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शराब के कारोबार में शीर्ष पर पहुंचा उत्तर प्रदेश, राजस्व वसूली में टूटे पिछले रिकॉर्ड 

शराब के कारोबार में शीर्ष पर पहुंचा उत्तर प्रदेश, राजस्व वसूली में टूटे पिछले रिकॉर्ड 

उत्तर प्रदेश शराब के कारोबार में देश के शीर्ष राज्यों में शुमार हो गया है। इसने शराब से राजस्व की वसूली में पिछले सारे रिकॉर्ड को तोड़ कर कमाई के मामले में उच्च राजस्व वाले राज्यों को पीछे छोड़ दिया है।

उत्तर प्रदेश शराब के कारोबार में देश के शीर्ष राज्यों में शुमार हो गया है। इसने शराब से राजस्व की वसूली में पिछले सारे रिकॉर्ड को तोड़ कर कमाई के मामले में उच्च राजस्व वाले राज्यों को पीछे छोड़ दिया है। 

समाचार वेबसाइट द प्रिंट ने उत्तर प्रदेश में शराब के बढ़ते कारोबार पर एक रिपोर्ट प्रकाशित की है। उसमें बताया गया है कि यूपी शराब की नई राजधानी है। इसका कारण बताया गया है कि कि रिकॉर्ड राजस्व मिल रहे हैं, होम बार और मॉडल शॉप अब काफी संख्या में खुल चुकी हैं। यहां द वीकेंड जैसे मॉडल स्टोर से लेकर कैंपाई और वाइनरी जैसे बीयर ब्रांड तक मिल रहे हैं। 

इस रिपोर्ट में बताया गया है कि अनेक तरह से उत्तर प्रदेश बदल रहा है। यह भारत की नई शराब राजधानी है, जहां देश में पोर्टेबल और गैर-पोर्टेबल शराब का सबसे अधिक विनिर्माण और बिक्री होती है। रिपोर्ट कहती है कि यूपी सरकार द्वारा उत्पाद शुल्क नीति में संशोधन ने बड़े खिलाड़ियों के एकाधिकार को खत्म कर दिया है और छोटे व्यवसायियों के लिए शराब क्षेत्र में प्रवेश करना संभव बना दिया है। 

इसमें कहा गया है कि उत्तर प्रदेश शराब हब के रूप में उभरा है। एनसीआर के नोएडा और गाजियाबाद शहरों में शराब मॉल, अहाता, माइक्रोब्रुअरीज के रूप में भव्य दुकानें दिखती हैं जो एक तरह से गुरुग्राम की नकल हैं। द वीकेंड मॉडल स्टोर्स से लेकर कैंपाई जैसे इन-हाउस बियर ब्रांड और हाल ही में लॉन्च की गई वाइनरी और उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में ब्रांड रेजिना तक मौजूद है।

राज्य ने वित्त वर्ष 2023 में 42,250 करोड़ रुपये का उत्पाद शुल्क राजस्व अर्जित किया। 2017-18 में यह 14,000 करोड़ रुपये था जिसमें करीब तीन गुना वृद्धि हो चुकी है। 

शराब से राजस्व के मामले में यूपी अब कर्नाटक को पीछे छोड़कर नंबर एक बन गया है। यह उपलब्धि इसलिए भी खास है क्योंकि कर्नाटक की तरह, यूपी में बेंगलुरु जैसा आईटी हब शहर नहीं है। बेंगलुरु में उच्च कमाई वाले युवा बड़ी संख्या में रहते हैं जो नियमित रुप से पार्टियों की मेजबानी करते हैं।  

द प्रिंट की यह रिपोर्ट कहती है कि कुछ समय पहले, यूपी में शराब की बिक्री बड़ी-बड़ी काली ग्रिलों और संदिग्ध गुणवत्ता वाली शराब की गंदी दुकानों का पर्याय बन गई थी। दिल्ली के लोगअक्सर यूपी में बनी शराब पीने के ख्याल से ही नाक-भौं सिकोड़ लेते थे। वहीं आज, नोएडा और गाजियाबाद में हाई-एंड फर्निशिंग वाली शानदार शराब की दुकानें हैं। ऐसे में कहा जा सकता है कि यूपी की शराब संस्कृति परिवर्तन के दौर से गुजर रही है। 

दिल्ली सरकार की 2022-23 की विवादास्पद उत्पाद शुल्क नीति में जहां शराब व्यापारियों को खुली बोली के माध्यम से लाइसेंस दिये गये थे। दिल्ली सरकार पर पक्षपात और गुटबंदी के आरोप भी लगे। वहीं दूसरी ओर यूपी में ई-लॉटरी प्रणाली है जो शराब के छोटे कारोबारियों को इस उद्योग में प्रवेश करने की अनुमति देती है। 

इस रिपोर्ट में द प्रिंट से बात करते हुए उत्तर प्रदेश के उत्पाद शुल्क आयुक्त सेंथिल पांडियन कहते हैं कि यूपी की शराब नीति ने उद्योग के एकाधिकार को तोड़ने के लिए लाइसेंस शुल्क-आधारित प्रणाली से उपभोग-आधारित प्रणाली में पूरी तरह से स्थानांतरित कर दिया है। दुकानों की संख्या भी प्रति व्यक्ति दो तक सीमित कर दी गई है। आवंटन पैटर्न को नीलामी-आधारित मॉडल से ई-लॉटरी प्रणाली में बदल दिया गया था। हमने ट्रैक और ट्रेस सिस्टम स्थापित करने के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग किया है। 

