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बीजेपी आलाकमान का सिरदर्द बढ़ाएंगी वसुंधरा और उमा भारती?

बीजेपी आलाकमान का सिरदर्द बढ़ाएंगी वसुंधरा और उमा भारती?

पांच राज्यों के चुनावी समर में कूदने जा रही बीजेपी एक ओर किसान आंदोलन से परेशान है तो दूसरी ओर उसके भीतर भी थोड़ा-बहुत अशांति का माहौल है।

पांच राज्यों के चुनावी समर में कूदने जा रही बीजेपी एक ओर किसान आंदोलन से परेशान है तो दूसरी ओर उसके भीतर भी थोड़ा-बहुत अशांति का माहौल है। यह अशांति का माहौल दो पूर्व महिला मुख्यमंत्रियों की वजह से बन रहा है। इनके नाम उमा भारती और वसुंधरा राजे हैं। दोनों ही दिग्गज राजनेता हैं और क्रमश: मध्य प्रदेश और राजस्थान की मुख्यमंत्री रही हैं। पहले बात वसुंधरा राजे की करते हैं। 

दमदार राजनेता वसुंधरा राजे 

राजस्थान में बीजेपी की अंदरुनी सियासत गर्म है क्योंकि वसुंधरा राजे के समर्थकों ने 2023 में होने वाले विधानसभा चुनाव में राजे को मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित करने को लेकर आलाकमान पर दबाव बनाया हुआ है। इन समर्थकों ने वसुंधरा राजे समर्थक मंच राजस्थान का गठन किया है और इसे लेकर राज्य बीजेपी के बड़े नेताओं ने आलाकमान से मुलाक़ात की है और एतराज जताया है।  

राजे समर्थकों का कहना है कि स्थानीय निकाय के चुनावों में राजस्थान में बीजेपी को 90 नगर पालिकाओं में से सिर्फ 37 पर ही जीत मिली है जबकि कांग्रेस लगभग 50 सीटें जीती है। ऐसे में राजे के हाथ में कमान देनी बहुत ज़रूरी है।

राजे समर्थकों ने एलान किया है कि वे 8 मार्च से प्रदेश भर में देव दर्शन यात्रा निकालेंगे। राजे के कुछ समर्थक इस दिन गोवर्धन यात्रा भी निकालने जा रहे हैं। इस दिन राजे का जन्मदिन होता है। पूर्व मुख्यमंत्री के समर्थकों की पूरी कोशिश आलाकमान पर दबाव बनाने की है। 

पूनिया से हैं नाराज़!

वसुंधरा राजस्थान बीजेपी में उनके विरोधियों को अहम पद दिए जाने से नाराज़ हैं। वह सतीश पूनिया को अध्यक्ष बनाए जाने से ख़ुश नहीं थीं। इसके अलावा जयपुर के राजघराने की पूर्व राजकुमारी दिया कुमारी और विधायक मदन दिलावर को प्रदेश महामंत्री बनाए जाने से भी वह नाराज़ बताई जाती हैं। 

वसुंधरा राजे राजस्थान बीजेपी में हैवीवेट नेता हैं। एक ओर राजे हैं और दूसरी ओर प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया, केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत और उप नेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़, कहा जाता है कि ये सब मिलकर भी राजे के सामने नहीं टिक पाते।

राजस्थान से आने वाले अन्य केंद्रीय मंत्री अर्जुन मेघवाल और कैलाश चौधरी, नेता प्रतिपक्ष गुलाब चंद कटारिया भी राजे के सामने ठहरते नहीं दिखाई देते।  

बीते साल कांग्रेस में जब सचिन पायलट व अशोक गहलोत खेमे के बीच तलवारें खिंची थीं तो राजे चुप रही थीं, तब राज्य बीजेपी के नेताओं ने आलाकमान को बताया था कि राजस्थान की सियासत में अशोक गहलोत और वसुंधरा राजे एक-दूसरे के मददगार हैं। 

14 फरवरी को कोटा में राजे समर्थक विधायकों और कार्यकर्ताओं की बैठक हुई और फ़ैसला लिया गया कि राजे को मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित करवाने को लेकर केंद्रीय नेतृत्व पर दबाव बनाया जाएगा। उनका कहना है कि सिर्फ महारानी ही प्रदेश में बीजेपी को फिर से खड़ा कर सकती हैं। 

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उमा भारती का क्या संदेश?

