महाराष्ट्र: वंचित बहुजन अघाडी से कांग्रेस-एनसीपी को हुआ 25 सीटों का घाटा
महाराष्ट्र में वंचित बहुजन अघाडी के अलग चुनाव लड़ने का 25 सीटों पर सीधा नुक़सान कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन को हुआ है। ये सभी 25 सीटें बीजेपी-शिवसेना के खाते में चली गईं। प्रकाश आंबेडकर के नेतृत्व वाली वंचित बहुजन अघाडी यानी वीबीए ने 288 में से 235 सीटों पर चुनाव लड़ा जिसमें से 25 सीटों पर इसे उससे ज़्यादा वोट मिले जितना वोटों के अंतर से बीजेपी-शिवसेना ने कांग्रेस-एनसीपी के उम्मीदवारों को हराया। वीबीए किसी सीट पर चुनाव नहीं जीत पाई है। यदि वीबीए का गठबंधन बीजेपी-शिवसेना के साथ होता तो चुनाव नतीजों की तसवीर पूरी तरह अलग हो सकती थी। इसकी संभावना पहले भी जताई गई थी।
पहले ये कयास लगाए जा रहे थे कि कांग्रेस के साथ वीबीए का गठबंधन हो जाए तो चुनाव परिणामों पर इसका असर काफ़ी ज़्यादा हो सकता है। वीबीए की कांग्रेस के साथ गठबंधन की बात इसलिए उठी थी कि वैचारिक स्तर पर वीबीए बीजेपी और शिवसेना के काफ़ी अलग है। उसकी वैचारिकता कांग्रेस से मेल खाती है। प्रकाश आंबेडकर बाबा साहब आंबेडकर के पोते हैं और उनकी दलितों में अच्छी ख़ासी पैठ है।
हालाँकि कांग्रेस के साथ गठबंधन नहीं हो पाया और प्रकाश आंबेडकर ने अलग राह पर चलने की ठानी। लोकसभा चुनावों के दौरान ही अपनी सभाओं में भीड़ देख कर प्रकाश आंबेडकर ने कांग्रेस से गठबंधन नहीं करने का फ़ैसला कर लिया था। हालाँकि विधानसभा चुनाव से पहले भी ऐसे गठबंधन की उम्मीद बंधी थी।
अब जब महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के नतीजे आए हैं तो यह साफ़ दिख रहा है कि कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन नहीं होने का फ़ायदा बीजेपी और शिवसेना को हुआ। 'द क्विंट' के अनुसार, जिन 25 सीटों पर ऐसा असर दिखा उनमें से 20 सीटें बीजेपी ने और 5 सीटें एनसीपी ने जीतीं। बता दें कि बीजेपी और शिवसेना के गठबंधन ने 161 सीटें जीती हैं जबकि कांग्रेस-एनसीपी वाले गठबंधन ने 102 सीटें जीती हैं। ऐसे में यदि प्रकाश आंबेडकर की पार्टी वीबीए का गठबंधन कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन के साथ होता और वे 25 सीटें इन्हें मिलतीं तो बीजेपी वाले गठबंधन के पास सिर्फ़ 136 सीटें ही बचतीं। इसके साथ ही कांग्रेस-एनसीपी वाले गठबंधन के पास 127 सीटें हो जातीं।
ऐसी स्थिति में बीजेपी बहुमत के लिए ज़रूरी 145 के आँकड़े से दूर रह जाती। 136 सीटें होने की स्थिति में बीजेपी गठबंधन को 9 और विधायकों की ज़रूरत होती। तब बीजेपी इस तरह की निश्चितता के साथ सरकार बनाने का दावा पेश नहीं कर पाती।
हालाँकि बीजेपी-शिवसेना गठबंधन को पूरा बहुमत मिलने के बाद भी सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है। जिस तरह से शिवसेना ने शुरुआती संकेत दिए हैं उससे लगता है कि बीजेपी के लिए सरकार बनाने के लिए शिवसेना को मनाना आसान नहीं है। महाराष्ट्र में जिस तरह की राजनीतिक हलचल तेज़ हुई है उससे कयास लगाए जा रहे हैं कि शिवसेना आदित्य ठाकरे को मुख्यमंत्री बनाने के लिए ज़बरदस्त दबाव बना सकते हैं। शिवसेना के साथ सरकार बनाने की संभावना पर एनसीपी नेता शरद पवार ने जो प्रतिक्रिया दी है उससे लगता है कि सरकार बनाने के मामले में शरद पवार की भूमिका भी बड़ी हो सकती है।
बीजेपी की राह अभी भी आसान नहीं!
शुक्रवार को ही शिवसेना नेता और उद्धव ठाकरे के पुत्र आदित्य ठाकरे को 'भावी मुख्यमंत्री' वाली होर्डिंग लगाई गई हैं। जगह-जगह पर लगाए गए पोस्टरों में वर्ली से आदित्य ठाकरे के चुनाव जीतने पर बधाई दी गई है और साथ ही उन्हें भावी मुख्यमंत्री के संबोधन से भी संबोधित किया गया है। इस पर भी सियासत तेज़ हो गई है। माना जा रहा है कि शिवसेना इस बार ज़बरदस्त मोल भाव की तैयारी में है। शिवसेना के मुखपत्र 'सामना' में भी कुछ ऐसा ही विचार रखा गया है।
'सामना' में संपादकीय में शिवसेना ने एक तरह से परोक्ष तौर पर बीजेपी और देवेंद्र फडणवीस पर निशाना साधा है। सामना में लिखा गया है, 'अति उत्साह में मत आओ, सत्ता की धौंस दिखाओगे तो याद रखो।' इसमें यह भी लिखा गया है कि पार्टी बदलकर और टोपी बदलने वालों को जनता ने घर भेज दिया है।
ऐसे में सरकार कैसे बनेगी और कैसी बनेगी, इसको लेकर चर्चाओं का दौर जारी है। चुनावी नतीजे आने के दौरान ही उद्धव ठाकरे ने प्रेस के सामने भी कहा है कि काफ़ी समय है सरकार बनाने के लिए। साथ ही यह भी संकेत दे दिए कि अब ‘50-50’ फ़ॉर्मूला लागू होगा। ऐसे में सवाल उठता है कि महाराष्ट्र में अब आगे क्या होगा