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हिंदू-मुसलिम का नफ़रती झगड़ा ब्रिटेन, अमेरिका कैसे पहुँच गया?

हिंदू-मुसलिम का नफ़रती झगड़ा ब्रिटेन, अमेरिका कैसे पहुँच गया?

भारत में गली-मोहल्लों में दिखने वाले हिंदू-मुसलिम के नफरती झगड़े अब ब्रिटेन के लेस्टर शहर व वेस्ट मिडलैंड्स के स्मेथविक शहर और अमेरिकी शहरों में कैसे पहुँच गए हैं? जानिए, विदेशों में कैसे फैल रहा है सांप्रदायिक तनाव।

भारत, पाकिस्तान जैसे देशों से ब्रिटेन और अमेरिका में बसने वाले लोग उच्च शिक्षा वाले होते हैं। वे तरक्कीपसंद और आधुनिक विचार वाले माने जाते हैं। आधुनिकता की चकाचौंध में रहते हैं, और आर्थिक रूप से संपन्न भी होते हैं। ब्रिटेन और अमेरिका के ऐसे ही लोग हिंदू-मुसलिम के नाम पर उलझ सकते हैं, क्या इसकी कल्पना भी की जा सकती है?

हाल में ब्रिटेन और अमेरिका में जो ऐसी घटनाएँ घटी हैं वे दरअसल हक़ीकत बयाँ कर रही हैं। ब्रिटेन के लेस्टरशायर शहर में हिंदुओं और मुसलिमों के बीच तनाव हो गया है। यह मुद्दा इतना बड़ा हो गया है कि पुलिस को दखल देना पड़ा है और अब तक कम से कम 47 लोगों को गिरफ़्तार किया गया है। इस बीच मंगलवार को ब्रिटेन के ही वेस्ट मिडलैंड्स के स्मेथविक शहर में एक हिंदू मंदिर के बाहर विरोध प्रदर्शन हुआ। पिछले महीने अमेरिका के न्यूजर्सी में भारत के स्वतंत्रता दिवस पर निकाली गई एक परेड पर विवाद हो गया था और हिंदू-मुसलिम का ऐंगल जुड़ गया था। न्यूजर्सी में ही साध्वी ऋतंभरा के कार्यक्रम का विरोध किया गया और इसमें भी 'हिंदू-मुसलिम नफरत' का मुद्दा सामने आया। 

तो सवाल है कि आख़िर हिंदू-मुसलिम विवाद ब्रिटेन और अमेरिका जैसे देशों में क्यों हो रहा है? इस सवाल का जवाब पाने से पहले यह जान लें कि हाल की घटनाओं में हुआ क्या है। 

सबसे ताज़ा मामला लेस्टरशायर का है। कहा जा रहा है कि लेस्टरशायर में मौजूदा तनाव का माहौल काफ़ी दिनों से अंदर ही अंदर बन रहा था। 28 अगस्त को भारत और पाकिस्तान क्रिकेट मैच के बाद लेस्टरशायर शहर में तनाव बढ़ गया था। लेकिन वहाँ शनिवार को उस समय यह तनाव काफ़ी बढ़ गया था जब मुस्लिम और हिंदू समुदायों के युवक सड़कों पर उतर आए थे और दोनों समूहों ने अपनी बिरादरी के सदस्यों के साथ बदसलूकी किए जाने का आरोप लगाते हुए आक्रोश व्यक्त किया।

तीन दिन पहले सोमवार को एक घटना का ज़िक्र करते हुए अशोक स्वेन ने ट्वीट किया था, "इंग्लैंड के लेस्टर में दंगे जारी हैं। घोर हिंदू दक्षिणपंथी समूह 'जय श्री राम' के नारे लगा रहे हैं और सड़कों पर मुसलमानों पर हमला कर रहे हैं।" सोमवार को ही यूके में भारतीय उच्चायोग ने अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल पर एक प्रेस विज्ञप्ति पोस्ट की, जिसमें 'लेस्टर में भारतीय समुदाय के ख़िलाफ़ हिंसा और परिसर व हिंदू धर्म के प्रतीकों के साथ बर्बरता' की कड़ी निंदा की गई।

इसके एक दिन बाद इंग्लैंड के एक और शहर में हिंदू-मुसलिम तनाव हो गया। कथित तौर पर क़रीब 200 लोग इंग्लैंड के वेस्ट मिडलैंड्स के स्मेथविक शहर में एक हिंदू मंदिर के बाहर विरोध प्रदर्शन करने के लिए जुटे थे। 