अब बात करते हैं उमा भारती की। राम मंदिर आंदोलन से निकलकर बीजेपी में अपनी जगह बनाने वालीं उमा भारती ने एलान किया है कि वे शराब बंदी की मांग को लेकर 8 मार्च से पूरे मध्य प्रदेश में यात्रा निकालेंगी। उमा ने बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से अपील की है कि जहां भी बीजेपी की सरकारें हैं उन राज्यों में पूर्ण शराबबंदी की तैयारी करिए। 

ऐसा लगता है कि उमा इस यात्रा के जरिये पूरे प्रदेश में अपने समर्थकों को फिर से एकजुट करना चाहती हैं और इससे वह हाईकमान तक भी संदेश पहुंचाना चाहती हैं कि उनमें राजनीतिक दम-खम बाक़ी है।

शिवराज पर बढ़ेगा दबाव

राजनीतिक जानकारों के मुताबिक़, शराबबंदी की मांग को लेकर उमा का पूरे प्रदेश के दौरे पर इस वक़्त निकलना शिवराज सरकार पर दबाव बनाने की कोशिश है क्योंकि बीते कुछ महीनों के भीतर मध्य प्रदेश में शराब के कारण दो जगहों पर 40 लोगों की मौत हो चुकी है। इस वजह से शिवराज सिंह चौहान पहले से ही दबाव में और विपक्ष के निशाने पर हैं। 

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बीजेपी को सत्ता में लाईं

यहां याद रखना होगा कि ये उमा भारती ही थीं, जिन्होंने 2003 में दिग्विजय सिंह की 10 साल पुरानी सरकार को उखाड़कर बीजेपी को सत्ता दिलाई थी लेकिन 8 महीने बाद ही उनके नाम एक वारंट जारी होने के बाद उन्हें इस्तीफ़ा देना पड़ा था। उसके बाद से उमा ने बहुत कोशिश की कि वे फिर से राज्य की मुख्यमंत्री बन सकें लेकिन बीजेपी का केंद्रीय नेतृत्व इसके लिए राजी नहीं हुआ। 

अपनी पार्टी भी बनाई 

उमा ने 2008 के विधानसभा चुनाव से पहले भारतीय जनशक्ति नाम से पार्टी भी लांच की लेकिन वह ख़ुद की सीट भी नहीं बचा सकीं। बीजेपी के आगे झुकते हुए उन्होंने पार्टी का विलय कर लिया। उसके बाद वह केंद्रीय मंत्री भी बनीं लेकिन शायद वह बनना मध्य प्रदेश की मुख्यमंत्री ही चाहती थीं लेकिन इस पद पर लौट नहीं सकीं। 

फरवरी, 2018 में सक्रिय राजनीति से तीन साल का संन्यास लेने का एलान करने वालीं उमा अब क्या करेंगी, इस पर सभी की नज़र है, क्योंकि यह अवधि ख़त्म हो रही है और उमा मध्य प्रदेश की यात्रा पर निकल रही हैं।

यूपी में भी है जनाधार 

उमा के सक्रिय होने से बीजेपी आलाकमान परेशान ज़रूर होगा क्योंकि उमा भारती की छवि हिंदू नेता की है और मध्य प्रदेश के साथ ही राम मंदिर आंदोलन के कारण उत्तर प्रदेश में भी उनका असर है। ऐसे में अगर उन्होंने शराबबंदी की मांग को लेकर बड़ा आंदोलन खड़ा कर दिया तो बीजेपी को इसका जवाब देना मुश्किल हो जाएगा। उमा ने चमोली में हुए हादसे को लेकर भी मोदी सरकार को निशाने पर लेते हुए कहा था कि उन्होंने मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में जल संसाधन मंत्री रहते हुए गंगा पर पावर प्रोजेक्ट्स बनाने का विरोध किया था।

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