उत्तर प्रदेश की सियासत में लगातार सुर्खियां बटोरने में सफल रहने वाले पूर्व कैबिनेट मंत्री ओम प्रकाश राजभर ने नया दांव चला है। राजभर का कहना है कि वह बीजेपी के साथ गठबंधन करने पर विचार कर सकते हैं, बशर्ते वह मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के लिए ओबीसी समाज के किसी नेता के नाम का एलान करे। इसके अलावा भी उनकी कुछ शर्तें हैं। लेकिन यह सबसे बड़ी शर्त है।
अक़सर बीजेपी के ख़िलाफ़ मोर्चा खोले रहने वाले ओम प्रकाश राजभर ने मंगलवार को जब उत्तर प्रदेश बीजेपी के अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह से मुलाक़ात की तो यह चर्चा उठी कि क्या राजभर फिर से बीजेपी के साथ जा सकते हैं। राजभर ने मुलाक़ात के बाद कहा था कि राजनीति में कुछ भी संभव है।
राजभर सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) के अध्यक्ष हैं और योगी सरकार में कैबिनेट मंत्री रह चुके हैं। लेकिन पिछड़ों के आरक्षण के बंटवारे को लेकर वह लगातार बीजेपी से भिड़ते रहे थे और 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले योगी सरकार से बाहर निकल गए थे।
ओबीसी समुदाय को तरजीह
केंद्र की मोदी सरकार ने हाल ही में मेडिकल पाठ्यक्रमों में ओबीसी समुदाय को 27 फ़ीसदी आरक्षण देने का एलान किया है। ओबीसी समुदाय इस मुद्दे पर बेहद मुखर था। केंद्रीय कैबिनेट के विस्तार में इस समुदाय के नेताओं को अच्छी-खासी जगह दी गई है। इससे साफ है कि पार्टी को इस बात का भान है कि देश में 55 फ़ीसदी आबादी वाले इस समुदाय को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता।
उत्तर प्रदेश पर है ध्यान
बीजेपी और संघ परिवार का पूरा ध्यान उत्तर प्रदेश पर है। बीते कुछ महीनों में जिस तरह प्रदेश में पार्टी के भीतर राजनीतिक गतिविधियां चरम पर रहीं और चर्चा यहां तक हुई कि योगी आदित्यनाथ को बदला जा सकता है, उससे साफ है कि पार्टी इस बात के लिए बहुत ज़्यादा आश्वस्त नहीं है कि उसे फिर से जीत मिल जाएगी।
विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी के अंदर जितनी उथल-पुथल दिख रही है, उससे एक बात साफ है कि पार्टी में नेतृत्व का संकट ज़रूर है। वरना पार्टी एलान क्यों नहीं करती कि वह योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में अगला चुनाव लड़ेगी।
बहरहाल, ओम प्रकाश राजभर का यह बयान क्या दिखाता है। क्या राजभर बीजेपी के किसी ओबीसी नेता के इशारे पर ऐसा बयान दे रहे हैं।
चूक गए थे केशव
यहां इस बात का जिक्र करना ज़रूरी होगा कि 2017 में मिली जीत के बाद तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्य का मुख्यमंत्री बनना तय माना जा रहा था लेकिन पार्टी ने योगी आदित्यनाथ के नाम पर मुहर लगाई थी। तब से इस बात की चर्चा कई बार होती है कि उत्तर प्रदेश बीजेपी के ओबीसी विधायक इस वर्ग से मुख्यमंत्री न चुने जाने से नाराज़ हैं।
मौर्य का हक़ छीना गया?
2017 में मुख्यमंत्री बनने के बाद योगी आदित्यनाथ ने ख़ुद को हिंदू नेता के तौर पर प्रोजेक्ट किया है, हालांकि उनकी सरकार पर एक जाति विशेष को बढ़ावा देने के आरोप लगते रहे हैं। लेकिन राजभर, जो कि बीजेपी के कटु आलोचक हैं, उनके इस बयान से सवाल उठता है कि क्या ओबीसी समुदाय के नेता योगी आदित्यनाथ का समर्थन नहीं करते। क्या इस समुदाय के नेता ऐसा मानते हैं कि बीजेपी ने केशव प्रसाद मौर्य को मुख्यमंत्री न बनाकर उनका हक़ छीना है।
हालांकि बीजेपी ने प्रदेश अध्यक्ष के पद पर स्वतंत्र देव सिंह का चयन कर ओबीसी समुदाय को अहमियत दी है लेकिन माना जाता है कि बीजेपी से जुड़े अधिकतर ओबीसी नेता केशव प्रसाद मौर्य को अपना नेता मानते हैं।
निश्चित रूप से बीजेपी हाईकमान के सामने राजभर ने बड़ी शर्त रख दी है। वह इसे मानता है या नहीं, यह आने वाले वक़्त में तय होगा। लेकिन शायद बीजेपी इस बात को जानती है कि राजभर अगर अपने गठबंधन के साथ चुनाव लड़े तो कई सीटों पर उसे नुक़सान पहुंचा सकते हैं, इसीलिए स्वतंत्र देव सिंह ने राजभर के साथ मुलाक़ात कर उनका मन टटोलने की कोशिश की है।