बता दें कि ब्रिटेन में मुसलिमों और हिंदुओं की अच्छी-खासी आबादी रहती है। देश की कुल आबादी में ईसाई क़रीब 59 फ़ीसदी हैं, जबकि मुसलिम 4.4 फ़ीसदी और हिंदू 1.3 फ़ीसदी। जिस लेस्टर शहर में तनाव काफ़ी ज़्यादा है वहाँ दोनों समुदायों की आबादी क़रीब-क़रीब बराबर है। यूके नेशनल हेल्थ सर्विस यानी एनएचएस की रिपोर्ट के अनुसार 2011 की जनगणना के आधार पर लेस्टर, लेस्टरशायर और रटलैंड में मुसलमानों और हिंदुओं की जनसंख्या क्रमशः 7.4 प्रतिशत और 7.2 प्रतिशत थी जबकि सिखों की संख्या 2.4 प्रतिशत थी और पचपन प्रतिशत ईसाई थे।

अमेरिका में हिंदू-मुसलिम विवाद

हिंदू-मुसलिम का विवाद अमेरिका में भी शुरू हो गया लगता है। विश्व हिंदू परिषद से जुड़ी साध्वी ऋतंभरा को अमेरिका के न्यूजर्सी में कथित तौर पर दक्षिणपंथी समूहों ने आमंत्रित किया था। इसका इंडियन अमेरिकन मुसलिम काउंसिल ने विरोध किया। उसने एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर कहा कि साध्वी ऋतंभरा नफ़रती भाषण देती हैं और मुसलिमों के ख़िलाफ़ हिंसा भड़काने को उकसाती हैं। 

इससे पहले अमेरिका के न्यूजर्सी में ही भारत के स्वतंत्रता दिवस पर निकाली गई एक परेड पर विवाद हो गया था। उस परेड में कथित तौर पर बुलडोजर को शामिल किए जाने पर इंडियन अमेरिकन मुसलिम काउंसिल यानी आईएएमसी ने आपत्ति जताई और इसे भारत में अल्पसंख्यकों के ख़िलाफ़ नफ़रत फैलाने की मुहिम क़रार दिया था।

 - Satya Hindi

आईएएमसी ने इस मामले में बयान जारी किया था। इसने बयान में कहा था कि आरएसएस और बीजेपी ने भारत में अल्पसंख्यकों के ख़िलाफ़ नफ़रत फैलाने की अपनी मुहिम को अमेरिका तक पहुँचा दिया है।

इंडियन अमेरिकन मुसलिम काउंसिल के अनुसार न्यूजर्सी के एडिसन शहर में ओवरसीज़ फ्रेंड्स ऑफ भारतीय जनता पार्टी (यूएसए) के बैनर तले स्वतंत्रता दिवस परेड निकाली गई थी। उसमें एक बुलडोजर भी शामिल किया गया था। उस बुलडोजर पर कथित तौर पर पीएम मोदी और ‘बाबा बुलडोज़र’ लिखी हुई यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की तसवीर थी। 

बयान में कहा गया था कि यह यूपी में चल रहे बुलडोज़र अभियान को बढ़ा चढ़ाकर पेश करने की कोशिश थी। उस बयान में यूपी में बुलडोजर की कार्रवाई को सैकड़ों 'बेगुनाह मुसलमानों' के घरों को ग़ैरक़ानूनी ढंग से तोड़ने की कार्रवाई बताया गया। बयान में कहा गया, 'बुलडोज़र को मुसलमानों को सबक़ सिखाने के प्रतीक के तौर पर बीजेपी समर्थक प्रचारित करने में जुटे हैं।' हालाँकि, यूपी में प्रशासन ऐसी कार्रवाइयों को अवैध कब्जे के ख़िलाफ़ कार्रवाई बताता रहा है।

ये उस अमेरिका में हिंदुओं और मुसलमानों की स्थिति है जहाँ इन समुदायों के सबसे ज़्यादा पढ़े-लिखे लोग रहते हैं। इस पर क़रीब छह साल पहले एक प्यू रिसर्च सेंटर का सर्वे आया था। उस सर्वेक्षण में कहा गया था कि हाल के वर्षों में संयुक्त राज्य अमेरिका में प्रवास करने वाले हिंदू और मुसलमान खास तौर पर सुशिक्षित हैं। यू.एस. में हिंदुओं की स्कूली शिक्षा औसतन 16 साल है, जो यहूदियों की तुलना में काफी अधिक है। हिंदुओं के बाद सबसे ज़्यादा उच्च शिक्षित यू.एस. धार्मिक समूह यहूदी ही हैं। मुसलिम अमेरिकी क़रीब 14 साल की स्कूली शिक्षा पाए हुए हैं। यह भी अमेरिका के कुल औसत से काफी ऊपर है।

अमेरिका को छोड़ दें तो बाक़ी दुनिया में हिंदुओं और मुसलमानों के उच्च शिक्षा का स्तर काफ़ी नीचा है। दोनों समुदायों का स्कूली शिक्षा का स्तर औसतन सिर्फ़ 5.6 साल ही है। 

तो सवाल उठते हैं कि ऐसे हालात में भी अमेरिका और ब्रिटेन जैसे देशों में हिंदू-मुसलिम का झगड़ा या ऐसी नफ़रत फैलने की घटनाएँ क्यों हो रही हैं?

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