हाथरस जा रहे पत्रकार व 3 अन्य हिरासत में, पीएफ़आई से जुड़े होने का आरोप
हाथरस जा रहे एक पत्रकार और तीन अन्य लोगों को पुलिस ने मथुरा से देर रात को हिरासत में लिया है। पुलिस का दावा है कि ये पीएफ़आई यानी पॉपुलर फ़्रंट ऑफ़ इंडिया से जुड़े हैं और वे सभी दिल्ली से एक कार में हाथरस जा रहे थे। उन्हें मथुरा में रोका गया और हिरासत में लिया गया। हाथरस में पीड़िता और उसके परिवार को न्याय दिलाने की देश भर में ज़बरदस्त माँग उठ रही है और प्रशासन पर इस मामले को दबाए जाने के आरोप लगाए जा रहे हैं। इसी बीच एक दिन पहले ही मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने साज़िश का नया एंगल जोड़ दिया है। इस साज़िश को सीएए विरोधी आंदोलन से जोड़कर देखा जा रहा है।
हाथरस मामले में एसआईटी जाँच अभी पूरी हुई भी नहीं थी कि इस बीच मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सीबीआई जाँच की घोषणा कर दी और इसी बीच ही यह साज़िश की बात कही गई है। इस मामले में कहा गया है कि हाथरस में विपक्ष, कुछ पत्रकारों व नागरिकता क़ानून विरोधी आंदोलन से जुड़े संगठनों के साथ कुछ सामाजिक संगठन योगी सरकार की छवि बिगाड़ने की साजिश रच रहे थे और इनके ख़िलाफ़ कारवाई की जा रही है।
पिछले कुछ दिनों से योगी सरकार की ओर से ‘हाथरस केस में बड़ा खुलासा’ के नाम से प्रसारित किए जा रहे मैसेज में कहा जा रहा है कि जातीय दंगे करा कर दुनिया भर में मोदी और योगी को बदनाम करने के लिये रातों-रात ‘दंगे की वेबसाइट’ बनाई गई।
बहरहाल चार लोगों को हिरासत लेने के मामले में पुलिस ने कहा है कि जब उन्हें जानकारी मिली कि कुछ 'संदिग्ध लोग दिल्ली से हाथरस जा रहे हैं', चार लोगों- अतीक-उर रहमान, सिद्दीक कप्पन, मसूद अहमद और आलम को एक टोल पर रोका गया। पुलिस ने एक आधिकारिक बयान में कहा है, 'उनके मोबाइल फ़ोन, एक लैपटॉप और कुछ साहित्य को जब्त कर लिया गया है। पुलिस का कहना है कि ये सामान राज्य में क़ानून और व्यवस्था व शांति पर प्रभाव डाल सकते हैं।
सिद्दीक कप्पन एक पत्रकार हैं और वह केरल यूनियन ऑफ़ वर्किंग जर्नलिस्ट्स की दिल्ली इकाई के सचिव हैं। केरल यूनियन ऑफ़ वर्किंग जर्नलिस्ट्स ने एक बयान में कहा, 'वह सोमवार सुबह हाथरस गए थे।' मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को संबोधित बयान में कहा गया है कि उनको तत्काल रिहा किया जाए।
'एनडीटीवी' की रिपोर्ट के अनुसार, केरल यूनियन ऑफ़ वर्किंग जर्नलिस्ट्स के बयान में कहा गया है, 'हम समझते हैं कि उन्हें हाथरस टोल प्लाजा से उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा हिरासत में लिया गया था। उनसे संपर्क करने के लिए दिल्ली में स्थित कुछ अधिवक्ताओं द्वारा किए गए हमारे प्रयास सफल नहीं हुए। हाथरस पुलिस स्टेशन और राज्य पुलिस विभाग ने उन्हें हिरासत में लेने पर अब तक कोई जानकारी नहीं दी है।'
रिपोर्ट के अनुसार, पुलिस ने दावा किया है कि पूछताछ के दौरान उन लोगों ने माना है कि उनका संबंध पीएफ़आई और इसके सहयोगी संगठन कैंपस फ़्रंट ऑफ़ इंडिया से है।
एक रिपोर्ट के अनुसार कप्पन पर पूर्व में पीएफ़आई से जुड़े होने के आरोप लगाए गए थे लेकिन उन्होंने आरोप लगाने वाले लोगों को क़ानूनी नोटिस भेजा था।
इधर, योगी आदित्यनाथ सरकार ने पीएफ़आई को नागरिक क़ानून - नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के ख़िलाफ़ राज्य में विरोध-प्रदर्शन के लिए दोषी ठहराया है। सीएए के ख़िलाफ़ पिछले साल प्रदर्शन हुआ था। सरकार चाहती है कि इसे प्रतिबंधित कर दिया जाए।
उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा हाथरस की घटना पर 19 एफ़आईआर दर्ज की गई हैं। पुलिस ने घटना को लेकर दर्ज मुख्य प्राथमिकी में राज्य में शांति भंग करने का प्रयास करने, राजद्रोह, षड्यंत्र और धार्मिक घृणा को बढ़ावा देने के प्रयास का आरोप लगाया गया है।
कहा जा रहा है कि यूपी सरकार इससे नाराज़ है क्योंकि इस पूरे हाथरस मामले में उसकी चौतरफ़ा आलोचना हुई है। इस पूरे मामले में हाथरस प्रशासन और सरकार पर लापरवाही बरतने के आरोप लग रहे हैं। पिछले महीने जब कथित तौर पर गैंगरेप की वारदात हुई तो शुरुआत में मुक़दमा दर्ज नहीं किया गया। पीड़िता के इलाज के उचित इंतज़ाम नहीं हुए और राजनीतिक हस्तक्षेप के बाद दिल्ली के सफदरगंज अस्पताल लाए जाने के बाद पीड़िता की मौत हो गई। पुलिस ने परिवार वालों की ग़ैर मौजूदगी में रातोरात उसका शव जला दिया। घर वाले तड़पते रहे कि उन्हें कम से कम चेहरा दिखा दिए जाए, लेकिन ऐसा नहीं हो पाया। इस पूरे मामले में परिवार की ओर से कई आरोप लगाए गए। अभी भी आरोप लग रहे हैं कि परिवार पर दबाव डाला जा रहा है।