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क्या बागपत में पुलिस के आतंक से गाँववाले घर बेच कर भाग रहे हैं? 

क्या बागपत में पुलिस के आतंक से गाँववाले घर बेच कर भाग रहे हैं? 

क्या बाग़पत की सरज़मीं बग़ावत के इतिहास को फिर से दोहराएगी? स्थानीय किसानों का तो यही दावा है।

क्या बाग़पत की सरज़मीं बग़ावत के इतिहास को फिर से दोहराएगी स्थानीय किसानों का तो यही दावा है। शाहमल के आह्वान पर मेरठ-बाग़पत क्षेत्र के 84 गाँवों के किसान अपना घर-गाँव छोड़ कर लड़ने चले गए थे। उन्होंने ब्रिटिश हुक़ूमत के ख़िलाफ़ बग़ावत की थी। वह 163 साल पुरानी इतिहास की गाथा थी। क्या सुदेशना राठी के आह्वान पर गांगनौली के किसान अपना गाँव छोड़ कर चले जाएंगे क्या वे योगी आदित्यनाथ सरकार के ख़िलाफ़ नाराज़गी व्यक्त करना चाहते हैं यह वर्तमान की रिपोर्ट है।

अंग्रेज़ों की नज़र में शाहमल अपराधी थे। शाहमल को ब्रिटिश फौज ने मार डाला था। योगी सरकार की पुलिस की निग़ाह में सुदेशना राठी अपराधी परिवार हैं। पुलिस ने सप्ताह भर पहले सुदेशना के बेटे को खेत से पकड़ कर फ़र्ज़ी मुठभेड़ में गोली मार कर ज़ख़्मी कर दिया  गया था।

मोदी की वादा

2017 के विधानसभा चुनाव के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चुनावी सभाओं को सम्बोधित करते हुए कहा था कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान हिंसा से डरे हुए हैं और गाँव छोड़कर भाग रहे हैं। उन्होंने चुनाव जीतने के बाद इन किसानों के भीतर से हिंसा को मिटाने  का आह्वान किया था। मुख्यमंत्री बन जाने के बाद योगी आदित्यनाथ ने भी इस डर को जड़ से ख़त्म करने का वायदा किया था।

मौजूदा स्थिति यह है कि पुलिस के डर से आक्रांत ये किसान अपने गाँव छोड़ कर निकल जाने की तैयारी में हैं। उनके घरों के बाहर हाथ से लिखे पोस्टर चिपके हैं, जिसमें साफ़ लिखा है कि यह मकान बिकाऊ है।

असल में इस घटनाक्रम की शुरुआत 23 अगस्त को हुई। बाग़पत ज़िले के बड़ौत क़स्बे के गाँव गांगनौली की ग्राम प्रधान श्रीमती सुदेशना राठी का बेटा प्रवीण राठी अपने पिता सतवीर सिंह राठी के साथ अपने खेतों में काम कर रहा था।थाना दोघट की पुलिस वहाँ पहुँची और उसने प्रवीण को गिरफ़्तार कर लिया। उसकी गिरफ़्तारी का पिता ने विरोध किया, लेकिन उनकी एक न सुनी गई। बाद में पुलिस ने बयान दिया कि प्रवीण कुख्यात अपराधी है, वह पुलिस से बचकर हाइवे से भाग रहा था, तभी पुलिस की गोली उसके पाँव में लगी, वह ज़ख्मी हो गया। 

मुठभेड़ का टार्गेट

पुलिस की इस कार्रवाई की ग्रामीणों में व्यापक प्रतिक्रिया हुई। न सिर्फ़ प्रवीण का पिता बल्कि गाँव के अनेक पुरुषों और स्त्रियों ने अपनी आँखों के सामने पुलिस को पकड़ कर ले जाते देखा है। बीते गुरुवार को उन्होंने पत्रकारों के बीच कहा कि पुलिस को गिरफ़्तारी और एनकाउंटर का 'टारगेट' दिया गया है और वह इसे पूरा करने में जुटी है। 

विभिन्न धर्मों और जातियों के लोगों को, जो परंपरागत रूप से बीजेपी के वोटर नहीं हैं, पुलिस न सिर्फ़ उन्हें झूठे मुक़दमों में फँसा रही है, बल्कि उनका फ़र्ज़ी मुठभेड़ भी कर रही है। इसलिए वे अपना मकान बेचकर गाँव छोड़ रहे हैं।

