पूजा स्थल क़ानून फिर चर्चा में, क्या कहा था सुप्रीम कोर्ट ने?

10:06 pm Dec 02, 2021 | सत्य ब्यूरो

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के पहले मथुरा ईदगाह मसजिद का विवाद उठ खड़ा हुआ है। उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने यह कह इस विवाद को पुनर्जीवित कर दिया कि  'अयोध्या काशी भव्य मंदिर निर्माण जारी है, मथुरा की तैयारी है...।'

इसके साथ ही लोगों को बाबरी मसजिद-राम जन्मभूमि मंदिर गिराए जाने के बाद विश्व हिन्दू परिषद का वह नारा याद आया, 'अयोध्या तो झाँकी है, काशी-मथुरा बाकी है।'लेकिन इसके साथ ही यह भी याद रखा जाना चाहिए कि

पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991, में यह व्यवस्था है कि 15 अगस्त 1947 को जिस पूजा स्थल की जो स्थिति थी, उसे बरक़रार रखा जाएगा और अयोध्या के राम मंदिर- बाबरी मसजिद ढाँचा को छोड़ किसी पूजा स्थल में कोई परिवर्तन नहीं किया जाएगा।

क्यों बना क़ानून?

दरअसल बाबरी मसजिद- राम जन्मभूमि मंदिर विवाद के बीच तत्कालीन पी. वी. नरसिम्हा राव सरकार ने यह क़ानून पारित किया था कि यह सुनिश्चित किया जा सके कि इस मंदिर-मसजिद विवाद को छोड़ दूसरे किसी पूजा स्थल पर विवाद नहीं खड़ा हो।

इस अधिनियम की क़ानूनी स्थिति समझने के लिए नवंबर 2019 में सुप्रीम कोर्ट में दिए गए बाबरी मसजिद- राम जन्मभूमि मंदिर फैसले पर नज़र डालना ज़रूरी है। इस फ़ैसले में कहा गया था,

"15 अगस्त, 1947 को पूजा स्थलों के धार्मिक चरित्र को बरक़रार रखने और उसे बदलने से रोकने के लिए संसद ने यह तय किया था कि अतीत के अन्यायों के घाव को भरने के लिए यह ज़रूरी है कि यह सुनिश्चित किया जाए कि लोगों को यह आश्वस्त किया जाए कि उनके पूजा स्थलों को बरक़रार रखा जाएगा और उनके चरित्र को नहीं बदला जाएगा।"

क्या कहा था सुप्रीम कोर्ट ने?

सुप्रीम कोर्ट के इस फ़ैसले में यह भी कहा गया था कि यह क़ानून सभी नागरिकों, राष्ट्र के कामकाज के हर स्तर और सरकारों पर लागू होगा। यह अनुच्छेद 51 'ए' के तहत मौलिक कर्तव्यों को लागू करता है।

इसमें यह भी कहा गया है कि राज्य ने इसे लागू कर उस संवैधानिक कर्तव्य का पालन किया है जिसके तहत हर धर्म को बराबर का मानने और धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत को अक्षुण्ण रखा गया है जो संविधान की बुनियादी ढाँचे का हिस्सा है।

सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने इस फ़ैसले में यह भी कहा था, "1991 में पारित पूजा स्थल अधिनियम संविधान के मौलिक मूल्यों की रक्षा करता है। संविधान के प्रस्तावना में विचार, अभिव्यक्ति, आस्था और पूजा की स्वतंत्रता के अधिकार को रेखांकित किया गया है। यह मानवता की मर्यादा और बंधुत्व पर ज़ोर देता है और हर धर्म की समानता को बंधुत्व की बुनियाद मानता है।"

सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले में यह भी कहा गया था कि कानून का सहारा लेकर इतिहास में पीछे नहीं जाया जा सकता है और यह मुमकिन नहीं है कि इतिहास से असहमत हर आदमी पहले की घटनाओं को चुनौती दे।

इस फ़ैसले में यह भी कहा गया था कि अदालत इतिहास में हुए अच्छे और बुरे काम का संज्ञान नहीं ले सकता है।

जून 2020 की याचिका

लखनऊ स्थित विश्व भद्र पुजारी महासंघ ने जून 2020 में इस क़ानून को चुनौती देते हुए एक याचिका सुप्रीम कोर्ट में दायर की थी। उसके तुरन्त बाद जमीअत उलेमा ए हिन्द ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर कहा था कि उसे इसमें एक प्रतिवादी बनने की अनुमति दी जाए। इस संगठन का कहना था कि इससे मुसलमानों के मन यह आशंका पैदा होगी कि उनके मसजिदों को तोड़ा जाएगा।

जमीअत उलेमा- ए- हिन्द ने अयोध्या विवाद पर  सुप्रीम कोर्ट के 2019 के उस फ़ैसले का हवाला दिया था जिसमें इस क़ानून को मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए ज़रूरी बताया गया था और कहा गया था कि इससे धर्मनिरपेक्षता की रक्षा करने में मदद मिलेगी।

सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका

बीजेपी से जुड़े हुए वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय ने सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका यानी पीआईएल दायर की थी। उन्होंने याचिका  में कहा था कि यह अधिनियम न्यायिक पुनर्विचार की अवधारणा के ख़िलाफ़ है जिसकी गारंटी संविधान में की गई है।

याचिका के अनुसार, इस क़ानून की वजह से हिन्दू, जैन, सिख, बौद्ध के इस अधिकार का उल्लंघन होता कि वे यह माँग कर सकें कि बर्बर हमलावरों ने उनके पूजा स्थल को नष्ट कर दिया या उससे तोड़फोड़ की और उन पूजा स्थलों को फिर से स्थापित किया जाए।

मथुरा मसजिद पर याचिका

मथुरा के सिविल कोर्ट ने उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें यह माँग की गई थी कि मथुरा की शाही ईदगाह मसजिद को हटाया जाए क्योंकि जिस जगह वह बनी है, वह श्री कृष्ण जन्मभूमि है, यानी कृष्ण का जन्म उस जगह हुआ था।

याचिका में यह कहा गया था कि भगवान श्री कृष्ण विराजमान की ओर से यह याचिका दायर की जा रही थी। यह याचिका 6 कृष्ण भक्तों की ओर से वकील हरि शंकर जैन और विष्णु जैन ने दायर की।

लेकिन जिस तरह हिन्दू महासभा ने 6 दिसंबर को मथुरा की ईदगाह मसजिद  में बाल श्री कृष्ण की मूर्ति स्थापित करने का एलान किया है, उससे सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले पर नज़र डालना जरूरी है। सवाल यह है कि क्या बीजेपी और उससे जुड़ी संस्थाएं और उसके लोग सुप्रीम कोर्ट के उस फ़ैसले के इस हिस्से को मानेंगे?