सीएम योगी को शराब नहीं राजस्व प्रिय है 

रिपोर्ट कहती है कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी जी को शराब नहीं बल्कि राजस्व प्रिय है। रिपोर्ट में यूपी सरकार के एक अधिकारी नाम न छापने की शर्त पर कहते हैं कि जब भी सीएम के साथ बैठक होती है तो लखनऊ में आबकारी विभाग के अधिकारी खुद को मुश्किल स्थिति में पाते हैं। उन्हें "शराब" शब्द का यथासंभव कम उपयोग करना होगा, जबकि वे शराब और इसकी नीति के बारे में बात करते हैं। 

वे कहते हैं कि “योगी जी को यह शब्द पसंद नहीं है। जब भी हम कुछ कहते हैं तो वह मुंह बना लेते हैं। अधिकारियों का कहना है कि सीएम योगी को उन पर पूरा भरोसा है और उन्होंने उन्हें आबकारी नीति में बदलाव करने की खुली छूट दे दी है। 

राज्य उत्पाद शुल्क विभाग के एक अधिकारी का कहना है कि यह मुख्यमंत्री ही थे जो चाहते थे कि शराब की तस्करी ख़त्म हो और तभी ट्रैक एंड ट्रेस सिस्टम लागू किया गया। अब शराब परिवहन करने वाले प्रत्येक वाहन पर प्रवेश बिंदु से निकास तक निगरानी की जाती है। पांडियन कहते हैं, वाहन जियो-फेंस्ड और डिजी लॉक भी हैं।

यूपी के सीएम योगी अपने शराब विरोधी रुख के लिए जाने जाते हैं। हाल ही में उन्होंने अयोध्या में शराब और मांस के सेवन पर प्रतिबंध लगाने की भी घोषणा की थी। 

लेकिन अधिकारियों का मानना ​​है कि शराब पर किसी भी तरह का प्रतिबंध निरर्थक और मूर्खतापूर्ण होगा और राज्य के विकास में बाधा बनेगा और सीएम इस बात को समझ चुके हैं। 

एक अधिकारी कहते हैं कि यदि राजस्व कारण न होता तो योगी जी स्वयं शराब पर प्रतिबंध की नीति बनाते। मुख्यमंत्री को शराब शब्द पसंद नहीं है लेकिन वह राजस्व चाहते हैं और उससे प्यार करते हैं, लेकिन भ्रष्टाचार की कीमत पर नहीं। 

यह हैं पोंटी चड्ढा 2.0 

द प्रिंट की यह रिपोर्ट कहती है कि नोएडा सेक्टर 104 में शानदार द वीकेंड शराब की दुकान में, एक कोने में एक समर्पित वाइन सेलर है और दूसरे में प्रीमियम शराब ब्रांड हैं। जीवंत सफेद-पीली रोशनी के साथ इस शराब मॉल में शानदार साज-सज्जा और काले कोट और पतलून में सेल्समैन दिखते हैं।   

यहां द वीकेंड का पहला स्टोर 2020 में स्थापित किया गया था, जब इसके मालिक 52 वर्षीय सौरभ गोयल गुड़गांव में शराब की दुकानों में खुली बैठने की व्यवस्था से आकर्षित हुए थे। दादरी के मूल निवासी गोयल इसे नोएडा लाना चाहते थे। गोयल ने हाल ही में शराब उद्योग में कदम रखा है। 

द प्रिंट से वे कहते हैं कि मैं लखनऊ गया और तत्कालीन प्रमुख सचिव संजय बूस रेड्डी और आयुक्त सेंथिल पांडियन से मिला। मैंने अपना प्रस्ताव रखा और वे तुरंत सहमत हो गये। और मुझे एक महीने के भीतर अपना लाइसेंस मिल गया। 

द वीकेंड के सफल होने के बाद, गोयल ने ऐसे तीन और स्टोर खोले। एक नोएडा में और तीन गाजियाबाद में। उत्पाद शुल्क नीति में प्रति व्यक्ति केवल दो दुकानों की अनुमति होने के कारण, गोयल ने परिवार के सदस्यों से मदद ली। अब गोयल की पत्नी के नाम पर दो स्टोर चल रहे हैं। 

उनके प्रतिस्पर्धी गोयल को "शराब कारोबारी" बनने की बड़ी महत्वाकांक्षा रखने के लिए पोंटी चड्ढा 2.0 कहते हैं। उत्तर प्रदेश में केवल तीन माइक्रोब्रुअरीज हैं ये सभी 2022 में स्थापित हुई हैं जो कि गाजियाबाद, नोएडा और आगरा में एक-एक हैं। 

इस रिपोर्ट में कहा गया है कि गोयल का लक्ष्य अब अपने ब्रांड को लखनऊ तक ले जाना है। लेकिन उन्हें अभी इंतज़ार करना पड़ सकता है। उत्तर प्रदेश सरकार के सूत्रों ने प्रीमियम शराब की दुकानों के धीमे विस्तार के पीछे राजनीतिक दबाव की ओर इशारा किया है।

इसके पीछे माना जा रहा है कि चुनाव करीब हैं और शीर्ष नेतृत्व नहीं चाहता कि शराब की दुकानें कोई मुद्दा बनें। नोएडा और गाजियाबाद दिल्ली के बगल में हैं और वहां ऐसे स्टोर की जरूरत है। एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि लखनऊ में खुली शराब की दुकान प्रतिक्रिया का कारण बन सकती है। अधिकारियों के अनुसार, उत्पाद शुल्क का लगभग 85 प्रतिशत राजस्व राज्य में मादक पेय पदार्थों की बिक्री से आता है।

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