यूपी में पिछड़ों को ही आधार बनाएगी बीजेपी

08:31 am Jul 18, 2019 | कुमार तथागत - सत्य हिन्दी

लोकसभा चुनाव बीतते ही बीजेपी ने ढाई साल बाद होने वाले उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों के लिए गणित सेट करनी शुरू कर दी है। लगातार कई चुनावों में आजमाए नुस्खों पर ही काम करते हुए बीजेपी यूपी में पिछड़ों के सहारे ही आगे बढ़ती रहेगी। ख़ास बात यह है कि पिछड़ों में भी बीजेपी अब अन्य जातीय दलों या उधार के नहीं बल्कि अपने खांटी नेताओं के दम पर ही आगे बढ़ेगी।

उत्तर प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष के लिए स्वतंत्रदेव सिंह का चयन बीजेपी की इसी रणनीति का हिस्सा है। प्रदेश में पिछड़ों के बड़े हिस्से (क़रीब आठ फ़ीसदी) कुर्मी समाज से आने वाले स्वतंत्रदेव सिंह का चयन यह साफ़ करता है कि यादवों के बराबर पिछड़ों में हिस्सेदारी रखने वाले कुर्मी समाज के लिए पार्टी अपने नेताओं को ही आगे रखना चाहती है। 

पश्चिम में जाटों के नेता के तौर पर संजीव बालियान, पूरब में राजभर बिरादरी के अनिल राजभर, दलितों में खटीक समुदाय के विद्यासागर सोनकर के जरिए बीजेपी अब इन जातियों को साधना चाहती है और कुछ ख़ास नेताओं की इन पर दावेदारी को ख़त्म करना चाहती है।

अपने नेता के बलबूते साधेगी कुर्मियों को 

2014 के लोकसभा चुनावों के समय से ही बीजेपी का उत्तर प्रदेश में कुर्मी समाज के दल अपना दल के साथ गठबंधन है। अपना दल की सांसद अनुप्रिया पटेल को बीजेपी ने पिछली केंद्र सरकार में मंत्री भी बनाया था और प्रदेश की योगी सरकार के मंत्रिमंडल में भी भागीदारी दी थी। हालाँकि 2019 के लोकसभा चुनावों के दौरान अनुप्रिया की पैंतरेबाज़ी व सौदेबाज़ी बीजेपी नेताओं को रास नहीं आयी। इतना ही नहीं, मिर्ज़ापुर में अनुप्रिया को जितवाने के लिए भी बीजेपी के तमाम नेताओं को ख़ासी मशक्कत करनी पड़ी। 

बीजेपी के वरिष्ठ नेताओं का मानना है कि लोकसभा चुनावों के दौरान कुर्मी वोट दिलाने में अनुप्रिया से कोई ख़ास मदद नहीं मिली। अब तक पिछड़ों की राजनीति में यादवों से पिछड़ते रहे कुर्मियों की स्वाभाविक पसंद बीजेपी बन चुकी है। प्रदेश में ज़्यादातर कुर्मी बहुल सीटों के नतीजे इसी ओर इशारा भी करते हैं।

बीजेपी ने अब कुर्मी वोटों के लिए अनुप्रिया पर भरोसा करने के बजाय अपनी पार्टी के इस बिरादरी से आने वाले नेताओं को आगे करने का फ़ैसला किया है। प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष के पद पर स्वतंत्रदेव का चयन इसकी बानगी भर है।

लोकसभा चुनावों के नतीजे आने के पहले बीजेपी का यूपी में राजभर बिरादरी की पार्टी कही जाने वाली सुहेलदेव राजभर भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) के साथ गठबंधन रहा था। एन लोकसभा चुनावों के समय सुभासपा नेता ओमप्रकाश राजभर ने आँखें दिखाईं और तीन दर्जन सीटों पर अपने प्रत्याशी उतार दिए। लोकसभा चुनावों तक बीजेपी चुप रही पर नतीजे आते ही ओमप्रकाश राजभर को दूध से मक्खी की तरह निकालकर बाहर फेंक दिया। अब बीजेपी राजभर बिरादरी के अपने दल के नेता अनिल राजभर को आगे बढ़ा रही है। अनिल को ओमप्रकाश राजभर के मंत्रालय छीन कर दे दिए गए हैं। 

पश्चिम में जाटों को नेता के तौर बीजेपी ने संजीव बालियान को स्थापित कर दिया है। इस बेल्ट से बीजेपी ने चौधरी अजित सिंह को बतौर जाट नेता  पूरी तरह विस्थापित कर दिया है। 

केवट बिरादरी से बीजेपी ने कभी एसपी के टिकट पर योगी की सीट गोरखपुर से जीते प्रवीण निषाद को साथ लेकर उन्हें संतकबीरनगर से सांसद बना दिया है। अब दलितों में खटीक बिरादरी में लोकप्रिय नेता विद्यासागर सोनकर को बीजेपी आगे बढ़ा रही है।

सवर्णों के साथ रहने का भरोसा

बीजेपी का साफ़ मानना है कि वर्तमान परिस्थितियों में नाराजगी के बाद भी सवर्ण वर्ग उसे छोड़कर कहीं जाने वाला नहीं है। प्रदेश में अब तक बीजेपी ने ब्राह्मण महेंद्र नाथ पांडे को अध्यक्ष बनाए रखा, जिन्हें इस बार केंद्र में मंत्री बना दिया गया है। पार्टी का मानना है कि ब्राह्मण और ठाकुर बिरादरी तो हर हाल में उसके साथ रहेगी और तमाम नाराजगी के बाद भी वैश्य समाज को उसी के साथ रहना है। अब प्रदेश में आगे होने वाले विधानसभा चुनावों के मद्देनजर पिछड़ों और दलितों को साधना ज़रूरी है। बीजेपी को इसमें सबसे बड़ा ख़तरा मायावती नजर आती हैं जिन्होंने सपा से गठबंधन तोड़ने के बाद एक बार फिर से जातीय समूहों को साधने के लिए भाईचारा कमेटियों को पुनर्जीवित कर दिया है। बीजेपी का साफ़ मत है कि पिछड़ों को कहीं और जाने से रोकने के लिए ज़रूरी है अपनी पार्टी में इस बिरादरी के नेताओं को आगे बढ़ाया जाए।

पिछड़ों की राजनीति को लेकर बीजेपी यूपी में पिछले विधानसभा चुनावों में केशव प्रसाद मौर्य को आज़मा चुकी है। केशव मौर्य के प्रदेश अध्यक्ष रहते हुए ही बीजेपी ने पिछले विधानसभा चुनावों में बंपर जीत हासिल की थी।

केशव प्रसाद मौर्य को पार्टी ने प्रदेश सरकार में उपमुख्यमंत्री का दर्जा देते हुए पिछड़ों को जोड़ने के काम पर लगा रखा है। पार्टी का मानना है कि यादवों से इतर पिछड़ों और जाटवों से इतर दलितों को पार्टी में तभी जोड़ा जा सकता है जब इस बिरादरी के नेताओं को आगे लाया जाए। आने वाले दिनों में योगी मंत्रिमंडल के फेरबदल में भी बड़ी तादाद में दलित, पिछड़े चेहरों को जगह दी जा सकती है। इनमें गुर्जर, ग़ैर जाटव दलित और केवट समुदाय की नुमाइंदगी होगी।