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'गरीबों' के आशियाने उजाड़ते योगी के बुलडोजर कब तक थमे रहेंगे?

'गरीबों' के आशियाने उजाड़ते योगी के बुलडोजर कब तक थमे रहेंगे?

लखनऊ में लोकसभा चुनावों के बाद बस्तियों पर बुलडोजर चलाने का काम रुक गया है तो क्या उपचुनावों के बाद सरकार फिर तमाम तरीकों से जमीन कब्जा अभियान में जुट तो नहीं जाएगी?

यूपी की राजधानी लखनऊ में योगी के ‘बुलडोजर’ राज के शिकार शहरी गरीबों और आम लोगों का जन आंदोलन आहिस्ता आहिस्ता बड़ी शक्ल ले रहा है। दरअसल लोकसभा चुनाव के ठीक पहले शहर के बीच बसे अकबरनगर मुहल्ले के लोगों को उजाड़ने की कार्रवाई शुरू हुई। लोकसभा चुनाव के बाद इसे अंजाम तक पहुंचा दिया गया। तर्क यह दिया गया कि ये लोग डूब क्षेत्र (फ्लड ज़ोन) के अंदर अवैध ढंग से बसे हुए हैं। इस नाम पर नदी से 500 मीटर दूर तक की बसावट को बुलडोजर लगाकर उजाड़ दिया गया। कुल 1169 घर और 101 व्यापारिक प्रतिष्ठान ढहाए गए। हजारों लोग जिन्होंने सालों साल की मेहनत से अपना आशियाना बनाया था वे अचानक सड़क पर आ गए। उन्हें वहां से दूर बसंत कुंज में ले जाकर बसाने की बात की गई।

दरअसल, यह मुहल्ला लखनऊ के फर्नीचर हब निशातगंज से सटा हुआ है और 1925 के पहले से बसा हुआ था। जाहिर है कई दशकों से लोग वहाँ रह रहे थे और तरह-तरह के स्वरोजगार के माध्यम से अपने परिवार का पेट पाल रहे थे, अपने बच्चों को पढ़ा-लिखा रहे थे छोटे बड़े स्कूलों में। वहां एक मदरसा भी था जिसमें लगभग तीन हजार गरीब परिवारों के बच्चे तालीम पा रहे थे। सरकार ने वहां से लोगों को उजाड़कर केवल उनके सर की छत ही नहीं छीनी है बल्कि उनकी रोजी रोटी, आजीविका भी छीन ली है। बच्चों की पढ़ाई लिखाई भी छीन ली है। वहां से दूर शहर के बाहर जिस बसंत कुंज में उन्हें बसाने की बात हो रही है, वहां न स्कूल हैं, न अस्पताल हैं, न शहर से कनेक्टिविटी है। पीएम आवास योजना के तहत बने महज 300 वर्ग फीट के कथित फ्लैट लोगों को लगभग पांच लाख कीमत के किश्तों में भुगतान पर दिए जा रहे हैं। कई पुश्तों से बसा अपना आशियाना उजड़ जाना, अपनी रोजी रोटी, बच्चों की शिक्षा से वंचित हो जाना लोगों के लिए कितना बड़ा मनोवैज्ञानिक ट्रॉमा होगा, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। बसंत कुंज में कुछ लोगों के आत्महत्या करने की दुःखद ख़बरें आ रही हैं। यह सब हुआ है लखनऊ के सुंदरीकरण की कुकरैल रिवर फ्रंट परियोजना के नाम पर, उसे ईको-टूरिज़्म हब बनाने के नाम पर।

यह पूरी प्रक्रिया चुनावों के ठीक पहले पिछले साल दिसंबर में शुरू हुई थी और इस साल मई में न्यायालय का सैंक्शन मिलने के साथ ध्वस्तीकरण सम्पन्न हो गया। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि यह डिमोलिशन इलाहाबाद उच्च न्यायालय तथा उच्चतम न्यायालय से सैंक्शन मिलने के बाद हुआ है।

सरकार का यह कहना था कि ये निर्माण कुकरैल नदी के डूब क्षेत्र में अवैध अतिक्रमण करके किए गए थे। मुख्यमंत्री योगी ने तो यहाँ तक कह दिया कि ये लोग भू माफिया हैं! बहरहाल, अगर यह सच है तो सरकार को यह बताना चाहिए कि ये लोग दशकों से वैध नागरिक अधिकारों और सरकारी सुविधाओं के साथ कैसे रह रहे थे। यहां बिजली, पानी, सड़क आदि की व्यवस्था कैसे हुई थी? यहाँ स्कूल मदरसे, क्लीनिक, मंदिर मस्जिद कैसे खड़े थे? ये लोग बाकायदा हाउस टैक्स, बिजली, पानी का बिल जमा करते थे। उससे बड़ी बात यह कि जनांदोलन के दबाव में पीछे हटते हुए पंद्रह जुलाई के अपने आदेश में मुख्यमंत्री योगी ने यह कह दिया कि उसने 35 मीटर रिवर बेड में ही कुकरैल रिवर फ्रंट के निर्माण करने का निर्णय लिया है और यहां तक कह दिया कि 50 मीटर फ्लड प्लेन जोन की न तो आवश्यकता है, न इसका कोई प्रस्ताव है, फिर अकबर नगर में 500 मीटर तक बसे लोगों को डूब क्षेत्र में होने के नाम पर क्यों उजाड़ा गया?

