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योगी को राम की है फ़िक़्र, उसे रोटी की चिंता है... 

योगी को राम की है फ़िक़्र, उसे रोटी की चिंता है... 

जनता की समस्याओं पर ध्यान देने के बजाए योगी आदित्यनाथ का पूरा ज़ोर हिन्दू उत्थान पर केंद्रित लगता है। विधानसभा चुनाव में योगी के सहारे ध्रुवीकरण की बीजेपी की कोशिश फ़ेल हो गई।

मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में कांग्रेस की वापसी ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ क़ा तिलिस्म तोड़ दिया है। योगी जी इन तीनों राज्यों में बीजेपी के स्टार प्रचारक थे। उन्होंने ताबड़तोड़ चुनावी सभाएँ करके एक रेकॉर्ड बना दिया लेकिन उनकी अपील का जनता पर कोई असर दिखाई नहीं दिया। मज़बूत संगठन के बावजूद बीजेपी और आरएसएस इन राज्यों में कमज़ोर पड़ चुकी कांग्रेस की वापसी को रोक नहीं पाए। चुनाव परिणामों के बाद योगी ने पटना में एक प्रेस कॉन्फ़्रेन्स में कहा कि कांग्रेस झूठ बोलकर सत्ता में आई है।

सिर्फ़ हिन्दू उत्थान पर है ज़ोर

यह बयान योगी के राजनीतिक चरित्र को सामने लाता है। दरअसल, योगी जब से उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने हैं तब से ऐसे संकेत दे रहे हैं जैसे उत्तर प्रदेश की मूलभूत समस्या अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण, गो रक्षा और हिंदुओं का धार्मिक उत्थान तक ही सीमित है। योगी का पूरा ज़ोर हिन्दू उत्थान पर केंद्रित लग रहा है। योगी यही संदेश विधानसभा चुनाव वाले राज्यों में लेकर गए थे।

राजस्थान के अलवर की एक सभा में हनुमान जी को दलित और आदिवासी बताकर उन्होंने अपने धार्मिक अन्धविश्वास की सारी सीमाएँ तोड़ दी। हालाँकि पटना में हुई प्रेस कॉन्फ़्रेन्स में उन्होंने सफ़ाई दी कि हनुमान जी सबके हैं। वैसे तो नेताओं का यह पुराना तरीक़ा है कि पहले बिना सोचे-समझे बयान देना और फिर घिर जाने पर पलट जाना। आध्यात्मिक शक्ति से लैस योगी भी नेताओं की उसी क़तार में खड़े दिखाई देते हैं। लगता नहीं है कि योगी अब तक धरातल पर समस्याओं को समझ पाए हैं।

समस्याओं पर नहीं है ध्यान

उत्तर प्रदेश के किसान चीनी मिलों से गन्ने की क़ीमत नहीं मिलने से परेशान हैं लेकिन योगी सरकार इलाहाबाद में, जिसे अब प्रयागराज का नाम दिया गया है, अर्धकुंभ पर क़रीब 3 हज़ार करोड़ रुपये ख़र्च करने जा रही है। सत्ता में आने के बाद से ही योगी ने एंटी-रोमियो ब्रिगेड जैसे संगठनों को बढ़ावा देना शुरू किया जिसका शिकार पार्क और खुले स्थानों पर मिलने-जुलने वाले युवा हो रहे हैं। महिलाओं के साथ बलात्कार और हत्या की घटनाओं पर कारगर रोक लगाने की तरफ़ उत्तर प्रदेश सरकार शायद ही ध्यान दे रही है।

 - Satya Hindi

गोहत्या रोकने के नाम पर कस्बों तक में ऐसे गैंग खड़े हो गए हैं जो जानवरों का व्यापार करने वाले लोगों पर खुलेआम अत्याचार करते हैं। स्थिति यहाँ तक आ गई है कि गोरक्षक हिंदुओं की एक अराजक भीड़ एक हिन्दू पुलिस अधिकारी की खुलेआम हत्या कर देती है लेकिन फिर भी योगी सरकार असहज दिखाई नहीं देती है।

बीजेपी के लिए उग्र हिंदू चेहरा हैं योगी

आरएसएस और बीजेपी के लिए योगी आदित्यनाथ एक उग्र हिंदू चेहरा हैं जिन्हें चुनाव वाले राज्यों में हीरो की तरह पेश किया जाता है ताकि हिन्दू मतदाता को आसानी से उन्मादी बनाकर वोट बटोरा जा सके। दुर्भाग्य तो यह है कि बीजेपी और आरएसएस का नेतृत्व यह समझने और मानने के लिए तैयार नहीं है कि हिन्दू अपने सदियों पुराने अंदरूनी द्वंद्व से उबर नहीं पाया है। जातिप्रथा हिन्दू धर्म की सबसे बड़ी समस्या है और छुआछूत उसकी सबसे बड़ी बीमारी।

