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बनारस में गंगा पूजा व आरती पर टैक्स, संतों ने इसे मुग़लकालीन जजिया कर बताया 

बनारस में गंगा पूजा व आरती पर टैक्स, संतों ने इसे मुग़लकालीन जजिया कर बताया 

बनारस में गंगा तट पर पूजा और आरती के साथ ही किसी भी धार्मिक-सामाजिक आयोजन पर टैक्स लगा दिया गया है। इतना ही नहीं, बनारस में गंगाघाट पर छतरी ले बैठने वाले पुरोहितों-पंडों को भी अब सालाना पंजीकरण शुल्क देना होगा।

बनारस में गंगा तट पर पूजा और आरती के साथ ही किसी भी धार्मिक-सामाजिक आयोजन पर टैक्स लगा दिया गया है। इतना ही नहीं, बनारस में गंगाघाट पर छतरी लेकर बैठने वाले पुरोहितों-पंडों को भी अब सालाना पंजीकरण शुल्क देना होगा।

वाराणसी नगर निगम ने गंगा घाटों पर अतिक्रमण करने और गंदगी फैलाने वालों से भारी जुर्माना वसूलने का भी फ़ैसला किया है। गंगा किनारे चाय की दुकान लगाने वालों को भी जुर्माना देना पड़ेगा। गंगा के साथ ही वरुणा के घाट पर कपड़े धोने, साबुन लगाने और कूड़ा फेंकने पर भी जुर्माना लगा दिया है। बनारस में गंगा घाट पर कोई भी सांस्कृतिक आयोजन करने पर शुल्क देना होगा।

वाराणसी निगम प्रशासन के इस आदेश के बाद संतों में ज़बरदस्त आक्रोश है। संतों ने इसकी तुलना मुग़लकाल में लगाए गए जजिया कर से की है। उनका कहना है कि आज़ादी के बाद यह पहली बार हुआ है कि बनारस में गंगा किनारे पूजा-पाठ और धार्मिक अनुष्ठान करने पर टैक्स लगाया गया है। अखिल भारतीय संत समिति ने इस फ़ैसले को लेकर ज़िला प्रशासन पर हमला बोला है। समिति के स्वामी जितेंद्रानंद ने फ़ैसले की आलोचना करते हुए कहा कि इससे धार्मिक आयोजनों की स्वतंत्रता प्रभावित होगी। उन्होंने इस टैक्स की जजिया कर से तुलना की और तुरंत वापस लेने की माँग की।

पूजा, आरती, कर्मकांड सब पर लगाया टैक्स

नए नियमों के मुताबिक़ अब गंगा किनारे चौकी लगाकर बैठने वाले पुरोहितों व पंडों को रजिस्ट्रेशन कराना होगा। धार्मिक व सांस्कृतिक आयोजन के लिए दैनिक शुल्क तय कर दिया गया है। हालाँकि निगम अधिकारियों का कहना है कि पुरोहितों से बहुत मामूली शुल्क लिये जाएँगे। साथ ही गंगा घाटों पर होने वाले धार्मिक व सांस्कृतिक आयोजनों पर शुल्क का निर्धारण किया गया है।

नगर निगम ने घाट पर धार्मिक आयोजन सम्पन्न कराने वाले ब्राह्मणों, पुरोहितों और चौकी लगाने वालों के रजिस्ट्रेशन पर 100 रुपये प्रति वर्ष का शुल्क निर्धारित किया है तो वहीं दूसरी तरफ़ घाट पर किसी संस्था या व्यक्ति द्वारा कराये जाने वाले सांस्कृतिक आयोजन के लिए 4000 रुपये, धार्मिक कार्य के लिए 500 रुपये और सामाजिक कार्य आदि के लिए 200 रुपये प्रतिदिन शुल्क वसूलना तय किया है। 

निगम प्रशासन ने लगातार होने वाले कार्यक्रमों के लिए भी शुल्क निर्धारित करते हुए कहा है कि 15 दिन से 1 साल या अधिक समय तक होने वाले आयोजन चाहे वह सामाजिक या फिर सांस्कृतिक हो 5000 सालाना शुल्क के दायरे में आएँगे।

रखरखाव व गंगा संरक्षण के नाम पर लगा दिया टैक्स

वाराणसी नगर निगम नगर निगम ने नदी किनारे रखरखाव, संरक्षण एवं नियंत्रण के लिए उपविधि 2020 की घोषणा करते हुए बुधवार से शुल्क प्रभावी कर दिया है। नगर निगम गंगा और वरुणा किनारे कपड़े धोने, साबुन लगाकर नहाने पर 500 रुपये, कूड़ा कचरा फेंकने पर 2100 रुपये, घरों, व्यावसायिक प्रतिष्ठानों से नदी में जल निकासी पर पहली बार 5000 रुपये व दूसरी बार 20000 रुपये जुर्माना वसूलेगा। राजस्व प्रभारी अधिकारी के मुताबिक़ घाटों पर साफ़-सफ़ाई और उसके संरक्षण को और बेहतर करने के लिए शुल्क की व्यवस्था की गई है।

बनारस में गंगा घाट व वरुणा किनारे धार्मिक कार्यक्रमों व अनुष्ठानों पर की जाने वाली वसूली पर संत समाज में ग़ुस्सा फूटा तो आम नागरिकों ने भी रोष प्रकट किया। वाराणसी के आचार्य अजय ने कहा कि इससे पहले अंग्रेज़ों के काल में 1916 में इसी तरह का कर लगाया गया था तब भी पंडों-पुरोहितों ने गिरफ्तारी दी थी। बहरहाल पूजा, आरती पर लगाए गए इस टैक्स के विरोध को देखते हुए यूपी के धर्मार्थ कार्य एवं पर्यटन मंत्री व वाराणसी से ही विधायक नीलकंठ तिवारी ने कहा कि इसे वापस लिया जाएगा। इस संदर्भ में जल्दी ही आदेश जारी हो जाएँगे।

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