ध्वस्तीकरण के खिलाफ जनता के आंदोलन का नेतृत्व कर रही ‘लखनऊ बचाओ संघर्ष समिति’ के बयान में कहा गया है, "सौमित्र शक्ति वन के उद्घाटन में कुकरैल रिवर फ्रंट के बारे में मुख्यमंत्री बड़ी बड़ी बातें कर रहे थे और उसके नाम पर अकबरनगर को तहस नहस कर दिया गया। बहरहाल, जिस सुंदरीकरण के नाम पर यह सब किया गया, उसकी सच्चाई यह है कि 2020 में इस प्रोजेक्ट के प्रस्ताव के 4 साल बाद भी उस कुकरैल नाले में गिरने वाले गंदे अपशिष्ट आज भी बदस्तूर गिर रहे हैं। कुकरैल नाला आज भी गंदगी से बजबजा रहा है।"

मुख्यमंत्री द्वारा अकबर नगर के उजाड़े गए लोगों के विधिवत पुनर्वास के दावे को खारिज करते हुए समिति ने कहा है, "यह पूरी तरह असत्य है। सच यह है कि उन्हें उनकी ज़मीन, मकान का कोई मुआवजा नहीं दिया गया। बसंत कुंज योजना में उन्हें जो एक कमरे का आवास आवंटित किया गया है, उसका भी चार लाख अस्सी हजार उनसे प्रतिमाह 3300/- की किश्त के जरिए पंद्रह साल में वसूल किया जाएगा।"

दरअसल, यह पूरा प्रकरण भाजपा सरकार की एक वृहत्तर परियोजना का हिस्सा है। योगी सरकार ने इसी मार्च में एक अध्यादेश जारी किया है। इसके माध्यम से 1895 के आदेश के अनुसार लोगों को जो पट्टे मिले थे, उनको सरकार ने शून्य घोषित कर दिया है। इसके अतिरिक्त आज़ादी के बाद 1950 के आदेश से नजूल जमीन पर जहां जहां लोग बसे थे, उस पर एक सुनवाई का अवसर देकर पट्टों को खारिज करने का अधिकार अब सरकार के पास है। आने वाले दिनों में ये प्रावधान शहर से लेकर गांव तक लागू किए जाएंगे और इसके माध्यम से एक विराट लैंड पूल तैयार किया जाएगा जो अंततः कॉर्पोरेट को सौंप दिया जाएगा। दरअसल, यह जमीन के कॉर्पोरेटीकरण की भाजपा की दीर्घकालीन रणनीति का हिस्सा है। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार 1500 करोड़ रुपए के कुकरैल रिवर फ्रंट, प्राणि उद्यान, नाइट सफारी के लिए साबरमती रीवर फ्रंट बनाने वाली गुजरात की कंपनियों को टेंडर दिया जा रहा है। दरअसल, यह सब मोदी सरकार की राष्ट्रीय परियोजना का हिस्सा है। धारावी, मुंबई के पुनर्विकास का ठेका अडानी को मिल गया है। इस तरह एशिया के सबसे बड़े झुग्गी झोपड़ी इलाके का विराट लैंड पूल अब अडानी के कब्जे में आ जायेगा।

आज सरकारें तमाम जमीनों पर कब्जा करके चहेते कॉर्पोरेट घरानों को सौंप रही हैं। तीन कृषि क़ानूनों पर शिकस्त के बाद अब बैक डोर से कृषि के कॉर्पोरेटीकरण के रास्ते पर सरकार बढ़ रही है।

यह स्वागत योग्य है कि लखनऊ के नागरिक समाज तथा विपक्षी दलों ने पीड़ित जनता के साथ मिलकर फिलहाल अकबर नगर से आगे दूसरी कालोनियों पंत नगर,  इंद्रप्रस्थ नगर, अबरार नगर की ओर बढ़ते योगी के बुलडोजर को रोक दिया है। भाजपा के लोग पूरे मामले को कम्यूनल एंगल देने से बाज नहीं आ रहे हैं ताकि ध्वस्तीकरण और विस्थापन के खिलाफ लड़ती जनता को धार्मिक आधार पर बाँटा जा सके और इसके माध्यम से साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण किया जा सके।

फिलहाल, जन आंदोलन की जीत जरूर हुई है, चौतरफा राजनीतिक संकट में घिरे योगी के बुलडोजर जन दबाव में थम गए हैं। लेकिन क्योंकि यह सब मोदी-भाजपा-योगी की नीतिगत योजना का हिस्सा है, इसलिए उपचुनावों के बाद अगर सरकार फिर तमाम तरीकों से जमीन कब्जा अभियान में जुटे तो आश्चर्य नहीं होगा। 

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