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ईरान के साथ चाबहार डील पर यूएस परेशान, प्रतिबंध की धमकी क्यों दे रहा?

ईरान के साथ चाबहार डील पर यूएस परेशान, प्रतिबंध की धमकी क्यों दे रहा?

चाबहार बंदरगाह के लिए भारत-ईरान समझौता अमेरिका को चुभ गया है। उसने पाबंदियों की याद दिलाते हुए धमकी दी है। लेकिन भारत के लिए यह समझौता आर्थिक रूप से काफी महत्वपूर्ण है। इसलिए समझौते से पहले ही भारत ने इसके नफा-नुकसान पर विचार किया होगा। यही वजह है कि भारत ने बिना किसी परवाह के यह समझौता किया है। जानिए भारत के लिए यह समझौता क्यों महत्वपूर्ण हैः 

चाबहार पोर्ट को विकसित करने पर भारत-ईरान ने सोमवार को दस साल का समझौता किया। लेकिन इस समझौते पर अमेरिका की नजरें टेढ़ी हो गईं हैं। उसने प्रतिबंधों की धमकी दी है। हालांकि अमेरिका खुद को भारत का अच्छा मित्र बताता रहा है लेकिन उसे चाबहार पर भारत-ईरान समझौता हजम नहीं हो रहा है। भारत ने यह रणनीतिक समझौता ऐसे समय में किया है जब पाकिस्तान कराची और ग्वादर पोर्ट को विकसित करने के लिए चीन की मदद काफी समय से ले रहा है। ग्वादर और चाबहार कारोबार की नजर से बहुत महत्वपूर्ण बंदरगाह हैं। ईरान, अफगानिस्तान और मध्य एशियाई देशों में माल ट्रांसपोर्ट के लिए ओमान की खाड़ी के साथ-साथ ईरान के दक्षिण-पूर्वी तट पर चाबहार महत्वपूर्ण केंद्र है। इसीलिए भारत की दिलचस्पी इस पोर्ट में है।

 - Satya Hindi

भारत के मंत्री सर्वदानंग सोनोवाल ईरान के मंत्री और अधिकारियों के साथ

ईरान पर अमेरिकी प्रतिबंधों ने चाबहार बंदरगाह के विकास को धीमा कर दिया है। भारत लंबे समय से इसमें दिलचस्पी दिखा रहा था। भारत-ईरान समझौते पर अमेरिकी विदेश विभाग के प्रवक्ता ने कहा कि ईरान पर अमेरिकी प्रतिबंध लागू रहेंगे और चेतावनी दी कि वाशिंगटन उन्हें और सख्ती से लागू करना जारी रखेगा। अमेरिकी प्रवक्ता ने कहा- "कोई भी देश, कोई भी व्यक्ति जो ईरान के साथ व्यापारिक सौदे पर विचार कर रहा है - उन्हें उन संभावित जोखिमों और प्रतिबंधों को लेकर जागरूक होने की जरूरत है। वे खुद को उस तरफ ले जा रहे हैं।"

अमेरिका अपने आर्थिक हित हर देश में हर इलाके में आगे रखता है। ईरान उसे लंबे समय से खटकता रहा है। यही वजह है कि अमेरिका ने करीब चार दशक से ईरान पर तमाम तरह के प्रतिबंध लगा रखे हैं। बीच में वो अपनी सुविधा के अनुसार ईरान से डील भी कर लेता है और ओबामा के बाद ट्रंप के आने पर वो डील रद्द भी हो जाती है। लेकिन अमेरिका किसी अन्य देश को ईरान से डील करते हुए नहीं देखना चाहता। इजराइल-फिलिस्तीन युद्ध लंबे समय से चल रहा है। हजारों फिलिस्तीनी इजराइली जनसंहार में मारे जा चुके हैं लेकिन अमेरिका की नजर में वो जनसंहार नहीं है। ईरान इसी बात के विरोध में है। उसने फिलिस्तीन के लड़कों और हमास जैसे संगठन को मदद देने की बात कभी छिपाई नहीं। इस तरह इस समय अमेरिका के सामने अगर कोई देश खड़ा है तो वो ईरान है। लेकिन अब ईरान भारत नजदीक आ रहे हैं तो एशिया के क्षेत्रीय समीकरण भी बदल सकते हैं। 

