आपसी विवाद में हुई दरवेश यादव की हत्या, एफ़आईआर दर्ज

07:18 pm Jun 13, 2019 | सत्य ब्यूरो - सत्य हिन्दी

उत्तर प्रदेश बार कौंसिल की अध्यक्ष दरवेश यादव की हत्या में तीन लोगों के ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज की गई है। दरवेश यादव के भतीजे सनी यादव ने यह एफ़आईआर दर्ज कराई है। एफ़आईआर में दरवेश को गोली मारने वाले मनीष शर्मा, उसकी पत्नी वंदना शर्मा को आरोपी बनाया गया है। तीसरा आरोपी विनीत गुलेचा को बनाया गया है। बताया गया है कि विनीत ही मनीष शर्मा को स्कूटर पर बैठाकर लेकर आया था। एफ़आईआर में सनी ने कहा है कि उसकी बुआ दरवेश की गाड़ी, गहनों और चैंबर पर मनीष शर्मा ने क़ब्जा कर रखा था और कई बार कहने के बाद भी वह गाड़ी और गहनों को वापस नहीं कर रहा था। सनी के मुताबिक़, इसी बात को लेकर दोनों के बीच विवाद चल रहा था।

सनी के मुताबिक़, मनीष की पत्नी वंदना कई दिनों से उनकी बुआ को जान से मारने की धमकियाँ दे रही थी और वह कहती थी कि वंदना उसके पति से पैसा और जेवरात न माँगे। परिवार के अन्य सदस्यों ने घटना की सीबीआई जाँच की माँग की है। पुलिस ने धारा 302, 120बी और 507 में मुक़दमा दर्ज किया है। 

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने घटना पर दुख व्यक्त करते हुए कहा है कि बार काउंसिल, बार एसोसिएशन और न्यायपालिका के साथ, उच्च न्यायालय और जिला अदालतों में पर्याप्त सुरक्षा प्रदान करने के लिए राज्य सरकार प्रतिबद्ध है। 

बता दें कि आगरा में बुधवार को कचहरी परिसर में ही दरवेश की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। यादव तीन दिन पहले ही बार कौंसिल की अध्यक्ष चुनी गई थीं। जिस तरह दरवेश की हत्या की गई और जिसने हत्या की, उससे बार कौंसिल के लोग हैरान और परेशान हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि जिसने उनकी हत्या की वह ख़ुद दरवेश का सहयोगी और अधिवक्ता मनीष शर्मा है और जिस समय हत्या की गई उस समय दरवेश अध्यक्ष बनने पर आयोजित किए गए स्वागत समारोह में वरिष्ठ अधिवक्ता अरविंद कुमार मिश्रा के चैम्बर में बैठी थीं। यह हत्याकांड इतने कम समय में हुआ कि लोगों को कुछ भी समझने का मौक़ा ही नहीं मिला।

स्वागत समारोह के दौरान जब सभी लोग आपस में बातचीत कर रहे थे तो अधिवक्ता मनीष शर्मा वहाँ पहुँचा। मनीष ने सबसे पहले वहाँ मौजूद दरवेश के रिश्तेदार मनोज यादव पर गोली चलाई लेकिन मनोज ने झुककर ख़ुद को बचा लिया। इसके बाद मनीष ने लगातार तीन गोलियाँ दरवेश को मारीं और पिस्तौल अपनी कनपटी से सटाकर ख़ुद को भी गोली मार ली। वहाँ मौजूद अधिवक्ता दरवेश को अस्पताल ले गए, जहाँ उन्हें मृत घोषित कर दिया गया।

बताया जाता है कि हत्या करने वाला मनीष कोमा में है और उसे आगरा से दिल्ली रेफ़र किया गया है। दरवेश के शव को पोस्‍टमार्टम के बाद परिजनों को सौंप दिया गया। परिजन शव को एटा ले गए, जहाँ गुरुवार को उनका अंतिम संस्‍कार कर दिया गया।

इस ख़ूनी खेल से तीन दिन पहले ही रविवार को प्रयागराज में आगरा की दरवेश यादव और वाराणसी के हरिशंकर सिंह संयुक्त रूप से यूपी बार कौंसिल के अध्यक्ष चुने गए थे। अध्यक्ष पद पर हरिशंकर सिंह व दरवेश यादव को 12-12 वोट मिले थे। पहले छह माह के लिए दरवेश और बाद में छह माह के लिए हरिशंकर सिंह को अध्यक्ष बनना था।

इस घटना के बाद दो सवाल मुख्य तौर पर खड़े होते हैं। पहला यह कि आख़िर दरवेश के पूर्व सहयोगी मनीष के मन में इतनी नफ़रत क्यों भरी हुई थी कि उसने उनकी ही जान ले ली। दूसरा यह कि उत्तर प्रदेश में क़ानून व्यवस्था का क्या इस क़दर बुरा हाल है कि कोई कचहरी परिसर में पिस्तौल लेकर घुस जाए और किसी का भी खू़न बहा दे। उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य में बार काउंसिल की अध्यक्ष की सरेआम हत्या हो सकती है तो आम इंसान की सुरक्षा का क्या हाल होगा, यह बताने की कोई ज़रूरत ही नहीं है। 

दरवेश की हत्या के बाद विपक्षी दलों के नेताओं ने राज्य की क़ानून व्यवस्था को लेकर सवाल उठाया है। बीएसपी प्रमुख और राज्य की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने इस घटना के बाद ट्वीट कर कहा कि दरवेश यादव की आगरा कोर्ट परिसर में हुई हत्या बेहद दुखद है। मायावती ने कहा कि शामली में पुलिस द्वारा पत्रकार की पिटाई जैसी घटनाएँ यह साबित करती हैं कि बीजेपी के शासन में अराजकता व जंगलराज और भी ज़्यादा बढ़ गया है।

समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने भी घटना पर दुख व्यक्त करते हुए ट्वीट किया है। अखिलेश ने कहा कि मुख्यमंत्री बैठक पर बैठक कर रहे हैं और अपराधी अपराध पर अपराध। आगरा में बार कौंसिल अध्यक्ष की हत्या क़ानून व्यवस्था पर बहुत बड़ा सवाल है।

ग़ौरतलब है कि पिछले कुछ महीनों में उत्तर प्रदेश में आपराधिक घटनाएँ बहुत बढ़ गई हैं। पिछले साल बुलंदशहर में गोकशी की अफ़वाह के बाद ज़बरदस्त बवाल हुआ था जिसमें इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह और एक स्थानीय युवक की मौत हो गई थी। हाल ही में अलीगढ़ में मासूम के साथ दुष्कर्म, शामली में पत्रकार की पिटाई और अन्य कई आपराधिक घटनाओं को लेकर लोगों में ख़ासा रोष है।

लेकिन योगी सरकार आख़िर इस बात का क्या जवाब देगी कि वह मुख्यमंत्री के ख़िलाफ़ एक ट्वीट करने पर तो पत्रकार को जेल भिजवा सकती है लेकिन बार कौंसिल की अध्यक्ष की सरेआम हत्या, बच्चियों से बलात्कार, चोरी, छिनैती और अन्य अपराधों पर क्यों नहीं रोक लगा पा रही है। ऐसे हालात में क्या योगी सरकार आम आदमी की सुरक्षा का कोई भरोसा दे सकती है? बेतहाशा बढ़ रहे अपराधों को देखकर ऐसा लगता है कि इसका जवाब ना में ही होगा।