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गन्ना किसानों का बकाया 8400 करोड़ मिला नहीं और फ़सल का नया सीजन भी आ गया

गन्ना किसानों का बकाया 8400 करोड़ मिला नहीं और फ़सल का नया सीजन भी आ गया

गन्ने की नये फ़सल का सीजन आ चुका है, लेकिन चीनी मिलों पर उनकी पिछली उपज का पैसा अभी भी बकाया है। यह क़रीब 8400 करोड़ रुपये बैठता है। 

किसान कहाँ-कहाँ लड़े। नये कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ सड़क पर उतरे या फ़सल उपजाए उपज की सही क़ीमत के लिए सरकार से लड़ाई लड़े या फिर अपनी फ़सलों के बकाए की वसूली के लिए अधिकारियों के पास दौड़ लगाता रहे उत्तर प्रदेश गन्ना किसानों के सामने भी यही समस्या है।

गन्ने की नये फ़सल का सीजन आ चुका है, लेकिन चीनी मिलों पर उनकी पिछली उपज का पैसा अभी भी बकाया है। यह क़रीब 8400 करोड़ रुपये बैठता है। 

किसानों के इन बकायों के बीच ही अक्टूबर के आख़िर में यानी दशहरा बाद किसानों का गन्ना तैयार हो जाएगा और चीनी मिलों पर पहुँचने लगेगा। 'द इंडियन एक्सप्रेस' की रिपोर्ट के अनुसार 30 सितंबर को ख़त्म होने वाला गन्ना-साल यानी 2019-20 (अक्टूबर से लेकर सितंबर तक) में किसानों ने मिलों को 1118 लाख टन गन्ना पहुँचाया। इसका 35 हज़ार 898 करोड़ रुपये किसानों का बना, लेकिन 30 सितंबर तक 27 हज़ार 451 करोड़ रुपये किसानों को चुका दिया गया। यानी कुल मिलाकर 8447 करोड़ रुपये बकाया है। 

जबकि नियमों के मुताबिक़, गन्ना ख़रीदने के 14 दिनों के भीतर किसानों को क़ीमत मिल जानी चाहिए। देर होने पर ब्याज दिया जाना चाहिए। लेकिन मिल मालिक न तो समय पर भुगतान करते हैं और न ही ब्याज देते हैं। ऐसी शिकायतें किसान अक्सर करते रहते हैं। किसानों का आरोप रहा है कि किसानों के गन्ने से मिल मालिक पैसा अपने दूसरे उद्योगों में लगा देते हैं और किसानों का पैसा लटकाए रहते हैं। 

किसान नेता वीएम सिंह क़रीब 30 सालों से गन्ना किसानों की लड़ाई अदालतों में लड़ रहे हैं। उनका कहना है कि चीनी मिल मालिक अपना पैसा दूसरे उद्योगों में डायवर्ट कर देते हैं और किसानों का भुगतान रोक कर रखते हैं। 

मिल मालिक भुगतान नहीं करने के कई और कारण बताते हैं। अक्सर उनकी शिकायत यही होती है कि केंद्र सरकार ने सब्सिडी के तौर पर दिए जाने वाले रुपये का भुगतान नहीं किया है।

मिलों को ये सब्सिडी उत्पादन, सुरक्षित चीनी भंडार और ब्याज के तौर पर होने वाले ख़र्च के तौर पर दी जाती है। उनका ये भी कहना है कि प्रदेश सरकार ने मिलों को बिजली आपूर्ति के क़रीब डेढ़ हज़ार करोड़ रुपये का भुगतान नहीं किया है। 

बहरहाल, किसानों की शिकायतों पर मिल मालिकों की सफ़ाई हर साल ऐसी ही आती रही है। और फिर भी किसानों का बकाया पिछले साल के मुक़ाबले ज़्यादा हो जाता है। इस बार के बकाये से पिछली बार के बकाए की तुलना कर ही देख लीजिए। अख़बार की रिपोर्ट के अनुसार गन्ना के पिछले वित्त वर्ष 2018-19 में 1031 लाख टन गन्ने की फ़सल हुई थी। इसका 33 हज़ार 48 करोड़ रुपये किसानों का बना और तब सितंबर के आख़िर तक 28 हज़ार 106 करोड़ रुपये सरकार भुगतान कर पाई थी। यानी किसानों का बकाया 4941 करोड़ रुपये रहा था। इस बार यह बकाया 8447 करोड़ रुपये है। 

गन्ने किसानों की हर साल आने वाली इस समस्या को लेकर सरकार को ज़िम्मेदार ठहराया जाता है। विशेषज्ञों के अनुसार गन्ना किसानों के लिए राज्य सरकार की दो ज़िम्मेदारियाँ हैं। पहली- गन्ने की क़ीमत तय करना और दूसरी किसानों को भुगतान कराना। रंगराजन कमेटी ने गन्ने की क़ीमत तय करने के लिए सालों पहले एक फ़ॉर्म्यूला तय कर दिया था। केंद्र और राज्य की सरकार साल दर साल इस फ़ॉर्म्यूले से कम क़ीमत तय करती हैं और समय पर भुगतान भी नहीं कराती हैं। यही वजह है कि गन्ना किसानों की स्थिति सुधर नहीं पा रही है। 

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