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अमेरिका क्यों चाहता है भारत गेहूँ निर्यात प्रतिबंध पर पुनर्विचार करे?

अमेरिका क्यों चाहता है भारत गेहूँ निर्यात प्रतिबंध पर पुनर्विचार करे?

गेहूँ की बढ़ती मांग ने दुनिया भर में चिंताएँ पैदा कर दी हैं और भारत द्वारा इसके निर्यात पर प्रतिबंध के कारण तो स्थिति और ख़राब ही हुई है। जानिए क्या हुआ है असर और क्या हो रही है प्रतिक्रिया।

देश में किसी संभावित खाद्यान्न संकट की आशंका को देखते हुए गेहूँ के निर्यात पर लगाए गए प्रतिबंध के बाद दुनिया भर के बाज़ार हिले हुए हैं। प्रतिबंध की घोषणा के बाद ही क़रीब क़ीमतें 6 फ़ीसदी बढ़ चुकी हैं। भारत में भी बंदरगाहों पर हजारों ट्रक गेहूँ फँस गया है जिसे निर्यात के लिए ले जाया जा रहा था। इस बीच निर्यात प्रतिबंधों के असर को लेकर पहले जी-7 और विश्व व्यापार संगठन यानी डब्ल्यूटीओ ने इस फ़ैसले की आलोचना की थी और अब अमेरिका ने उम्मीद जताई है कि भारत गेहूँ निर्यात पर लगाए गए अपने प्रतिबंधों पर फिर से विचार करेगा।

अमेरिका ने कहा है कि वह देशों को निर्यात को प्रतिबंधित नहीं करने के लिए 'प्रोत्साहित करेगा क्योंकि इससे यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के बीच खाद्य संकट बढ़ जाएगा।

अमेरिका की ऐसी प्रतिक्रिया तब आ रही है जब भारत ने 13 मई को गेहूँ के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया है। कहा जा रहा है कि सरकार को अब गेहूँ की बढ़ती क़ीमतों को लेकर चिंता सताने लगी है। गेहूं का दैनिक औसत खुदरा मूल्य 9 मई को 19.34 प्रतिशत बढ़कर 29.49 रुपये प्रति किलोग्राम हो गया, जबकि एक साल पहले यह 24.71 रुपये प्रति किलोग्राम था।

ऐसा इसलिए भी हुआ कि इस बार गेहूँ का उत्पादन कम हुआ है और निर्यात का लक्ष्य बढ़ा दिया गया। देश के गेहूं का उत्पादन 2022-23 के लिए 111 मिलियन टन के पहले के अनुमान से कम करके 105-106 मिलियन टन कर दिया गया है।

इस वजह से इस महीने की शुरुआत में ही साफ़ हो गया था कि गेहूँ की सरकारी खरीद का जो अनुमान पहले लगाया गया था उससे 50 फ़ीसदी कम ख़रीद की आशंका है।

हालाँकि, इसके बावजूद अभी कुछ दिनों पहले तक ख़बरें आ रही थीं कि भारत ने गेहूँ के निर्यात की संभावनाओं को तलाशने के लिए कई देशों में व्यापार प्रतिनिधिमंडल भेजे।

यूक्रेन के रूस के साथ युद्ध में फंसने से गेहूँ के इन दोनों प्रमुख निर्यातकों से गेहूं की आपूर्ति गिरी है। यूक्रेन पर रूसी आक्रमण ने वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं को बाधित कर दिया है। गेहूं उत्पादन में रूस दुनिया में तीसरे स्थान पर है और यूक्रेन आठवें स्थान पर है। कहा जा रहा है कि इसी वजह से दुनिया भर में गेहूँ की मांग ने तेजी पकड़ी है। 

वैसे तो भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा गेहूं उत्पादक देश है, लेकिन निर्यात के मामले में वह सबसे अग्रणी देशों में नहीं रहा है। इस बार भारत में मार्च में ही भीषण गर्मी होने की वजह से गेहूं का उत्पादन प्रभावित हुआ है। इसके बावजूद भारत ने गेहूँ के निर्यात में संभावनाएँ देखीं। निर्यात को देखते हुए भारत में खाद्यान की किल्लत की आशंकाएँ उठीं और तब भारत ने गेहूँ के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया। 

