होंने कहा था कि राजनीति का नाम ही उतार-चढ़ाव है। राजनीति में तो ऐसा होता रहता है।

वसुंधरा के समर्थकों को ज़रुर भजन लाल के मंत्रिमंडल में जगह मिल सकती है। लेकिन इससे वसुंधरा की नाराजगी दूर होने वाली नहीं है। बेटे का मंत्री बनना भी संभव नजर नहीं आता है। इस पर कोई सौदेबाजी भी नहीं हो रही है। तो अब दो ही पद बचते हैं। एक बीजेपी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनना और दूसरा राजस्थान का मुख्यमंत्री।

एक बहुत बड़ा खुलासा 

आपको भी जानकर हैरानी हो रही होगी कि आखिर मोदी ने वसुंधरा को बात करने क्यों बुलाया? पता चला है कि संघ ने इसके लिए मोदी पर दबाव डाला। संघ का कहना था कि वसुंधरा जैसे अनुभवी नेताओं को किनारे नहीं किया जा सकता है। मोदीजी जो स्थानीय क्षत्रपों को हाशिए पर डालना चाहते हैं वह पार्टी के लिए ठीक नहीं है। ऐसे में सूत्रों के अनुसार संघ ने मोदी से कहा कि उन्हें वसुंधरा को बुलाकर उनके गिले शिकवे सुनने चाहिए और उन्हें उचित सम्मान देना चाहिए। 

एक सूत्र ने बताया कि संघ चाहता है कि वसुंधरा सक्रिय राजनीति में बनी रहें और उन्हें कोई बड़ी जिम्मेदारी दी जाए। सूत्र ने कहा कि वसुंधरा को जल्द ही एडजस्ट किया जाएगा।

तो क्या राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया जाएगा? 

अगर ऐसा होता है तो बीजेपी को पहली महिला अध्यक्ष मिलेगी। बीजेपी में सुषमा स्वराज के बाद महिला नेताओं का लगभग अकाल है। वसुंधरा इस कमी को पूरी कर सकती हैं। महिला वोटरों में वसुंधरा की अच्छी पैठ है और यह दौर महिला वोटरों के नाम रहा है। चूंकि वसुंधरा और मोदी की पटती नहीं है लिहाजा वह हर बात में हां में हां मिलाने से रही और ऐसा ही कोई अध्यक्ष संघ भी चाहता है। प्रियंका गांधी के सियासी चढ़ाव का तोड़ भी वसुंधरा में देखा जा सकता है।

मोदी कैम्प के हिसाब से भी देखा जाए तो वसुंधरा राजे संजय जोशी से तो ज्यादा ठीक ही रहेंगी। तो क्या मोदी संघ के दबाव में वसुंधरा से इसलिए मिले कि पुरानी बातें भुलाई जा सकें और नये रिश्ते के लिए तैयार हुआ जा सके। हो सकता है। बिल्कुल हो सकता है। 

वसुंधरा के चार बयान 

पिछले एक साल में वसुंधरा के चार बयान चर्चा में रहे हैं। एक, कोई नेता पद के मद में रहता है तो उसका सिसासी कद कम होना शुरू हो जाता है। यह बयान लोकसभा चुनावों के नतीजों के बाद दिया गया था। उस समय मोहन भागवत ने भी कहा था कि कुछ लोग खुद को सुपरमैन मानने लगते हैं।

दो, पहले कहा जाता था कि जियो और जीने दो। अब कहा जाता है कि हम तो जिए लेकिन दूसरों को संताप दें, दुख दें। तीन, जिन लोगों को अंगुली पकड़ कर चलना सिखाया वही लोग अंगुली काटने में लगे हैं। चार, राजनीति का नाम ही उतार चढ़ाव है।

तो वसुंधरा उतार पर है लेकिन चढ़ाव क्या नये साल में आने वाला है।

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