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उत्तरकाशी सुरंग हादसाः जोरदार आवाज के बाद बचाव कार्य रोका गया

उत्तरकाशी सुरंग हादसाः जोरदार "आवाज" के बाद बचाव कार्य रोका गया

उत्तराखंड के उत्तरकाशी की सुरंग में फंसे लोगों का जीवन अभी भी दांव पर लगा हुआ है। शनिवार को एक तेज आवाज की वजह से भोर में चल रहे बचाव कार्य को रोक दिया गया। अधिकारियों ने शुक्रवार को उम्मीद जताई थी कि शुक्रवार को सारे लोगों को सुरंग से निकाल लिया जाएगा।

छह दिनों से चल रहे उत्तराखंड सुरंग बचाव अभियान में एक और रुकावट आ गई है। अधिकारियों ने कहा कि रात 2:45 बजे के बाद ड्रिलिंग ऑपरेशन रोक दिया गया है और विशेषज्ञों की एक बैठक बुलाई गई है। पिछले रविवार से 40 मजदूर 4.5 किलोमीटर लंबी सिल्कयारा सुरंग के अंदर फंसे हुए हैं। उत्तरकाशी के पास निर्माणाधीन ढांचे का एक हिस्सा भूस्खलन के बाद ढह गया था। इसके बाद यह हादसा हुआ।

एनएचआईडीसीएल ने कहा- "शुक्रवार-शनिवार रात करीब 2:45 बजे काम के दौरान अधिकारियों और सुरंग के अंदर काम कर रही टीम को बड़े पैमाने पर क्रैकिंग की आवाज सुनाई दी, जिससे सुरंग में और साथ ही काम कर रही टीम में दहशत फैल गई। आगे कोई और बात नहीं हो, इस वजह से सुरंग के अंदर पाइप डालने की गतिविधि रोक दी गई है।" अब यही पाइप सुरंग में फंसे हुए मजदूरों को निकालने की जीवनरेखा बन सकता है। 

सुरंग को साफ़ करना सबसे बड़ी चुनौती है और मलबा गिरने से बचाव कार्य बार-बार धीमा हो जाता है। बचावकर्मी फंसे हुए श्रमिकों को निकालने का रास्ता बनाने के लिए एक विशाल ड्रिल मशीन की मदद से 800 मिमी और 900 मिमी व्यास वाले पाइप को डाल रहे हैं, जिसे डालने के लिए 60 मीटर तक ड्रिल करने की जरूरत है।

थाईलैंड और नॉर्वे की खास बचाव टीमें, जिनमें 2018 में थाईलैंड की एक गुफा में फंसे बच्चों को सफलतापूर्वक बचाने वाली टीम भी शामिल है, चल रहे बचाव अभियान में सहायता के लिए बचाव दल में शामिल हो गई हैं।

एनडीआरएफ, एसडीआरएफ, बीआरओ और आईटीबीपी सहित कई एजेंसियों के 165 कर्मियों द्वारा चौबीसों घंटे बचाव कार्य चलाया जा रहा है। बचावकर्मी रेडियो का उपयोग करके फंसे हुए लोगों से संपर्क कर सकते हैं। फंसे हुए मजदूरों तक पाइप के जरिए खाना, पानी और ऑक्सीजन भी भेजा गया है।

उत्तरकाशी और यमुनोत्री, दो सबसे पवित्र हिंदू मंदिरों को जोड़ने के लिए सिल्क्यारा और डंडालगांव कस्बों के बीच 4.5 किलोमीटर लंबी सुरंग का निर्माण किया जा रहा है। विशेषज्ञों ने उत्तराखंड में बड़े पैमाने पर निर्माण के प्रभाव के बारे में पहले ही चेतावनी दी थी, जहां राज्य के बड़े हिस्से में भूस्खलन का खतरा है।

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