अनुसूचित जाति क़ानून की सख़्ती को बरकरार रखने के लिए क़ानून में संशोधन का विरोध मुसलमान या ईसाई नहीं करते हैं। विरोध का स्वर सवर्ण हिन्दुओं के बीच से उठता है। महाराष्ट्र में दलितों पर हमला सवर्ण हिंदुओं ने किया। धर्म और राजनीति दोनों तरफ़ पैर रखने वाले योगी से हिन्दुओं के बीच जाति के आधार पर भेदभाव ख़त्म करने के लिए व्यापक सामाजिक अभियान चलाने की उम्मीद की जाती है। लेकिन योगी की उग्र हिंदूवादी सोच जो एक तरह से सवर्ण हिंदूवादी सोच भी है उन्हें हिन्दू समाज में समरसता के आंदोलन चलाने से रोकती है।

वादों पर खरे नहीं उतरे मोदी

हाल ही में बीजेपी से इस्तीफ़ा देने वाली दलित सांसद सावित्री बाई फुले ने योगी की हिंदूवादी सोच को भी चुनौती दी है। सावित्री बाई ने खुलकर कहा कि अयोध्या में राम मंदिर बन जाने से कुछ पुजारियों की कमाई बढ़ जाएगी, इससे दलित हिन्दू को कोई फ़ायदा नहीं होगा। 2014 में बीजेपी और नरेंद्र मोदी की ऐतिहासिक जीत हिंदुत्व के मुद्दे पर नहीं हुई थी। भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ मोदी के बयानों को लोगों ने सिर आँखों पर बैठाया था। मोदी के रोज़गार देने और किसानों की आमदनी तीन गुना बढ़ाने के बयानों ने जाति की दीवारों को तोड़कर लोगों को कमल पर वोट देने के लिए उत्साहित किया। पर ये सब बातें अब सिर्फ़ बातें ही रह गई ऐसा लगता है। देखें विडियो।

नाम बदलने से क्या होगा

शासक जब सामाजिक और आर्थिक विकास को किनारे रखकर आध्यात्मिक और धार्मिक उत्थान में लग जाता है, तब ग़रीब आदमी और शासन का बेड़ा ग़र्क़ होना एक तरह से निश्चित हो जाता है। धार्मिक गुरू से शासक बने मुख्यमंत्री आदित्यनाथ कुछ उसी राह पर चलते दिखाई देते हैं। फ़ैज़ाबाद का नाम अयोध्या और इलाहाबाद का नाम प्रयागराज कर देने से कुछ लोगों को भावनात्मक संतुष्टि मिल सकती है लेकिन इससे उनका आर्थिक और सामाजिक स्तर ऊपर नहीं उठ सकता है।

योगी जब लोकतंत्र में हार-जीत होते रहने की बात करते हैं तब भूल जाते हैं कि राजस्थान और मध्य प्रदेश के किसान उपज का उचित मूल्य दिलाने का आंदोलन करके पहले से संकेत दे रहे थे कि वे बीजेपी शासन से ख़ुश नहीं हैं। गोरक्षा के नाम पर इन राज्यों में आतंक का जो माहौल बन गया था. वह भी मतदाताओं के ख़ामोश विद्रोह की ज़मीन तैयार कर रहा था। 2019  का लोकसभा चुनाव क़रीब आ चुका है।

मतदाता के संकेत को समझें योगी

गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा तथा कैराना और नूरपुर विधानसभाओं के उपचुनावों में बीजेपी को हरा कर उत्तर प्रदेश का मतदाता साफ़ संकेत दे चुका है कि अगले चुनावों में क्या स्थिति हो सकती है। गोरखपुर से ख़ुद आदित्यनाथ सांसद थे और यह इलाक़ा दशकों से उनका गढ़ माना जाता है। राम मंदिर और गाय एक सीमित वर्ग के लिए भावनात्मक मुद्दा ज़रूर है लेकिन आम जनता, ग़रीब और किसान के लिए रोज़ी-रोटी सबसे बड़ी सच्चाई है। योगी आदित्यनाथ शायद यह बात समझना ही नहीं चाहते।

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