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कोर्ट की चेतावनी, प्रधानमंत्री की नसीहत के बाद भी यूपी में कांवड़ की तैयारी क्यों?

कोर्ट की चेतावनी, प्रधानमंत्री की नसीहत के बाद भी यूपी में कांवड़ की तैयारी क्यों?

उत्तर प्रदेश में कांवड़ यात्रा की तैयारी क्यों? क्या योगी सरकार तीसरी लहर नहीं आने को लेकर निश्चिंत है? क्या अदालतों की चेतावनियाँ, प्रधानमंत्री की सलाह कोई मायने नहीं रखतीं?

उत्तर प्रदेश में कांवड़ यात्रा को लेकर सुप्रीम कोर्ट सवाल पूछ रहा है। दबाव के बीच उत्तराखंड में कांवड़ यात्रा रद्द की जा चुकी है। प्रधानमंत्री मोदी भी कोरोना की तीसरी लहर के ख़तरे को देखते हुए भीड़ नहीं करने, मास्क पहनने और कोरोना नियमों का पालन करने की नसीहत दे रहे हैं। तो फिर यूपी सरकार इसके उलट धारा में क्यों चल रही है? तीसरी लहर की आशंका को दरकिनार कर कांवड़ यात्रा की पूरी तैयारियाँ की जा रही हैं। उत्तराखंड में पाबंदी लगाई गई है तो गढ़मुक्तेश्वर और बुलंदशहर के अहार से कांवड़ की तैयारियाँ की जा रही हैं। पुलिस रूट प्लानिंग बना रही है तो दूसरा अमला मार्गों की साफ़-सफ़ाई में जुटा है। आख़िर अदालत, प्रधानमंत्री की सलाह और महामारी वैज्ञानिकों की चेतावनी का डर यूपी सरकार को क्यों नहीं है? 

इस पूरे मामले में योगी सरकार के रवैये पर सवाल उठ रहे हैं। लेकिन इससे पहले यह जान लें कि उत्तर प्रदेश में कांवड़ यात्रा को लेकर चल क्या रहा है। पुलिस कांवड़ यात्रा के लिए तैयारियों में जुटी है। रूट प्लानिंग से लेकर सुरक्षा व्यवस्था की समीक्षा की जा रही है। 'हिंदुस्तान' की रिपोर्ट के अनुसार गढ़मुक्तेश्वर और बुलंदशहर के अहार से जुड़ने वाले मार्गों पर लाइट लगाने, झाड़ियों को हटाने और टूटी रेलिंग सही कराने का काम शुरू कर दिया गया है। ज़िले के अधिकारियों ने रूट मार्च किया। बता दें कि प्रयागराज, प्रतापगढ़ और कौशांबी के कांवड़िए आमतौर पर बाबा विश्वनाथ के जलाभिषेक के लिए जाते हैं।

एक रिपोर्ट में तो कहा गया है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का स्पष्ट निर्देश है कि पारंपरिक कांवड़ यात्रा कोरोना प्रोटाकॉल का पालन करते हुए ही निकाली जाए। 'दैनिक जागरण' की रिपोर्ट के अनुसार, उन्होंने अधिकारियों से कहा है कि दूसरे राज्यों से आने वाले कांवड़ यात्रियों के लिए आरटीपीसीआर नेगेटिव रिपोर्ट की अनिवार्यता पर विचार-विमर्श कर निर्णय लें और दिशा-निर्देश जारी करें।

यह सब तब हो रहा है जब एक दिन पहले ही सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार से पूछा है कि आख़िर उसने कोरोना महामारी के दौरान कांवड़ यात्रा के आयोजन की अनुमति क्यों दी है। अदालत ने इस मामले का स्वत: संज्ञान लिया। जस्टिस आरएफ़ नरीमन और जस्टिस बीआर गवई की बेंच ने कहा, 'हम इस बारे में संबंधित सरकारों का स्टैंड जानना चाहते हैं। देश के लोग घबराए हुए हैं। वे नहीं जानते कि क्या हो रहा है। प्रधानमंत्री ख़ुद कोरोना की तीसरी लहर के बारे में बात कर चुके हैं और हम ऐसे में इससे रत्ती भर भी समझौता नहीं कर सकते।' इस मामले में यूपी सरकार को जवाब भी दाखिल करना है और अब शुक्रवार को सुनवाई होगी।

सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी के बाद भी उत्तर प्रदेश सरकार की तरफ़ से अब तक ऐसा कोई संकेत नहीं आया है कि क्या योगी सरकार कांवड़ यात्रा पर कुछ भी बदलाव करने के मूड में है या नहीं भी। क्या अदालत से यूपी सरकार टकराने के पक्ष में है। वैसे, योगी सरकार का रवैया अदालत के आदेशों को लेकर विवादास्पद रहा है। इलाहाबाद हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रहे जस्टिस गोविंद माथुर ने ही उत्तर प्रदेश सरकार पर सवाल उठाए थे। 

