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देहरादून: विधायक दल की बैठक ख़त्म, जबरदस्त हलचल

देहरादून: विधायक दल की बैठक ख़त्म, जबरदस्त हलचल

उत्तराखंड में अचानक हुए राजनीतिक घटनाक्रम के बाद देहरादून स्थित बीजेपी मुख्यालय में बीजेपी विधायक दल की बैठक हुई। 

उत्तराखंड में अचानक हुए राजनीतिक घटनाक्रम के बाद देहरादून स्थित बीजेपी मुख्यालय में बीजेपी विधायक दल की बैठक हुई और इसमें केंद्रीय पर्यवेक्षक रमन सिंह और दुष्यंत गौतम, बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष बंशीधर भगत सहित तमाम बीजेपी विधायक और सांसदों ने भाग लिया। बैठक में विधायक दल के नेता का चुनाव होगा और उसे 11 मार्च को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिला दी जाएगी।    

मंगलवार को त्रिवेंद्र सिंह रावत ने राज्यपाल बेबी रानी मौर्य से मुलाक़ात की थी और उन्हें अपना इस्तीफ़ा सौंप दिया था। रावत चार साल तक राज्य के मुख्यमंत्री रहे। इस घटनाक्रम से पर्वतीय राज्य का सियासी पारा एक बार फिर चढ़ गया है। राज्य का नया मुख्यमंत्री कौन होगा, इसे लेकर राज्य की गलियों, बाज़ारों से लेकर सोशल मीडिया पर लोग अटकलें लगा रहे हैं। 

ये हैं चार दावेदार 

त्रिवेंद्र सिंह रावत के मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद चार नाम मीडिया के गलियारों में घूम रहे हैं। इनमें पहला नाम धन सिंह रावत दूसरा सतपाल महाराज, तीसरा अनिल बलूनी और चौथा अजय भट्ट का है। लेकिन उससे पहले जो ज़रूरी बात है, वह है जातीय और क्षेत्रीय समीकरणों की। 

बीजेपी को जातीय और क्षेत्रीय समीकरणों को ध्यान में रखते हुए ही अगले मुख्यमंत्री का चुनाव करना होगा। राज्य में दो मंडल हैं- कुमाऊं और गढ़वाल और दो प्रमुख जातियां हैं- ब्राह्मण और राजपूत। मुख्यमंत्री और प्रदेश अध्यक्ष पद को लेकर बीजेपी को इन जातियों और मंडलों के बीच संतुलन बनाना ही होगा, वरना अगले साल होने वाले चुनाव में उसे नुक़सान उठाना पड़ सकता है। 

 - Satya Hindi

बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष बंशीधर भगत ब्राह्मण जाति से हैं और कुमाऊं मंडल से आते हैं तो त्रिवेंद्र सिंह रावत राजपूत हैं और गढ़वाल मंडल से आते हैं। अब तक यह संतुलन ठीक काम कर रहा था। इन समीकरणों के लिहाज से त्रिवेंद्र सिंह रावत के  हटने के बाद उनकी जगह गढ़वाल मंडल के राजपूत जाति के किसी नेता को ही बैठाना होगा। इसमें दो नाम-धन सिंह रावत और सतपाल महाराज फिट बैठते हैं। इसके अलावा बीजेपी के राष्ट्रीय मीडिया प्रभारी अनिल बलूनी और नैनीताल-उधम सिंह नगर के सांसद अजय भट्ट भी दौड़ में हैं। 

इस्तीफ़े के बाद रावत ने कहा कि उन्होंने लंबे समय तक पार्टी और संघ के विभिन्न पदों पर काम किया। उन्होंने पार्टी आलाकमान को मुख्यमंत्री पद पर काम करने का मौक़ा देने के लिए धन्यवाद दिया। उन्होंने प्रदेश के लोगों का भी आभार जताया और उनकी सरकार द्वारा चलाई गई योजनाओं का जिक्र किया। रावत ने इस्तीफ़े को सामूहिक फ़ैसला बताया। पत्रकारों के इस सवाल पर कि उनके इस्तीफ़े के पीछे क्या कारण रहा, त्रिवेंद्र ने कहा कि यह जानने के लिए उन लोगों को दिल्ली जाना पड़ेगा। 

रावत को सोमवार को बीजेपी आलाकमान ने दिल्ली बुलाया था और यहां उनकी बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा, राष्ट्रीय मीडिया प्रभारी अनिल बलूनी से मुलाक़ात हुई थी। इससे पहले उत्तराखंड में नेतृत्व परिवर्तन के मुद्दे पर गृह मंत्री अमित शाह, पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा और महामंत्री (संगठन) बीएल संतोष की बैठक भी हुई थी। 

तिवारी ही पूरा कर सके कार्यकाल

इससे पहले बीजेपी ने 2011 में तत्कालीन मुख्यमंत्री और वर्तमान शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक को हटा दिया था और उनकी जगह मेजर जनरल रहे भुवन चंद्र खंडूड़ी को फिर से इस कुर्सी पर बैठाया था। 2012 से 2017 तक चली कांग्रेस की सरकार ने भी दो मुख्यमंत्री- विजय बहुगुणा और हरीश रावत देखे थे। सिर्फ़ नारायण दत्त तिवारी ही अकेले ऐसे मुख्यमंत्री थे जो अपना कार्यकाल पूरा कर सके थे। 

किसान आंदोलन से गर्म है उत्तराखंड

किसान आंदोलन से उत्तराखंड का मैदानी इलाक़ा पूरी तरह गर्म है। उत्तराखंड के उधम सिंह नगर जिले को मिनी पंजाब कहा जाता है। यहां सिखों, पंजाबियों की बड़ी आबादी है। इसलिए यहां किसान आंदोलन काफी मजबूत है और बीते कई महीनों से लोग धरने पर बैठे हैं। किसान नेता राकेश टिकैत ख़ुद इस जिले के रूद्रपुर में सभा को संबोधित कर चुके हैं। 

इसके अलावा हरिद्वार जिले में भी किसान आंदोलन गति पकड़ चुका है। उत्तर प्रदेश से टूटकर बने छोटे से राज्य उत्तराखंड में उधम सिंह नगर और हरिद्वार की सियासी हैसियत बहुत बड़ी है। कुल 70 सीटों वाले उत्तराखंड के इन दो जिलों में ही 20 सीटें हैं और किसान आंदोलन का असर इन सभी सीटों पर हो सकता है। हरिद्वार जिले में राष्ट्रीय लोकदल का भी थोड़ा-बहुत असर है। 

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