कोर्ट आदेश के बावजूद वसूली नोटिस, योगी सरकार कर रही है अदालत की अवमानना?
उत्तर प्रदेश में नागरिकता संशोधन क़ानून (सीएए) के विरोध में हुए प्रदर्शनों के दौरान उत्तर प्रदेश पुलिस पर बर्बरता करने के आरोप लगे हैं। पुलिस पर यह भी आरोप लगे कि उसने मुसलिम समुदाय के घरों में घुसकर बुजुर्गों, महिलाओं, नौजवानों को जमकर पीटा है। प्रदेश में इस क़ानून के विरोध में हुए प्रदर्शनों के दौरान 20 से ज़्यादा लोगों की मौत हो चुकी है। इस क़ानून के विरोध में प्रदर्शन करने वाले हज़ारों लोगों के ख़िलाफ़ पुलिस ने अंधाधुंध एफ़आईआर दर्ज की हैं और सैकड़ों बुद्धिजीवियों, छात्रों, सामाजिक संगठनों के कार्यकर्ताओं को कार्रवाई के नाम पर जेलों में ठूंस दिया है। उपद्रवियों से ‘बदला’ लेने का बयान देने वाले उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ इस सबके बाद प्रदेश की विधानसभा में पुलिस की पीठ भी थपथापते हैं।
पुलिस और प्रशासन की बर्बरता की ऐसी ही कुछ घटनाएं देखिये। पीलीभीत में 13 फ़रवरी को सीएए के विरोध में सभा हुई, जिला प्रशासन ने आकर प्रदर्शनकारियों से ज्ञापन लिया और कार्यक्रम ख़त्म हो गया। प्रदर्शन में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के रिटायर्ड जस्टिस एम. अहमद भी शामिल थे। घटना के दो दिन बाद पीलीभीत कोतवाली के एक सिपाही ने जस्टिस अहमद सहित 33 लोगों पर सेवन क्रिमिनल एक्ट, अपहरण और बंधक बनाने की धाराओं में मुक़दमा दर्ज करा दिया। लेकिन अदालत ऐसे मामलों को लेकर बेहद सख़्त है और कानपुर में सीएए विरोधी प्रदर्शन में शामिल होने के आरोप में मुहम्मद फैज़ान को भेजे गए वसूली नोटिस के मामले में हाई कोर्ट ने इसी सोमवार को रोक लगाई और सख़्त टिप्पणी भी की।
दमन का दौर जारी
इस सबसे बेखौफ़ योगी सरकार ने हाई कोर्ट के फ़ैसले के अगले ही दिन लखनऊ में कांग्रेस नेत्री सदफ ज़फर, पूर्व आईपीएस एस.आर.दारापुरी समेत छह लोगों को 63 लाख रुपये वसूली का नोटिस भेज दिया है। उच्च न्यायालय सहित सर्वोच्च न्यायालय ने विरोध-प्रदर्शन को लोकतांत्रिक अधिकार मानते हुए इस पर रोक को ग़लत बताया है लेकिन यूपी में विभिन्न शहरों में दमन का दौर जारी है।
हज़ार लोगों को वसूली नोटिस जारी
उत्तर प्रदेश में बीते सप्ताह तक 1023 लोगों को सीएए विरोधी प्रदर्शन में शामिल होने व सरकारी संपत्ति को होने वाले नुक़सान के एवज में वसूली नोटिस जारी किया जा चुका है। हर रोज वसूली नोटिस जारी हो रहे हैं। इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश के बाद भी यह सिलसिला रुका नहीं है। लखनऊ में सदफ ज़फर और दारापुरी ने वसूली नोटिस के ख़िलाफ़ अदालत का दरवाजा खटखटाने का एलान किया है। सदफ को वीडियो बनाने के जुर्म में वसूली नोटिस दिया गया है।
उत्तर प्रदेश में 22 जिलों में सीएए विरोधी हिंसा के मामले सामने आने के बाद मुख्यमंत्री के वसूली वाले बयान के चलते प्रदेश भर के अधिकारियों में नोटिस जारी करने की होड़ लग गयी है। हर रोज किसी न किसी जिले में वसूली नोटिस जारी हो रहे हैं।
कानपुर में एक मामले में फ़ैसला आने वाले दिन ही नौ और लोगों को वसूली नोटिस जारी कर दिया गया है। लखनऊ के घंटाघर में चल रहे प्रदर्शन के मामले में मशहूर शायर मुनव्वर राणा की दो बेटियों पर मुक़दमा दर्ज किया गया। उन पर जिस दिन लोगों को उकसाने का आरोप लगाया गया है, उस दिन वे दोनों अपने घर में मौजूद थीं। रंगकर्मी दीपक कबीर को तीन हफ्ते तक जेल में रखने के बाद रिहा किया गया और फिर उन पर घंटाघर प्रदर्शन में बच्चों की पोस्टर प्रतियोगिता करवाने या कविता करवाने जैसे जुर्म में मुक़दमा दर्ज कर दिया गया।
डॉ. कफ़ील पर लगा रासुका
योगी सरकार ने अलीगढ़ में सीएए विरोधी एक प्रदर्शन में भाषण देने पर गोरखपुर मेडिकल कॉलेज के निलंबित डॉ. कफ़ील पर केस दर्ज कर उन्हें जेल भेज दिया। डॉ. कफ़ील को अलीगढ़ की एक अदालत ने जमानत पर रिहा किया लेकिन योगी सरकार ने चार दिन तक उनकी रिहाई नहीं होने दी और आख़िरकार उन पर राष्ट्रीय सुरक्षा क़ानून (रासुका) लगा दिया।
डॉ. कफ़ील के साथ अलीगढ़ में सीएए के विरोध में हुई सभा को संबोधित करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता योगेंद्र यादव का कहना है कि डॉ. कफ़ील ने कुछ भी आपत्तिजनक नहीं कहा था। हैरत की बात है कि डॉ. कफ़ील पर एनएसए लगाने संबंधी रिपोर्ट एलआईयू, एसपी सिटी, एसएसपी समेत सभी अधिकारियों और महक़मों ने महज एक ही दिन (13 फरवरी) में लगा दी है। डॉ. कफ़ील ने केंद्र के गृह विभाग के साथ ही यूपी की परामर्शदात्री समिति को एक पत्र भेज कर इस बारे में बताया है।