जस्टिस माथुर ने इसी साल सेवानिवृत्त होने के बाद एक इंटरव्यू में कहा था कि उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार हाई कोर्ट के आदेशों को भी स्वीकार नहीं करती।

उन्होंने यह जवाब तब दिया था जब क़ानूनी मामलों की रिपोर्टिंग करने वाली वेबसाइट बार एंड बेंच को दिए इंटरव्यू में जस्टिस माथुर से पूछा गया कि इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कोरोना संक्रमण के बढ़ते मामलों को देखते हुए राज्य में आंशिक लॉकडाउन लगाने का आदेश दिया था, क्या जस्टिस माथुर मानते हैं कि हाई कोर्ट का यह आदेश न्यायिक अतिक्रमण था या ऐसा आदेश उस वक़्त की ज़रूरत था। बता दें कि राज्य सरकार लॉकडाउन लगाने के इलाहाबाद हाई कोर्ट के आदेश के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट चली गयी थी और सुप्रीम कोर्ट ने इस पर अंतरिम रोक लगा दी थी। 

 - Satya Hindi

इहालाबाद हाई कोर्ट का यह फ़ैसला तब आया था जब देश में कोरोना की दूसरी लहर तबाही मचा रही थी। इससे उत्तर प्रदेश भी अछूता नहीं था। अस्पतालों में बेड कम पड़ गए थे, मेडिकल ऑक्सीजन की कमी होने लगी थी, दवाइयाँ कम पड़ रही थीं और इस बीच बड़ी संख्या में लोगों की मौतें हुई थीं। दूसरी लहर के दौरान ही गंगा में तैरते और रेतों में दफनाए सैकड़ों शवों की तसवीरें सामने आई थीं।

बहरहाल, दो दिन पहले ही प्रधानमंत्री मोदी ने भी कोरोना संक्रमण को लेकर कहा है कि बाज़ारों और पर्यटन स्थलों पर बिना मास्क लगाई हुई भीड़ की तसवीरें चिंता का कारण हैं। उन्होंने सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों का पालन नहीं किए जाने पर भी चिंता जताई। प्रधानमंत्री ने इस बात पर जोर दिया कि कोरोना की तीसरी लहर से बचने के लिए कोरोना प्रोटोकॉल का पालन ज़रूरी है। 

मोदी ने कहा है, 'कई बार लोग सवाल पूछते हैं कि तीसरी लहर के बारे में क्या तैयारी है? तीसरी लहर पर आप क्या करेंगे? हमारे मन में सवाल यह होना चाहिए कि तीसरी लहर को आने से कैसे रोका जाए।'

इस मामले में डॉक्टरों के शीर्ष संगठन इंडियन मेडिकल एसोसिएशन यानी आईएमए ने एक दिन पहले ही ख़त लिखकर कहा है कि 'पर्यटन, तीर्थाटन और धार्मिक उत्साह, सबकुछ ठीक है, पर इन्हें कुछ समय के लिए टाला जा सकता है। धार्मिक अनुष्ठानों और उनमें बड़ी तादाद में लोगों के बेरोकटोक जाने की अनुमति देने से ये कार्यक्रम सुपर स्प्रेडर यानी कोरोना फैलाने के बड़े कारण बन सकते हैं।' 

ये चेतावनियाँ कोरोना की तीसरी लहर को लेकर काफ़ी अहम है। यह इसलिए कहा जा रहा है कि दूसरी लहर जब शुरू हो रही थी तभी उत्तराखंड के हरिद्वार में कुंभ जैसा आयोजन हुआ था और दूसरी लहर के लिए उसे भी ज़िम्मेदार माना गया था। जब उत्तराखंड सरकार चारधाम यात्रा को लेकर अड़ी रही तब उत्तराखंड हाई कोर्ट ने कहा था कि चार धाम यात्रा को एक और कुंभ नहीं बनने दिया जाएगा। यानी साफ़ तौर पर हाई कोर्ट भी कुंभ से सबक़ लेने की बात करता रहा है। 

तो योगी सरकार कुंभ से सबक़ क्यों नहीं लेना चाह रही है? अगले कुछ महीनों में होने वाले विधानसभा चुनाव की तैयारियों में लगी योगी सरकार क्या तीसरी लहर नहीं आने को लेकर निश्चिंत है? क्या अदालतों की चेतावनियाँ, प्रधानमंत्री की सलाह कोई मायने नहीं रखतीं? आख़िर कांवड़ यात्रा की तैयारियाँ क्यों जारी हैं?

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