ग्राम प्रधान सुदेशना राठी ने कहा कि योगी जी चुनाव के समय भयमुक्त समाज बनाने का वायदा कर रहे थे, लेकिन अब उनकी पुलिस ही पूरे प्रदेश को भययुक्त बनाने पर तुली है। उनके पति सतवीर राठी ने कहा कि 'मेरे बेटे को मेरी आँखों के सामने खेत से उठाया और बाद में पैर में गोली मारकर उसे मुठभेड़ में भागने की कोशिश बताते हुए घायल कर दिया और उसके पास से तमंचा बरामद करके दिखा दिया। अब हमारे लिए यह सब असहनीय है, लिहाज़ा हम तमाम किसान अपने-अपने गाँव बेचकर जा रहे हैं। हम यूपी ही छोड़ देंगे।'   

संपत्ति की जाँच

इन ग्रामीणों द्वारा संवाददाताओं से मुलाक़ात करना प्रशासन को हज़म नहीं हुआ। शुक्रवार को प्रधान के घर पर संपत्ति जाँच के बहाने छापा मारा गया। पुलिस के अलावा राजस्व विभाग और पीडब्लूडी की टीम दिन भर उनके घर और संपत्ति के ब्यौरे तलाश करती रही। ग़ौरतलब है कि प्रदेश में इन दिनों 'कुख्यात' अपराधियों की संपत्ति की जाँच और पर्याप्त रिकॉर्ड न मिलने पर संपत्ति ज़ब्त किये जाने का अभियान ज़ोरों पर है। अकेले बाग़पत ज़िले में अब तक 3 लोगों के यहां संपत्ति की जाँच हो चुकी है हालाँकि किसी की संपत्ति ज़ब्त नहीं की गई है। 

उधर बड़ौत के पुलिस क्षेत्राधिकारी अलोक सिंह ने प्रधान के समूचे परिवार को 'शातिर और दुर्दांत अपराधी' बताया है। उन्होंने कहा कि गिरफ़्तार प्रवीण के विरुद्ध 5 मुक़दमें दर्ज़ हैं, जबकि उसका एक भाई फ़रार चल रहा है और दूसरा आगरा जेल में बंद है। उसके ख़िलाफ़ 'ट्रायल' शुरू होने वाला है। आलोक सिंह का यह भी कहना है कि प्रवीण के पिता पर भी हत्या जैसे नृशंस अपराध के केस दर्ज है। 

निजी रंजिश

वस्तुस्थिति यह है कि समूचा क्षेत्र निजी रंजिशों और आपसी हिंसा की तमाम ख़ून आलूदा क़िस्से-कहानियों से रचा-बसा है। प्रधान परिवार भी संपत्ति विवाद की ऐसे ही लड़ाई-झगड़ों में उलझा रहा है लेकिन इन्हें उस तरह का कोई पेशेवर अपराधी नहीं कहा जा सकता है। यह बात दूसरी है कि बीते 4 वर्षों से वे लोग किसी प्रकार की मारापीटी में नहीं पाए गए हैं। 

वैसे भी भारत का संविधान और देश के क़ानून किसी अपराधी को भी अपने न्याय संगत बचाव की पूरी-पूरी छूट देते हैं। फर्ज़ी मुठभेड़ क़ानून की निगाह में ग़ैरक़ानूनी है। किसी को भी अपना गाँव-मोहल्ला, देस-परदेस छोड़ने को मजबूर करना और भी बड़ी अमानवीय करतूत है, जिसे रोका जाना चाहिए। आने वाले 2 -3 महीनों में तीन स्तरीय ग्राम पंचायत चुनाव संपन्न होने को हैं।

विपक्षी दलों का कहना है कि योगी सरकार गाँवों में ज़बरदस्त भय का परिवेश तैयार कर रही है। वह बीजेपी को वोट न देने का रिकॉर्ड रखने वाले वोटरों और विरोध में उतरने वाले चुनाव प्रत्याशियों की कमर तोड़ डालना चाहती है और इसमें उसने अपनी सेवा में पुलिस को लगा रखा है। मौजूदा 'ऑपरेशन क्लीन' योगी सरकार के इसी बड़े अभियान का हिस्सा है, ऐसा उनका आरोप है।

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