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उत्तरकाशी में सुरंग कैसे ढही, क्या सच सामने आएगा?

उत्तरकाशी में सुरंग कैसे ढही, क्या सच सामने आएगा?

पूरे देश को मालूम है कि पूरा हिमालय क्षेत्र भूकंप के नजरिए से काफी संवेदनशील है। उत्तरकाशी की घटना पहाड़ी क्षेत्र में बड़े पैमाने पर विकास के खतरों को उजागर करती है। क्या यह सच कभी सामने आएगा कि सिलक्यारा की सुरंग कैसे ढह गई। क्या योजनाकारों ने इस बारे में सोचा था।

उत्तराखंड की ढही हुई सुरंग के अंदर 17 दिनों से फंसे सभी 41 मजदूरों को बचा तो लिया गया और देश में खुशी का माहौल है। लेकिन क्या इस बात पर अब गौर होगा कि सुरंग ढहने की वजह क्या थी और बचाव कार्य में इतना समय क्यों लगा। हालांकि केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने इस प्रोजेक्ट का ऑडिट कराने की बात कही है। लेकिन इस ऑडिट में क्या-क्या कवर होगा, कोई नहीं जानता। क्योंकि सरकार ने अभी पूरी रूपरेखा स्पष्ट नहीं की है।

मंगलवार शाम को सभी 41 श्रमिकों को 17 दिनों बाद बाहर निकाला जा सका। जिसमें कई एजेंसियां, ड्रिलिंग मशीनें को झोंक दिया गया और अंत में देसी तकनीक से सफलता मिली। भारत में प्रतिबंधित रैट होल माइनर्स ने इस काम को कर दिखाया। कोयला खदान में इस तरह की खुदाई पर भारत में बैन है।

उत्तरकाशी से लगभग 30 किमी दूर स्थित, सिलक्यारा सुरंग केंद्र सरकार की चार धाम ऑल वेदर रोड परियोजना का एक अभिन्न हिस्सा है, जो नाजुक हिमालयी इलाके में लगभग 889 किलोमीटर तक फैलेगी। यानी चारों धाम को एक रोड से जोड़ा जा रहा है। यह रोड हर मौसम में चलती रहेगी। लेकिन कुदरत के आगे किसकी चलती है।

सुरंग बनाने की परियोजना पर काम हैदराबाद स्थित नवयुग इंजीनियरिंग कंपनी लिमिटेड कर रहा है, जिसने कथित तौर पर पहले भी ऐसी परियोजनाओं को संभाला है। हालांकि वाट्सऐप यूनिवर्सिटी में नवयुग कंपनी को लेकर तमाम अफवाहें फैलाई गईं हैं, यहां हम उन पर बात नहीं करेंगे। क्योंकि उनमें जरा भी सच्चाई नहीं है। नवयुग कंपनी भारत में तमाम बड़े प्रोजेक्ट के अलावा कतर में भी काम कर रही है।

12 नवंबर को सुरंग का एक हिस्सा मुख्य एंट्री प्वाइंट से लगभग 200 मीटर की दूरी पर ढह गया, जिससे अंदर काम कर रहे मजदूर फंस गए। 41 श्रमिक तो बचा लिए गए लेकिन अब ध्यान इस बात पर केंद्रित हो रहा है कि आखिर सुरंग के ढहने का कारण क्या था। यह घटना पहाड़ी क्षेत्र में बड़े पैमाने पर विकास के खतरों को भी उजागर करती है जो भूकंपीय और भूस्खलन की संभावना वाला क्षेत्र है।

बड़ी परियोजनाओं को पर्यावरण के नजरिए से तैयार किया जाता है। उन्हें पर्यावरण के हिसाब से सेफ्टी ऑडिट से गुजरना होता है। लेकिन सिलक्यारा सुरंग को इससे छूट मिली थी। इसे 100 किमी के छोटे खंडों में बांटा किया गया है। इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने 2019 में एक विशेषज्ञ पैनल से जोखिम कम करने के विकल्प सुझाने को कहा था। सवाल ये है कि कितना भी छोटा प्रोजेक्ट हो, क्या आप पर्यावरण को नजरन्दाज करने का जोखिम ले सकते हैं।

अब कहा जा रहा है कि इस संबंध में बनी समिति ने कई समस्याओं की पहचान की थी। इसके सदस्यों ने चेतावनी दी थी कि मिट्टी की प्रकृति, जिसमें कुछ हद तक दबी-कुचली चट्टानें और चूना पत्थर शामिल हैं, उत्तराखंड में भूस्खलन और अचानक बाढ़ के मौजूदा खतरे को बढ़ा देंगी। लेकिन ये बातें अब क्यों हो रही हैं। जब कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में सारी बातें साफ कर दी थीं तो भी प्रोजेक्ट को आगे बढ़ाया गया।

सरकार अब कह रही है कि भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) पूरे भारत में वर्तमान में निर्माणाधीन 29 सुरंगों का ऑडिट करेगा।

केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने मंगलवार को कहा था- "यह पहली बार है जब ऐसी दुर्घटना हुई है। इस घटना से हमने बहुत कुछ सीखा है। हम सुरंग का सुरक्षा ऑडिट करने जा रहे हैं, और यह भी अध्ययन करेंगे कि हम कैसे बेहतर तकनीक का उपयोग कर सकते हैं। हिमालयी क्षेत्र बहुत नाजुक है और वहां काम करना बहुत कठिन है, लेकिन हमें समाधान ढूंढना होगा।''

केंद्रीय मंत्री के बयान से यह बात साफ है कि हिमालय क्षेत्र बहुत नाजुक है। वहां काम करना मुश्किल है। जब सरकार यह बात जानती थी तो प्रोजेक्ट पर काफी सोच विचार होना चाहिए था। गडकरी कह रहे हैं कि इसका समाधान तलाशना होगा, आखिर इसका समाधान क्या है। तमाम समाधानों की याद अब क्यों आई। हिमालय क्षेत्र के लिए हर योजना सोचसमझकर बनाई जानी चाहिए। यह कोई बहुत बड़ा रहस्य नहीं है जो किसी को मालूम न हो।

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