यूपी के स्थानीय निकाय चुनाव में ओबीसी आरक्षण के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट 4 जनवरी को सुनवाई करेगा। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पिछले हफ्ते यूपी सरकार को आदेश दिया था कि वो बिना ओबीसी आरक्षण लागू किए स्थानीय निकाय चुनाव कराए। यूपी सरकार ने इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में पिछले हफ्ते ही एक एसएलपी के जरिए चुनौती दे दी थी।
चीफ जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़ और जस्टिस पी.एस. नरसिम्हा की पीठ के सामने सोमवार को सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता यूपी सरकार की याचिका का उल्लेख किया। इस पर चीफ जस्टिस ने याचिका पर विचार करने पर सहमति जताई। चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, हम इसे परसों सुनेंगे।
यूपी इलाहाबाद हाईकोर्ट के 27 दिसंबर के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा है। जिसमें राज्य सरकार की 5 दिसंबर की निकाय चुनाव अधिसूचना को चुनौती दी गई थी। इसमें निकाय चुनावों में ओबीसी के लिए प्रस्तावित आरक्षण प्रदान करने के लिए अधिसूचना दी गई थी।
याचिकाओं में राज्य की 12 दिसंबर की उस अधिसूचना को भी चुनौती दी गई थी, जिसमें उत्तर प्रदेश पालिका केंद्रीकृत सेवा (लेखा संवर्ग) में कार्यकारी अधिकारियों और वरिष्ठतम अधिकारी के संयुक्त हस्ताक्षर के तहत नगर पालिकाओं के बैंक खातों के संचालन का प्रावधान है।
जस्टिस देवेंद्र कुमार उपाध्याय और जस्टिस सौरभ लवानिया की बेंच ने 5 दिसंबर और 12 दिसंबर की अधिसूचना को रद्द करते हुए फैसला सुनाया कि सरकार 2010 में सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ द्वारा निर्धारित तीन शर्तों को पूरा करने तक निकाय चुनाव के लिए ओबीसी आरक्षण को अधिसूचित नहीं कर सकती है।
हाईकोर्ट ने राज्य को ओबीसी कोटे के बिना शहरी स्थानीय निकायों के चुनावों को "तत्काल" अधिसूचित करने का भी आदेश दिया था। इसके अतिरिक्त, पीठ ने सरकार को शहरी स्थानीय निकायों के अगले चुनाव में ओबीसी कोटा प्राप्त करने में सक्षम होने के लिए प्रकृति और पिछड़ेपन पर एक अध्ययन करने के लिए एक आयोग स्थापित करने का निर्देश दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि हमने भारत के संविधान के अनुच्छेद 243-यू के प्रावधानों द्वारा निर्देशित चुनावों को तुरंत अधिसूचित करने का निर्देश जारी किया है, जो यह आदेश देता है कि नगरपालिका का गठन करने के लिए चुनाव इसकी अवधि समाप्त होने से पहले पूरा हो जाएगा। हम समझते हैं कि आयोग द्वारा सामग्रियों का संग्रह और मिलान एक बड़ा और समय लेने वाला काम है, हालांकि, (ए) चुनाव द्वारा निर्वाचित नगर निकायों के गठन को अनुच्छेद 243-यू में निहित संवैधानिक जनादेश के कारण संविधान को विलंबित नहीं किया जा सकता है। इस प्रकार समाज के शासन के लोकतांत्रिक चरित्र को मजबूत करने के लिए, यह आवश्यक है कि चुनाव जल्द से जल्द हों।