इस प्रतिबंध का असर ऐसा हुआ कि कांडला बंदरगाह पर गेहूँ से लदे ट्रकों की लाइन लगने की ख़बरें आईं। इंडियन एक्सप्रेस में छपी रिपोर्ट के मुताबिक अचानक प्रतिबंध लगने से बंदरगाह के बाहर गेहूं से लदे 4,000-5000 ट्रक फँसे हैं। बंदरगाह के अंदर, चार जहाज हैं, आधा गेहूं से भरा हुआ है और उसे निकलने का कोई आदेश नहीं है।

बंदरगाह मुख्य रूप से मध्य-पूर्व और यूरोपीय देशों में निर्यात के लिए इस्तेमाल किया जाता है और यहाँ पंजाब, यूपी और एमपी से गेहूं आता है। रिपोर्ट में कहा गया है कि मध्यप्रदेश से आया 44,340 मीट्रिक टन गेहूं पहले ही लाइबेरियाई जहाज पर लोड किया जा चुका है, जिसे 16 मई को मिस्र के लिए रवाना किया जाना था। लेकिन गेहूँ निर्यात पर प्रतिबंधों की वजह से ऐसा नहीं हो पाया है। 

हालाँकि, प्रतिबंध में कुछ छूट का प्रावधान भी है। सरकार ने अधिसूचना की तारीख को या उससे पहले जारी वैध अपरिवर्तनीय साख पत्र यानी एलओसी के साथ गेहूं शिपमेंट की अनुमति दी है। चालू वित्त वर्ष में अब तक 45 लाख टन गेहूं के निर्यात का अनुबंध किया जा चुका है। इनमें से अप्रैल में 14.6 लाख टन निर्यात किया गया था। इसके साथ ही सरकार ने कहा कि निर्यात तब भी हो सकता है जब नई दिल्ली अन्य सरकारों द्वारा 'उनकी खाद्य सुरक्षा की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए' अनुरोध को मंजूरी दे। मिस्र इस छूट के संदर्भ में भारत के साथ बातचीत कर रहा है।

अचानक लगाए गए प्रतिबंध के अगले दिन ही विकसित अर्थव्यवस्था वाले देशों के समूह-G7 के कृषि मंत्रियों ने भारत के इस फ़ैसले की निंदा की थी।

मंत्रियों ने कहा था कि अगर हर कोई निर्यात पर प्रतिबंध लगाए या अपने बाजार को बंद करना शुरू कर दे तो इससे संकट और गंभीर हो जाएगा

G7 देशों के मंत्रियों ने दुनिया भर के देशों से किसी भी तरह के निर्यात पर प्रतिबंध न लगाने का आग्रह किया है जिससे उपज बाजारों पर और दबाव बढ़ सकता है।

अब संयुक्त राष्ट्र में अमेरिकी राजदूत लिंडा थॉमस-ग्रीनफील्ड ने सोमवार को एक वर्चुअल न्यूयॉर्क फॉरेन प्रेस सेंटर ब्रीफिंग के दौरान कहा, 'हमने भारत के फ़ैसले की रिपोर्ट देखी है। हम देशों को निर्यात को प्रतिबंधित नहीं करने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं क्योंकि हमें लगता है कि निर्यात पर कोई भी प्रतिबंध भोजन की कमी को बढ़ा देगा।'

 - Satya Hindi

उन्होंने आगे कहा, 'भारत सुरक्षा परिषद में हमारी बैठक में भाग लेने वाले देशों में से एक होगा, और हमें उम्मीद है कि वे अन्य देशों द्वारा उठाई जा रही चिंताओं को सुनते हुए उस स्थिति पर पुनर्विचार करेंगे।' दरअसल, थॉमस-ग्रीनफ़ील्ड गेहूं के निर्यात को प्रतिबंधित करने के भारत के निर्णय पर एक प्रश्न का जवाब दे रही थीं।

अमेरिकी दूत ने कहा कि यूक्रेन विकासशील दुनिया के लिए रोटी की एक टोकरी हुआ करता था, लेकिन जब से रूस ने महत्वपूर्ण बंदरगाहों को अवरुद्ध करना शुरू किया और नागरिक बुनियादी ढांचे और अनाज सिलोस को नष्ट करना शुरू किया है, अफ्रीका और मध्य पूर्व में भूख की स्थिति और भी विकट हो गई है।

उन्होंने कहा, 'यह पूरी दुनिया के लिए एक संकट है, और इसलिए यह संयुक्त राष्ट्र के लिए भी है। हमारी उन लाखों लोगों के प्रति जिम्मेदारी है जो इस बात को लेकर चिंतित हैं कि उन्हें अपना अगला भोजन कहां मिलेगा या वे अपने परिवार का भरण पोषण कैसे करेंगे।'

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