भारत और ईरान के अधिकारियों का कहना है कि इंडियन पोर्ट्स ग्लोबल लिमिटेड (आईपीजीएल) और पोर्ट एंड मैरीटाइम ऑर्गनाइजेशन ऑफ ईरान के बीच यह समझौता हुआ है। इस समझौते के तहत, आईपीजीएल यानी भारत लगभग 120 मिलियन डॉलर का निवेश चाबहार में करेगा, जबकि फाइनेंस फंडिंग में अतिरिक्त 250 मिलियन डॉलर होंगे, जिससे अनुबंध का मूल्य 370 मिलियन डॉलर हो जाएगा। भारत सरकार के एक अधिकारी ने कहा कि आईपीजीएल ने पहली बार 2018 के अंत में बंदरगाह का ऑपरेशन संभाला था और तब से 90,000 से अधिक टीईयू के कंटेनर यातायात और 8.4 मिलियन टन से अधिक के थोक और सामान्य कार्गो को संभाला है।

भारत के लिए क्यों महत्वपूर्ण है चाबहारः पाकिस्तान को दरकिनार करते हुए चाबहार पोर्ट के जरिए भारतीय माल अफगानिस्तान और मध्य एशिया तक सीधे पहुंच सकेगा। आने वाले समय में इंटरनेशनल नॉर्थ-साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर बनने पर सड़क और रेल परियोजना के जरिए इसका तालमेल बैठाया जाएगा और भारत को इसका सीधा लाभ होगा। भारत ने पिछले साल चाबहार पोर्ट के जरिए अफगानिस्तान को 20,000 टन गेहूं की मदद भेजी थी। भारत ने 2021 में भी इसी बंदरगाह के दिए ईरान को पेस्टीसाइड्स की सप्लाई भी भेजी थी।

ईरान एक एनर्जी संपन्न देश है। अभी तक इसका पूरा फायदा न तो ईरान उठाया पाया है और न भारत। ऐसे में ईरान के दक्षिणी तट पर सिस्तान-बलूचिस्तान प्रांत में स्थित चाबहार भारत को सीधी कनेक्टिविटी एनर्जी दोहन के क्षेत्र में देगा। इससे भारत और ईरान दोनों में ही एनर्जी के वैकल्पिक संसाधन मुहैया हो जाएंगे। ऐसा पहली बार हो रहा है कि भारत किसी विदेशी बंदरगाह का पूरा प्रबंधन अपने हाथ में लेगा। इससे भारत, ईरान और अफगानिस्तान के बीच व्यापार पर भी कई गुना प्रभाव पड़ेगा। यह सारा काम पाकिस्तान को दरकिनार करते हुए होगा।

चाबहार का ऑपरेशन भारत के संभालने पर देश के कांधला पोर्ट का महत्व बढ़ जाएगा। गुजरात में कांधला बंदरगाह 550 समुद्री मील की दूरी पर चाबहार बंदरगाह के सबसे करीब है जबकि चाबहार और मुंबई के बीच की दूरी 786 समुद्री मील है। कुल मिलाकर मध्य एशिया तक भारत की सीधी पहुंच हो जाएगी। यह आर्थिक नजरिए से बहुत महत्वपूर्ण है।

भारत और ईरान ने चाबहार को आईएनएसटीसी परियोजना के लिए एक खास केंद्र बनाना चाहते है। INSTC यानी भारत, ईरान, अफगानिस्तान, आर्मेनिया, अजरबैजान, रूस, मध्य एशिया और यूरोप के बीच माल ढुलाई के लिए 7,200 किलोमीटर लंबी मल्टी-मोड परिवहन परियोजना है। भारत के पास चाबहार होगा तो उसे इस परियोजना का सबसे ज्यादा फायदा मिलेगा।

भारत सरकार ने चाबहार बंदरगाह के लिए 2024-25 वित्तीय वर्ष में ₹100 करोड़ आवंटित किए हैं। हालांकि 2016 में भारत ने जो समझौता चाबहार के शाहिद बेहेश्टी टर्मिनल के लिए किया था, उसकी जगह अब 13 मई 2024 का समझौता लागू हो गया है। पुराना समझौता अभी तक चल रहा था। यानी पिछला समझौता जो एक टर्मिनल के लिए था, अब पूरे पोर्ट के लिए हो गया है।

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